वो उड़ते कबूतरों की तस्वीर के बीच लिखा हैप्पी न्यू ईयर... चूल्हे की आग में दफन हो जाती थी भावनाएं..

... कढ़ाई में उबल रहा दूध मलाई दे रहा है, तुम्हारा दोस्त तुम्हे नए साल की बधाई दे रहा है।


... लक्श जैसी खुशबू हमाम में नहीं, तेरे जैसा दोस्त हिंदुस्तान में नहीं।


... गुल खिलते हैं तो गुलशन भी खिलेंगे, जिंदगी रही तो जरूर मिलेंगे।


... जब दोस्ती की दास्तां वक्त सुनाया करेगा,  तब हमें भी कोई स्वरूप याद आया करेगा।  भूल जाएंगे हर गम को हम,  जब तुुम्हारे साथ बिताया हुआ वक्त याद आया करेगा।।

ये हैं 70 से 90 के दशक के बीच के उन गालिबों की भावनाएं जो हर नए साल ग्रीटिंग कार्ड्स में सिमेटकर दिया करते थे।


जितेंद्र बूरा.

जीवन के हर पड़ाव में बदलाव कुदरत का करिश्मा है। बदलते समय के दस्तूर को याद रखने के लिए सेकेंड, मिनट, घंटे, तारीख, महीने, साल की गणना में पिरो दिया गया। हर पल, हर समा, हर पहर, हर दिन, हर रात, हर मौसम में जीये जिंदगी के अहसास को बस इन्हीं तारीखों और पलों के फ्रेम में सजाया जाता है। हमारे दिमाग की हार्ड डिस्क के किसी कौने में यह सुरक्षित रखा है। जब भी भावनाओं के दरवाजे खुलते हैं तो मन अंदर जाकर एक-एक फ्रेम को उठाकर निहारता है। फिर आंखों के पर्दे पर उस दौर का फिल्मांकन होता है। दर्द है ताे आंसू छलक उठते हैं, खुशी के पल हों तो चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।

..  एक दौर वो भी था जब भावनाएं कागजों में उतरती थी, सालों साल सहेजकर रखी जाती थी, या फिर चूल्हे की आग में दफन हो जाती थी.. पर यादें अमिट हो जाती ...।

 


वर्ष 1992 का समय था। 6 दिसंबर की सर्द शाम में हरियाणा के इस गांव में चूल्हे जलने शुरू हो गए थे। बाजरे की खिचड़ी तो कहीं बाजरे की रोटी, सरसों का साग बनाया जा रहा था। बाजरे की खिचड़ी का स्वाद बढ़ाने के लिए सुबह बनाई लस्सी में शाम को भैंस के दूध की धार लगाकर - गोजी- भी कुछ घरो में बनाई गई थी। ब्लैक एंड व्हाइट टीवी के एंटिना का मुुंह दिल्ली की तरफ हल्के से घुमाकर डीडी मैट्रो पर खबरें देखी जा रही थी। बुजुर्गों की चारपाई के सिरहाने रखी रेडियो में भी खेती बाड़ी कार्यक्रम के बाद देश की खबरें सुनाई जा रही थी। एक खबर बाबरी मस्जिद का हिस्सा गिराने की घटना की थी।

गांव के लोगों में तो यह घटना एक सूचना भर थी। उन्हें अपने दैनिक कार्यों के बीच देश-दुनिया की बस सूचना मिल जाए काफी थी। चिंता तो अपने गेहूं की हाल में बीजी गई फसल में कोर यानि पहला पानी देने की थी। महिलाओं को बढ़ती ठंड में पशुओं को अंदर बांधने और बरामदों के खुले दरवाजों के लिए पल्लड़ बनाकर लगाने थे। किसी को सुबह शहर और अलग-अलग जगह मेहनत मजदूरी को निकलना था। 

गांव के बीच में कुछ घर एक समुदाय के भी थे। बुजुर्ग बताते थे कि आजादी के बाद मारकाट छिड़ी थी। गांव के लोगों ने कुछ परिवारों को जैसे-तैसे दंगाईयों से बचाकर पनाह दी थी। तब से ये परिवार भी सबके साथ मिलकर रहते थे। अब तो नए बच्चों को तो पता ही नहीं था कि कोई अलग धर्म या समुदाय भी है। अक्सर मोहल्ले के बच्चे इकट्‌ठे होकर इनके घरों के आंगन में बैठकर रामायण और श्रीकृष्ण लीला टीवी पर देखते थे। नाम भी सामान्य ही थे। पहचान या जाति काम से थी।

