शहीद कवि फौजी मेहर सिंह के गाए किस्सों में से एक किस्सा : सत्यवान-सावित्री

शहीद कवि फौजी मेहर सिंह के गाए किस्सों में से एक किस्सा : सत्यवान-सावित्री


शहीद कवि फौजी मेहरसिंह ने प्रेम-प्रधान, नीति प्रधान, देशभक्ति प्रधान आदि तीन प्रकार के किस्सों की रचना की। साहित्यकार डॉ. संतराम देशवाल बताते हैँ कि वे फौजी जवान और किसान की अनसुनी और अनदेखी पीड़ाओं के अनूठे चितेरे हैं। 




   
सत्यवान -सावित्री का किस्सा नीति-प्रधान है। इसमें पतिव्रता नारी किस तरह अपने पति के प्राण बचा लेती है इसका वर्णन है।
             बताया गया है कि राजा अश्वपति  के घर  देवी के वरदान से कन्या पैदा हुई ,जिसका नाम सावित्री रखा गया। जब सावित्री जवान हुई तो सर्वत्र घूमने पर भी राजा को उसके योग्य वर नहीं मिला। इस पर राजा ने सावित्री को खुद अपने योग्य वर ढ़ूंढ़ने की अनुमति दे दी। रागनी में बताया कि-

" अरथ जुड़ा कै चाल्य पड़ी,कितै वर जोड़ी का पावै,
  उस मालिक का भजन करूँ, जै मेरी जोट मिलावै ...।
           
सावित्री चलते चलते एक जंगल में पहुंचती है तो उसे एक युवक लकड़ी काटता हुआ मिलता है। वह उससे उसका परिचय पूछती है कि-

 "हाथ जोड़ कै अरज करूँ सूँ , सुणले बचन हमारा,
  मैं बूज्झूँ सूँ तनै परदेसी ,कित घर गाम तुम्हारा ...।
 मेहरसिंह कित फिरै भोंकता ,इस हल़ बिन नहीं गुजारा।"
            
  सत्यवान परिचय देते हुए कहता है कि -

" ... याद कर पाछले समय नै रोता,
       मैं अपणी जिन्दगानी नै खोता,
       लकड़ी ढ़ोता रोज मैं,था गद्दी का हकदार,
        न्यूँ पंज्यर सूख कै होग्या...।"
              
सावित्री उससे शादी कर लेती है और अपने घर ले आती है। सत्यवान वहां मौजूद दरबारियों को अपने बारे में  बताता है। रागनी में बताया कि-

"मेहरसिंह भाग लिखा लिया खोटा,
 माणस चाहे बड्डा हो या छोटा,
 यो टोटा छोड़ता ना  जात ,प्यारे लिकड़ै सैं मुँह मोड़ कै।"

सावित्री के माता-पिता उसे सत्यवान के साथ शादी न करने की सलाह देते हैं। उधर,नारद मुनि आकर बताते हैं कि सत्यवान की एक साल बाद मौत हो  जाएगी। फिर भी ,सावित्री नहीं मानती। वह सत्यवान के साथ कुटिया में पहुंच कर अपनी सास के चरण छूती है तो उसकी सास कहती है कि-

" पायां कै म्हां लोट गई, झट सासू नै पुचकारी,
आ बेटी तेरे लाड़ करूँ,मनै बेटे तै भी प्यारी...।
मेहरसिंह खड्या बोडर पै दे ड्यूटी सरकारी।"
              
नारद मुनि की भविष्यवाणी के अनुसार साल का अंतिम दिन आ जाता है। सावित्री  सत्यवान के साथ लकड़ी लाने के लिए जंगल में जाती है। वह नारद  की भविष्यवाणी को जानती है। सत्यवान इस बात को नहीं जानता। सत्यवान को पेड़ पर यम के दूतों ने आकर घेर लिया। इस समय सत्यवान कहता है कि-

" सावित्री मेरा जी घबरावै,सिर गोड्यां म्हं धर ले,
मरती बरियां प्राण पति के लाड़ आखरी कर ले ।"
               
सावित्री सत्यवान का सिर गोद में लेकर रूदन करने लगी । यमराज के दूतों की पतिव्रता के पास जाने की हिम्मत नहीं हुई तो खुद यमराज सत्यवान  के प्राण लेकर चल पड़े। सावित्री भी पीछे पीछे चल पड़ती है। 
                   यमराज उसे नियति का हवाला देकर  सत्यवान के प्राणों को छोड़कर अन्य वर मांगने के लिए कहते हैं।-

"तेरा पति तनै फेर मिलै ना,
मांग बेटी तूं कोए और वरदान ले...।
गाए बजाए बिना चमन खिलै ना,
मेहरसिंह तू सतगुरू तै ज्ञान ले।"
              सावित्री ने अपने नेत्रांध सास-ससुर की आँखें , अपना खोया हुआ राज्य और एक बेटा होने का वरदान मांग लिया।  यमराज ने ये सभी वरदान  दे दिए। 
  सावित्री फिर  पीछे चली और यमराज को कहा -" महाराज! मैं पतिव्रता नारी हूँ। पति के बिना बेटा होने का वरदान कैसे फलीभूत होगा ?"
                 यमराज को हार माननी पड़ी। वे
सावित्री की आधी उम्र सत्यवान को देकर उसके प्राण छोड़कर यमलोक में वापस चले गए। 

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