इतिहास के पन्नों में हरियाणा : कल्चर के नाम पर सिर्फ एग्रीक्लचर नहीं, बल्कि देश की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति के प्रमाण हैं यहां
- भारत की सबसे प्राचीन हड़प्पा सभ्यता के प्रमाण हरियाणा की धरती पर मिले हैं..
जितेंद्र बूरा.
किसी ने कहा कि हरियाणा में कल्चर के नाम पर महज एग्रीकल्चर है। ऐसे कहने वाले लोग यहां की संस्कृति से न जुड़े हैं और न ही हरियाणवी इतिहास के पन्नों को उलट कर उन्होंने देखा है। यहां के इतिहास को वर्तमान की परिस्थिति से जोड़कर पढ़ना भी एक अनोखा अनुभव है। यहां की युनिवर्सिटीज अपनी शिक्षा में यहां के इतिहास को बखूबी वर्णन कर पढ़ा भी रही हैं। आइए कुछ संक्षिप्त वर्णन से हम भी जाने अपने हरियाणा के गौरवमयी इतिहासं के अंश।
हरियाणा को इस बात पर गर्व है कि उसके यहां से भारत की सबसे प्राचीन हड़प्पा सभ्यता के अनेक स्थलों की जानकारी प्राप्त हुई है। 3300-1700ई. पूर्व तक मानी गई यह सभ्यता सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है। क्योंकि यह सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे यह आबाद हुई।
हरियाणा में इसके स्थल जैसे..
मीताथल- यह हरियाणा के भिवानी जिले में है। इसकी खुदाई पंजाब विश्वविद्यालय के डॉ. सूर्यभान ने वर्ष 1968 में की। खुदाई की खोज में पता चला कि यह दो भागों में बंटा हुआ था। एक भाग बहुत बड़े दुर्ग की तरह बना हुआ था। इससे अनुमान लगाया गया कि वहां धनी लोग रहते होंगे। दूसरा भाग कम ऊंचाई का जहां सामान्य लोग रहते होंगे। चार दीवारी के बीच बसे भवनों को बनाने में धूप में सुखाई ईंटों का प्रयोग होता था। यहां अनेक प्रकार के बर्तन, मनके, चूड़ियां, बच्चों के खिलौने, पत्थर के बाट, तांबे के उपकरण मिले।
बनावली- यह हिसार जिले में है और फतेहाबाद से 16 किलोमीटर दूर है। सरस्वती नदी जो हरियाणा से होकर बहती थी और अब सूख चुकी है, के किनारे स्थित था। पुरातत्व विभाग ने आरएस वशिष्ट के नेतृत्व में 1974 से 1977 के बीच खुदाई में इसकी खोज हुई। यहां हड़प्पा संस्कृति से पहले की सीसवाल संस्कृति के भी अवशेष मिले हैं। यहां सुविधा अनुसार छोटे भवनों के बीच गलियां एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। इसमें बड़ी संख्या में मिट्टी के लाल एवं स्लेटी रंग के बर्तन मिले। सोने, चांदी व तांबे को आभूषण मिले। शिकार व मछली पकड़ने व हल जोतने के प्रमाण भी मिले है। यहां के लोग खेती करते थे।
राखी गढ़ी - यह हिसार जिले में है। यह भारत में हड़प्पा सभ्यता का 224 हेक्टेयर में फैला सबसे विशाल केंद्र था। सरस्वती किनारे बसी इस सभ्यता की जानकारी वर्ष 1963 में हो गई थी लेकिन वास्तविक खुदाई का कार्य 1997 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा की गई। यहां के लोग नगर निर्माण कला में निपुण थे और घरों से निकलने वाले पानी की उत्तम व्यवस्था। यहां 3 हजार कीमती पत्थर और इन्हें पॉलिस करने का सामान भी प्राप्त हुआ। तांबे का एक बर्तन भी मिला जिसपर सोने व चांदी की सजावट की गई थी। एक श्मशान से 11 शव और इनके साथ दैनिक उपयोग के बर्तन भी मिले। जिसे लगता है कि यहां के लोग मृत्यु के बाद जीवन में भी विश्वास रखते थे।