अगली सुबह धुंध की दस्तक थी। कोई बुग्गी-झोटा, बैलगाड़ी लेकर तो कोई किसान बैल लेकर खेत की तरफ चल दिए थे। खेतों से पशुओं के लिए चारा लान था, तो बैलों से खेत में काम करना था। शिक्षक साइकिल पर स्कूलों में पढ़ाने के लिए निकले थे। घरों से बच्चे खाकी ड्रेस पहनकर फौजी से तनकर पीठ पर खाद की बोरी से बने बस्ते बांधकर स्कूल के लिए निकल पड़े थे। गांव में बीच में रहने वाले उन कुछ परिवारों के एक घर की बेटी भावना भी घर की साफ-सफाई कर, खाना इत्यादि बनाकर नहाकर तैयार हो चुकी थी। दीवार की कील में टंगे छोटे से शीशे में खुद को निहारते हुए हल्की मुस्कान चेहरे पर लिए कॉलेज जाने की तैयारी कर रही थी। वह चंद गांव की लड़कियों में से एक थी जो गांव की स्कूली शिक्षा को पार कर शहर के कॉलेज पहुंची थी। छोटा भाई अभी स्कूल की पढ़ाई कर रहा था। उसके पिता शहर में किसी दुकान पर काम करते थे। उनका सपना था कि बेटी पढ़ लिख जाएगी तो कुछ बनेगी।

कई गांवों से होते हुए रोडवेज की नीली बस सवारियों को ठूंस-ठूंसकर भरकर शहर ले जाती थी। बस निकली तो हाथी के सूंड जैसे मुंह वाले तिपहिया स्कूटर एक-दो जाते लेकिन कॉलेज टाइम से लेट पहुंचाते। गांव के बस अड्‌डे पर जल्दी में पहुंची भावना भी बस में सवार हो गई। हर दिन की तरह भावना को देखते ही बस की सीट पर बैठा पिछले गांव का लड़का अजय बैठने का इशारा करते हुए सीट से उठ जाता है। भावना मुस्काहट के साथ बैठ जाती है। 

शहर में कॉलेज के आसपास इन दिनों बुक सेलर और गिफ्ट गैलरी पर कुछ ज्यादा ही रोनक थी। तरह-तरह के ग्रीटिंग कार्ड सजे थे। युवक-युवती न्यू ईयर संदेश देने के लिए ग्रीटिंग कार्ड पसंद करने में लगे थे। किसी बहन को अपने फौजी भाई को नए साल की शुभकामना भेजनी थी तो किसी को अपने माता-पिता और भाई या दोस्तों को शुभकामना देनी थी। लेकिन एक वर्ग और था जो ग्रीटिंग कार्ड और न्यू ईयर के माध्यम से अपने प्रेम का संदेश देना चाहता था। अकसर सामने से जो बोलने या इजहार करने की हिम्मत नहीं थी, उसको ग्रीटिंग कार्ड के माध्यम से बताना चाहते थे। उड़ाने भरते हुए कबूतरों की चोंच के बीच छपे पन्ने पर हैप्पी न्यू ईयर लिखे कार्ड, दिल में तीर के निशान छपे कार्ड और खोलते ही मधुर संगीत बजने वाले कार्ड भी आ गए थे।

कॉलेज की छुट्‌टी के बाद बस निकलने से पहले अजय ने भी एक कार्ड खरीदकर किताब में छिपा लिया था। उस दौर में कार्ड खरीदना भी खुलेआम नहीं था, सामाजिक दायरे में अवैध हथियार की तरह इसे छिपाकर रखना होता था। घर पर शाम को जब सब सो गए तो पढ़ने के बहाने अजय ने किताबे खोली हुई थी। अक्सर सर्दी में रात को लाइट चली जाती और सुबह ही आती थी। ऐसे में मिट्‌टी का तेल खाली बोतल में भरकर उसमें बाती लगा, दीया बनाकर रखा हुआ था। आज की शाम तो अजय ने मिट्टी तेल को बोतल के किनारे तक भर लिया था। शायद आज देर रात तक रोशनी की जरूरत थी। जब सब सो गए और रात का सन्नाटा पसर गया। गली में भौंकने वाले कुत्ते भी दुबक गए तो किताब में छिपा वह कार्ड रूपी जादूई जिन्न बाहर आया। बस अजय के अंदर का गालिब जाग गया और दिल की बात कलम से होते हुए ग्रीटिंग कार्ड पर शब्दों में पिरोई जाने लगी। शेयरो शायरी मानों अपने आप बनती जा रही थी। दोस्ती की दुहाई देते शब्द जैसे दिल पर छूरी की तरह चलने वाले थे। करीब एक सप्ताह इसी तरह घनघोर रातों में भावनाओं और जज्बातों को ग्रीटिंग कार्ड में सहेजा गया।

