कुत्ता मार बणजारा रोया,आज वाहे कहाणी बणगी, मैं काल़ा तूं भूरी थी, आज क्यूकर राणी बणगी...

शहीद कवि फौजी मेहर सिंह का गाया किस्सा : अंजना पवन

लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार सुभाष ने 1993 में नवभारत टाइम्स में "रागनी वाला सिपाही फौजी मेहर सिंह" के नाम से लेख लिखा। बताया गया है कि फौज से आखिरी रागनी कवि मेहरसिंह ने अपने पिता के नाम भेजी थी। जिसमें उन्हांने अपने मित्रों, माता-पिता, भाई व अपनी पत्नी को सांत्वना दी कि यदि वे लड़ाई में शहीद हो जाएं तो लोग मन न मनाएं, क्योंकि वे देश के लिए शहीद होंगे। इस पर उन्होंने एक रागनी में गाया कि -
साथ रहणियांसंग के साथी, दया मेरे पै फेर दिया।
 देश के ऊपर ज्यान झोंक दी, लिख चिट्‌ठी में गेर दियो...।।


फौजी मेहर सिंह के गाए किस्सों में एक किस्सा है अंजना- पवन
     एक समय की बात है। रतनपुरी में राजा विद्यासागर राज किया करते।उनकी रानी का नाम केतुमती था ।उनका पुत्र पवन एक महान योद्धा था। पवन रंग का सांवला था, परन्तु  उसकी शौर्यगाथा चारों तरफ  फैली हुई थी। महेन्द्रपुर नगरी के राजा महेन्द्र सिंह की लड़की अंजना राजकुमार पवन की वीरता से बेहद प्रभावित थी।
  अंजना के विवाह के लिए राजकुमारों के फोटो मंगवाकर अंजना को दिखाए गए। अंजना की मां रानी हृदयवेगा चाहती थी कि अंजना राजकुमार उद्यतपर्व को चुने , जोकि रूपवान था, लेकिन अंजना शूरवीर पवन को चुनती है। दोनों तरफ से सहमति होकर शादी की तैयारी शुरू हो जाती हैं। रागणी से बताया कि -
  
" चाची ताई अगड़ पड़ोसन गीत गुवावण लागी ,
    पवन भूप नै बान बैठा कै नायण नुहावण लागी।
            बारात तय समय पर महेन्द्रपुर नगरी में पहुँच जाती है। जब अंजना की सखी -सहेली पवन को देखती हैं तो तानें मारती हैं और अंजना को शादी से इंकार करने के लिए कहती हैं ,लेकिन , अंजना कहती है कि मेरे पिता ने मेरी इच्छा के अनुरूप मेरा पति चुना है। शादी सम्पन्न हो जाती है। डोली में बैठाते समय रानी हृदयवेगा अपनी बेटी को समझाते हुए कहती है-
 " आया जाया करिए बतलाया माया करिए,
   कमाया खाया करिए ,बेटी सासरे के बास म्हं।...
   मेहरसिंह हल़ बाहणा के ,
   ल्याणा ले जाणा के ,गाणा बजाणा के,
   तेरा नाम खासमखास म्हं।"
पवन को अंजना की सखियों के ताने चुभ गए थे। वह अंजना को कहता है कि-
    " कुत्ता मार बणजारा रोया,आज वाहे कहाणी बणगी,
       मैं काल़ा तूँ भूरी थी, आज क्यूकर राणी बणगी।...
       मेहरसिंह का दोष नहीं, तेरी दुश्मन बाणी बणगी।"
   पवन सखियों के मजाक को अपनी तौहीन मानकर बदला लेने के लिए अंजना को बारह साल का दुहाग दे देता है।  होते होते ग्यारह साल बीत गए। सावन के महीने में अंजना अपने पति पवन को याद करती है। उधर , युद्ध  भूमि में रात को पहरेदारी देते समय पवन को एक चकवी के रोने की आवाज सुनाई देती है। रागनी में बताया गया कि -
  " आधी रात परिन्दे बोल्ले वा चकवी जंग झोवै थी ,
     पहरे ऊपर पवन जागता, फौज पड़ी सोवै थी।...
            
