शहीद फौजी मेहरसिंह : तख्त पर सांग नहीं गाया पर लोक गायकी में इतिहास में दर्ज है नाम
होगी कुनबा घाणी,कित राजा कित राणी,
कित सरवर कित नीर,कित बन्दे की ज्यान सै।
कित सरवर कित नीर,कित बन्दे की ज्यान सै।
जितेंद्र बूरा.
सोनीपत जिले के बरोणा गांव में जन्में फौजी मेहरसिंह एक सुप्रसिद्ध किस्साकार हुए हैं। वर्ष 1936 में 18 से 20 की उम्र में वे फौज में भर्ती हुए। स्वतंत्रता सेनानियों में उनका अहम नाम है। समसपुर गांव में प्रेमकौर से उनकी शादी हुई। दो कारणों से उन्होंने सांग का बेड़ा बांधकर सांग नहीं किए। पहला, उन पर आर्य समाज का गहरा प्रभाव था और दूसरा, उन्होंने अपने पिता जी को वचन दे दिया था कि वे सांग नहीं करेंगे। उनके पिता नहीं चाहते थे कि वे सांग गाएं। फिर भी, उन्होंने फौज की नौकरी के दौरान लेखन और गायन जारी रखा, लेकिन समकालीन सांगियों की तरह कभी तख्त पर सांग नहीं गाया। साथियों के साथ आजाद हिंद फौज में शामिल हुए। वर्ष 1945 में रंगून में वे शहीद हो गए और अपनी दास्तां इतिहास के पन्नों के लिए छोड़ गए। उनके असल चित्र तक नहीं मिल सके। हालांकि बरोणा गांव में उनकी प्रतिमा शहीद स्मारक समिति ने लगवाई है।
- छुट्टी के दिन पूरे हो लिए, फिकर करण लाग्या मन में।
बांध बिस्तरा चाल पड़ा, जबबाकी के रहगी तन में।
लोक गायकी में फौजी मेहर सिंह हमेश के लिए अमर हैं। उनके ऊपर कई साहित्यकारों ने लिखा भी। हरियाणा साहित्य अकादमी के जनकवि मेहरसिंह पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार सोनीपत के डॉ. संतराम देशवाल ने उनकी ग्रंथावली भी लिखी है। देशवाल ने बताया कि अब तक फौजी मेहर सिंह के ' सरवर नीर ' , अंजना पवन , सत्यवान सावित्री, चापसिंह सोमवती, जगदेव बीरमती, अजीत सिंह राजबाला, रूप बसंत, पदमावत, काला चांद, राजा हरिश्चंद्र, वीर हकीकत राय, अणबोल दे, सुन्दरा दे-पूरणमल, नेताजी सुभाषचंद्र बोस नामक चौदह सम्पूर्ण सांग/किस्से उपलब्ध हो चुके हैं।
इसके अलावा, राजा नल, गजनादे, सेठ ताराचंद, चंदकिरण, शाही लकड़हारा, पूरणमल, महाभारत, नौटंकी, हीर रांझा, कृष्ण लीला, हरनंदी का भात नामक ग्यारह सांगों की बाईस रागनियां मिली हैं, जिसका मतलब यह हुआ कि ये किस्से भी उन्होंने पूरे लिखे होंगे।
यही नहीं ,इस जनकवि की इक्यावन फुटकर रागनियां और नौ भजन भी उपलब्ध हुए हैं। इन सभी किस्सों, रागनियों, भजनों को ' शहीद कवि फौजी मेहर सिंह ग्रंथावली ' के रूप में प्रकाशित किया गया है। इसका लोकार्पण पंडित लखमीचंद के पौत्र व प्रसिद्ध सांगी पं विष्णुदत्त जी के सान्निध्य में वर्ष 2020 में 15 फरवरी को फौजी मेहरसिंह जयंती के अवसर पर उनके पैतृक गाँव बरोणा (सोनीपत) में हो चुका है। इस ग्रंथावली का सम्पादन डॉ सन्तराम देशवाल ने किया है तथा संग्रह-सहयोग श्री सन्नी दहिया ने किया है।
फौजी मेहरसिंह ने सबसे पहले ' सरवर नीर' नामक किस्सा लिखा। फौज में भर्ती होने से पहले वे एकबार अमृतसर गए थे। वहीं पर उन्होंने 'सरवर नीर' की रचना की।
" होगी कुनबा घाणी,कित राजा कित राणी,
कित सरवर कित नीर,कित बन्दे की ज्यान सै।...
या कार बड़े स्याणे की ,मेहरसिंह जाट तेरे गाणे की,
दुनिया पीट रही लकीर, गुरु लखमीचन्द का ज्ञान सै।"

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