नए साल का वो दिन आ गया। बच्चे अपने घरों के बाहर चूने से गली में नया साल मुबारक हो लिख रहे थे, कोई दीवारों पर लिख रहा था। किसी ने नई कॉपी लगाते हुए पहले पन्ने पर हैप्पी न्यू ईयर लिखा। गांव के एक ताऊ ने नए साल से शराब नहीं पीने का निश्चय सबको बताया। भरथू ने बीड़ी का त्याग कर दिया तो ताई भरपाई ने चाय छोड़ने की घोषणा कर दी थी। भावना के घर पर भी नए साल में टेलीविजन लाने की बात उसके पिता ने कही। इस खुशी में वह फूली नहीं समाई और खुशी-खुशी कॉलेज पहुंची। कॉलेज में खाली क्लास में जब भावना धूप में बैठी थी तो अचानक अजय पास आया और चुपके से ग्रीटिंग कार्ड उसके पास छोड़ गया। भावना की नजर उस पर पड़ गई थी लेकिन वह कुछ नहीं बोली क्योकि आज तक सामने से अजय के साथ उसकी मुलाकात नहीं थी। बस हर दिन बस की सीट छोड़ने, आते -जाते हुए देखते भर का साथ था। फिर हिम्मत करते हुए ग्रीटिंग कार्ड को अपने पास छिपा लिया। भावना के गांव के ही कॉलेज में पढ़ने वाले एक लड़के ने यह सब देख लिया।


घर आने के बाद भावना उत्सुकता से रात होने का इंतजार कर रही थी ताकि वह उस ग्रीटिंग को देख सके। उसने पढ़ा तो हैरानी हुई। शब्दों ही शब्दों में उसे दोस्ती का इजहार कर दिया गया था। उसने कभी इस नजरिए से सोचा भी नहीं था। कार्ड में एक बार मिलने का समय और जगह भी लिखी गई थी। अगले दिन तय समय पर दोनों का कॉलेज के सामने समोसे वाले की दिकान पर मिलना हुआ। गांव का लड़का तब तक अपना जाल बिछा चुका था। उसने भावना के पिता को सब बता दिया था। पिता मौके पर पहुंचे और भावना को भला बुरा कहते हुए घर ले आया। गांव के युवाओं ने मिलकर उस युवक की जमकर धुनाई की।

गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई थी। लोगों की जुबां पर युवती और उसके परिवार की ही नहीं बल्कि जात-धर्म की बाते भी आ गई थी। गांव की बदनामी करवाने की चर्चा थी। सभ्य समाज में इस तरह की हरकतें पंचायती तौर पर भी सहन करने वाली नहीं थी। पिता ने घर में तलाश ली तो किताबों में छिपा ग्रीटिंंग कार्ड बाहर आया। गुस्से में कार्ड के पचासों टुकड़े कर चूल्हे की आग में जला दिया गया। भावनाओं के शब्द पतंगे बनकर उड़ रहे थे और उड़ते कबूतरों की तस्वीर राख में तब्दील हो गई थी। घर में फैसला हो चुका था कि भावना अब कॉलेज नहीं जाएगी। सीधे उसकी शादी के लिए रिश्ते की तलाश होगी। एक सप्ताह तक घर में मातम सा पसरा रहा। लेकिन गांव में चर्चा कम होने का नाम नहीं ले रही थी। हर कोई अपनी घर की बेटियां की दुहाई देते हुए ताने कस रहा था।

सामाजिक लाज की वजह से भावना के पिता कठोर फैसला ले चुके थे। गांव को छोड़ देने का। उसने अपने दूर के रिश्तेदारों से इसको लेकर चर्चा भी कर ली थी। अगली सुबह घर खाली था। पूछने पर पता चला कि घर तो पड़ोसी ने खरीद लिया है। घर के पैसे लेकर परिवार कहां रहने लगा शायद ही किसी को पता चल पाया...

नोट- कहानी में नाम काल्पनिक हैं, इससे किसी जाति-धर्म या व्यक्ति विशेष की भावना को ठेस पहुंंचाने का कोई मकसद नहीं है.बल्कि उस दौर की यह एक झलक मात्र है।

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कागजी युग से डिजिटलाइज्ड युग में प्रवेश कर चुके दिलों और दिमाग में यादों को सहेजने की टाइमलाइन कितनी होगी...यह अपने आप में एक सवाल है।


खैर छोड़िए 5जी के दौर में मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर की हार्ड डिस्क है, न सब सुरक्षित रखने के लिए...हा..हा..हा..। 

फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम...हा..हा..हा...।


 नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं....

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