चकवा-चकवी का जिक्र पवन रात को ही अपने मंत्री के साथ इस प्रकार करता है कि-
 " एक रात के बिछड़ण तै दो पक्षी कायल  हो लिए,
   अंजना का मुँह देखे मंत्री ग्यारा साल हो लिए।...
    दो रात फौज नै डाट्य मंत्री जांगा ब्याही धोरै,...
    कहै मेहरसिंह  चौड़े म्हं लुटग्या कालर कोरै,
    जो अंजना तै बचन भरे थे,खतम सवाल हो लिए।"

पवन मंत्री से इजाजत लेकर अंजना से मिलने पहुंच जाता है। अंजना पवन को समझाती है कि वह राजा-रानी को बताए बिना इस रात बारह साल से पहले उससे न मिले ,मगर ,पवन सारी रात अंजना के साथ व्यतीत करके सुबह होने से पहले वापस लौट जाता है। अंजना गर्भवती हो जाती है। अंजना की सास इस बारे में पूछती है तो वह रात को पवन के आने की बात बता देती है ,लेकिन , उसकी सास कुलटा होने का लांछन लगाकर  उसे महलों से निकाल देती है।
 अंजना दुखी मन से अपने पीहर चली जाती है, मगर उसकी मां भी बुरा-भला कहकर उसे घर से निकाल देती है। उधर ,पवन को अंजना का सपना आता है और वह राजमहल में पहुंचकर अपनी माँ से अंजना के बारे में पूछता है कि-
" नौमा महीना गर्भ लाग्य रह्या, वा राखी कोन्या पास तनै,
... मेहरसिंह के करम माड़े,दें बोडर ऊपर भेज मनै।...
कितै सिंगापुर म्हं मारया जां, ना मिलै पूत की ल्हास तनै।"
       
 अंजना भटकते भटकते एक ऋषि के आश्रम में पहुँच जाती है।ऋषि के पूछने पर वह बताती है कि - 

 "...मेरे पति का नाम पवन सै,जिसकै गल़ लाई थी...।
मेहरसिंह ना कोए सहारा ,न्यूँ मरण बणां म्हं आई थी।"
            
 दूसरी तरफ ,पवन अंजना को खोजता खोजता जंगल में पहुंचता है और उसी झेरे में गिर जाता है,जिसमें अंजना गिरी थी। झेरे में उसे वही अंगूठी गिरी मिलती है ,जो उसने अंजना को दी थी कि -
"अंगूठी देख पवन झेरे म्हं रोया रै,
अंजना के फिकर नै दुनियां तै खोया रै...।
 मेहरसिंह सुर ज्ञान बिना, बृथा थूक बिलोया रै।"
         
 पवन अंजना के विरह में दुखी होकर प्राण त्यागने की सोचता है और रोते रोते कहता है कि-
" कितै ल्हुक री हो तै बोल पड़ै नै ,कद का रुक्के दे रह्या,
ना तै जल़ कै खो दूँ ज्यान टका सी, जी मुट्ठी म्हं ले रह्या...
कहै जाट मेहरसिंह पेट का तै,भरणा होगा झेरा।"
          
तभी दैवयोग से वहाँ ऋषि के साथ अंजना पहुँच जाती है,जिसे देखकर पवन बेहद खुश होता है और कहता है-
"रह्या था मरी मान मैं, इस जंगल बियाबान म्हं,
क्यूँ रोवै,खोवै टोहवै, के हूर की परी रै...।
गावै मेहरसिंह जाट रै,
घरां बातां के ठाठ रै,
आड़ै रचरे बिछरे सजरे गिंडवे दरी रै।"
         अन्तत: पवन अंजना को महलों में ले जाता है। अंजना का गर्भ पूरा हो जाता है। वह एक लड़के को जन्म देती है, जिसका नाम हनुमान रखा जाता है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हरियाणा में गाए गए 24 प्रसिद्ध सांग, हर रागणी में मिलता है जीवन का मर्म

यहां स्नान करने से मिलता है 68 तीर्थों में स्नान जैसा पुण्य

जींद रियासत के बटेऊ (दामाद) ने 1915 में ही देश के बाहर बना दी थी 'आजाद हिंद' सरकार! नोबेल के लिए हुए थे नॉमिनेट, अब इनके नाम से बनेगी यूनिवर्सिटी