भगवानपुर - यह कुरुक्षेत्र जिले में हैं। इसकी खुदाई वर्ष 1975-76 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा की गई। यह हड़प्पा काल में सरस्वती किनारे बसा था। योजनाबद्ध तरीके से बसे नगर के चारों तरफ दीवार बनी थी। यहां से मिले तांबे के बर्तन, आभूषण, खिलौने, जानवरों की हडि्डयों के साथ सार्वजनिक भट्ठी के प्रमाण भी मिले हैं। यहां से प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि यहां हड़प्पा सभ्यता एवं आर्य सभ्यता के लोग साथ-साथ रहते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. एचए फड़के का कहना है कि "भगवानपुर की खुदाई प्रारंभिक चरणों की पुरातात्विक वस्तुओं एवं प्रदेश के इतिहास के निर्माण में काफी बहुमूल्य प्रमाणित हुई है।"
दौलतपुर- यह कुरुक्षेत्र जिले में बहने वाली दृषद्वती नदी किनारे बसा था। इसकी खुदाई कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग द्वारा वर्ष 1961-70 तथा 1966-78 तक डॉ. सूरजभान एवं डॉ. यूवी सिंह के नेतृत्व में हुई। यहां हड़प्पा सभ्यता के 2000ई. पूर्व से 1500ई. पूर्व वाले तीसरे चरण से संबंधित है। अन्य नगरों की तरह यह भी शतरंज की बिसात के नमूने पर धनाड़य और सामान्य लोगों के दो भाग में बसा था। यहां अनाज के दाने व तांबे के बर्तन व आभूषण प्राप्त हुए हैं।
सीसवाल - सीसवाल हिसार जिले में हैं। इसकी खुदाई पंजाब विश्वविद्यालय के डॉ. सूरजभान द्वारा 1970 में की गई। यहां से न केवल हड़प्पा सभ्यता के बल्कि उससे भी पुरानी सीसवाल सभ्यता से संबंधित बहुमूल्य सामग्री मिली है। यहां से मनके, अनाज के दाने, बर्तन, जनवरों की हडि्डयां, मछली पकड़ने के कांटे प्राप्त हुए।
बालू - यह कैथल जिले में स्थित है। इसकी खुदाई वर्ष 1978 में डॉ. सूरजभान एवं डॉ. जीमजी शैफर ने की थी। यहां से हड़प्पा सभ्यता से संबंधित भवन, बर्तन, कीमती पत्थर, जानवरों की हडि्डयां प्राप्त हुई। बालू के टीले से भी यह विख्यात है। इस टीले की 109 कनाल एवं 8 मरले अथवा 13 एकड़् 15 कनाल भूमि पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है, यहां बिना मंजूरी खुदाई नहीं हो सकती। सीमित क्षेत्र में खोज के लिए यहां खुदाई हुई है।
मिर्जापुर - यह कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के निकट हड़प्पा सभ्यता से संबंधित स्थल है। इसकी खुदाई कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग द्वारा वर्ष 1972-73 और फिर 1975-76 में करवाई गई। यहां उत्तरी हड़प्पा काल से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण वस्तुएं- अनाज के दाने, खिलौने, आभूषण, कीमती पत्थर, शिकार करने के प्रमाण मिले हैं।
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का जीवन सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, कला के तौर पर काफी समृद्ध था। इसमें परिवार संयुक्त थे और समाज मातृसत्तात्मक था। विशाल भवनों में कुनबे के साथ लोगों के रहन-सहन का अंदाजा लगाया गया है। माप-ताेल के प्रमाण भी इसमें मिले हैं। इसकी लिपि चित्रीमयी है। इसके प्राप्त वर्णों की कुल संख्या लगभग 375 से 400 के मध्य है। हर वर्ण किसी ध्वनि, भाव या वस्तु का सूचक है। यह लिपि बाएं से धाएं की तरफ लिखी गई है और अभी यह पढ़ी नहीं जाने से रहस्यमयी है। खेती से अनाज पैदा करने और पशु पालन से भी यहां के लोग जुड़े थे। आज भी हरियाणा कृषि प्रधान और संयुक्त परिवारों व समाजिक ताने-बाने में ठेठ संस्कृतिक के साथ उन्नति के पथ पर आगे बढ़ रहा है।
प्रसिद्ध इतिहासकार एसआर शर्मा ने लिखा है कि - सिंधू घाटी के लोगाें की सामाजिक व्यवस्था मिश्र तथा बेबीलोन की तुलना में बहुत श्रेष्ठ थी।


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