एनसीआर का सबसे बड़ा फूड जंक्शन, पर यहां नॉन वेज बनाने वालों का धंधा नहीं चलता, 70 से अधिक ढाबों व होटल की चेन
फूड जंक्शन बने मुरथल में हर दिन खाना खाने पहुंच रहे हैं 50 हजार लोग
जितेंद्र बूरा.
कभी हाईवे पर ट्रक चालकों के खाने के लिए टैंट-छप्पर वाले ढाबे शुरू करने वाला मुरथल क्षेत्र अब एनसीआर का बड़ा फूड जंक्शन बन चुका है। सोनीपत क्षेत्र में ही 70 से अधिक ढाबाें का सालाना करीब 150 कराेड़ का काराेबार हाे रहा है। 50 हजार से अधिक लाेग हर दिन खाना खाते हैं। लेकिन बड़ी बात यह है कि इतनी बड़ी फूड चेन में नॉनवेज की मनाही है। शुद्ध शाकाहरी ही यहां पकता है। किसी ने नॉनवेज यानि मांसाहारी बनाने के प्रयास भी किए तो उसका धंधा चौपट हो गया।
बाहर खाने का ट्रेंड अब और आगे बढ़कर शहर से बाहर जाकर खाने का हो गया है। इसी का फायदा सोनीपत क्षेत्र के मुरथल को मिला है। पिछले कुछ सालों में यहां ढाबों ने आलीशान होटल का रूप ले लिया है। ट्रकों की बजाय लग्जरी कारें अब बाहर खड़ी होती हैं। दिल्ली से पंजाब के रूट पर चलने वाले यात्री ही नहीं एनसीआर क्षेत्र के लोग पार्टी और शौक में खाना खाने के लिए मुरथल के ढाबों पर पहुंच रहे हैं।
मुरथल का ढाबा कारोबार धीरे-धीरे अब लघु उद्योग में तब्दील हो रहा है। सरकार ढाबाें के लिए अलग से एसटीपी और सीवरेज लाइन बिछाने के लिए बिजली लाइन लगा रही है। दिल्ली से पंजाब, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश व चंडीगढ़ जाने वाले लोग जब घर से निकलते हैं तो खाना खाने की जगह पहले ही तय कर लेते हैं। उनकी पहली पंसद मुरथल के ढाबों पर खाना खाने की होती है।
मुरथल के हर ढाबे पर नाॅनवेज से है परहेज, बाबा कलीनाथ की होती है पूजा
मुरथल के ढाबों पर केवल वेज खाना बनता है। मान्यता है कि मुरथल के बाबा कलीनाथ का इन्हें विशेष आशीर्वाद है। ढाबा संचालकों का मानना है कि ढाबा वालों को बाबा कलीनाथ की कृपा बरस रही है। ऐसी मान्यता है कि बाबा ने आशीर्वाद दिया था कि यहां केवल वेज खाना बनाओ तो कारोबार चलेगा, वरना कारोबार बंद हो जाएगा।
नाम ढाबाें का, थ्री स्टार हाेटल सी बिल्डिंग, अब ट्रक नहीं रुकती हैं लग्जरी कारें
1956 में शुरू हुए थे मुरथल के ढाबे, दाल-चावल से की थी शुरुआत
सन् 1956 में सोनीपत के सरदार प्रकाश सिंह ने मुरथल में एक छोटा सा ढाबा खोला था। उस दौरान ढाबे पर मुख्य रूप से केवल ट्रक ड्राइवर ही खाना खाने पहुंचते थे। सरदार प्रकाश सिंह ने दाल-चावल व रोटी से ढाबा की शुरूआत की थी। इसके बाद ढाबा खोलने का दौर शुरू हो गया। एक के बाद एक करके मुरथल में 1980 तक बीस से अधिक ढाबे खुल गए। अभी मुरथल में करीब 70 ढाबे हैं, जिनमें करीब 25 अच्छे होटल की तरह विकसित हो चुके हैं।
1956 में शुरू हुए थे मुरथल के ढाबे, दाल-चावल से की थी शुरुआत
सन् 1956 में सोनीपत के सरदार प्रकाश सिंह ने मुरथल में एक छोटा सा ढाबा खोला था। उस दौरान ढाबे पर मुख्य रूप से केवल ट्रक ड्राइवर ही खाना खाने पहुंचते थे। सरदार प्रकाश सिंह ने दाल-चावल व रोटी से ढाबा की शुरूआत की थी। इसके बाद ढाबा खोलने का दौर शुरू हो गया। एक के बाद एक करके मुरथल में 1980 तक बीस से अधिक ढाबे खुल गए। अभी मुरथल में करीब 70 ढाबे हैं, जिनमें करीब 25 अच्छे होटल की तरह विकसित हो चुके हैं।
मुरथल अब ढाबा हब के रूप में विकसित हो चुका है। मुरथल के पुराने ढाबों के साथ-साथ अब होटल क्षेत्र के बड़े समूह भी अपनी ब्रांच खोल रहे हैं। प्रतिस्पर्धा के दौर से मुरथल के ढाबे भी अछूते नहीं रहे हैं। ढाबा संचालकों ने ग्राहकों को लुभाने के लिए ढाबों को थ्री स्टार का रूप देना शुरू कर दिया है। अब इन ढाबों पर लजीज खानों के साथ- साथ साउथ इंडियन, नार्थ इंडियन, मिठाई के अलावा चटपटा खाना भी मुहैया कराया जाता है। विदेशी व्यंजन तक यहां बनने लगे हैं। ग्राहकों के मनोरंजन की भी विशेष व्यवस्था की गई है। दिल्ली एयरपोर्ट पर जाने वालों को लिए यहां सस्ते रेट पर कमरों की व्यवस्था भी है। मुरथल के ढाबों पर अब एक होटल की तरह से सभी सुविधाएं दी जा रही है।
अब केवल नाममात्र के रह गए हैं ढाबे, लघु उद्योग में तब्दील हुआ ढाबा कारोबार
उत्तरी भारत में है खास पहचान
सुखदेव ढाबा के संचालक सरदार अमरीक सिंह, झिलमिल ढाबा के मंजीत सिंह, मन्नत हवेली के संचालक देवेंद्र कादयान, सतनाम ढाबा के संचालक पप्पू कुमासपुर ने कहा कि मुरथल के ढाबों की उत्तरी भारत में खास पहचान है। दिल्ली से लेकर जम्मू कश्मीर तक के ग्राहक उनके पास खाना खाने के लिए पहुंचते हैं। विदेशी पर्यटक भी मुरथल के ढाबों पर स्पेशल पराठा खाने के लिए पहुंच रहे हैं। भारत भ्रमण के लिए आ रहे एनआरआई जो जीटी रोड से निकलते हैं, वे मुरथल में खाना जरूर खाते हैं।
उत्तरी भारत में है खास पहचान
सुखदेव ढाबा के संचालक सरदार अमरीक सिंह, झिलमिल ढाबा के मंजीत सिंह, मन्नत हवेली के संचालक देवेंद्र कादयान, सतनाम ढाबा के संचालक पप्पू कुमासपुर ने कहा कि मुरथल के ढाबों की उत्तरी भारत में खास पहचान है। दिल्ली से लेकर जम्मू कश्मीर तक के ग्राहक उनके पास खाना खाने के लिए पहुंचते हैं। विदेशी पर्यटक भी मुरथल के ढाबों पर स्पेशल पराठा खाने के लिए पहुंच रहे हैं। भारत भ्रमण के लिए आ रहे एनआरआई जो जीटी रोड से निकलते हैं, वे मुरथल में खाना जरूर खाते हैं।
मुरथल के ढाबों पर यूं तो ग्राहक की मनपंसद का खाना मिलता हैं, लेकिन यहां का दही पराठा आज भी ग्राहकों की पहली पंसद है। पराठा खाने के शौकीन दिल्ली से स्पेशल खाना खाने के लिए पहुंचते हैं।
सरकार की भी बढ़ी आमदनी :
ढाबा काराेबार ने सरकार की आमदनी में इजाफा किया है। करीब 15 हाेटल, ढाबे ऐसे हैं जो अच्छा खासा टैक्स दे रहे हैं। खाने पर 5 प्रतिशत जीएसटी है। ऐसे में हाईवे पर फला-फूला ढाबा कारोबार देश के विकास में भी भागीदारी दे रहा है।



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