किस्सों और परंपरा की है हरियाणा में होली - फाग
- सोशल से... सोशल मिडिया तक सिमट रही होली के अनोखे किस्से
- हरियाणा के गांवों में अनोखे हैं होली के किस्से, भाभियों के कोरड़ों का सप्ताह में उतरता है रंग
जितेंद्र बूरा.
कच्ची अंबरी गदराई सामण मैं.. बूढ़ी लुगाई मस्ताई फागण मैं..।
इन्ही लोक गीतों से रंगीन है हरियाणा की होली। यहां भाभियों के गीले कोरड़े बदन पर बारिश की तरह पड़ते हैं, नागिन की तरह लिपटते हैं। हाेली का रंग तो धोने से उतरता है लेकिन कोरड़ों से शरीर पर पड़ा नीला रंग जितना धोएं, उतना निकलता है। अकसर महिला दिवस के बाद होली आती है और स्वाभिमान से भरी महिलाएं पूरे साल का हिसाब- किताब इस दिन ही पुरुषों से लेती हैं। दिनभर चौक, चोराहों पर पानी और रंग उड़ेलते युवाओं की टाेली। डंडा हाथ में लेकर भीगे बंदन में कपड़े से बने महिलाओं के कोरड़ों से बचने का प्रयास करते हैं। चाची, ताई, भाभी ही नहीं दादी से भी उसके नेग यानि उसके हम उम्र देवर खेलने को घरों पर दस्तक देते हैं।
ठहरिए..ठहरिए जनाब...। किस जमाने की बात कर रहे हैं..। होली पर मन में उठकर जुबान पर आए इन ख्याल को आखिर विकास ने बीच में टोककर रुकने की लाल बत्ती दिखा दी। लंबे समय बाद चार-पांच दोस्त होली पर इकट्ठा हुए थे। होली तो बच्चों का खेल होकर रह गया है। कोरोना ने तो दो साल माहौल फीका रखा। अनेक बड़े कार्यक्रम रद्द हो गए थे। अब भी वो जोश और उत्साह कहां..।
यह मानकर घर के चौबारे में अपने-अपने मोबाइलों में झांक रहे थे। शहर में नौकरी और भागदौड़ के जीवन के बीच होली के अवसर पर गांव में पहुंचे थे।
विकास ने कहा भाई होली भी मोदी सरकार के डिजिटलाइजेशन की शिकार हो गई है। गलियां खाली हैं, कहीं शोर नहीं पर ये देखो इंस्टाग्राम पर रंग-गुलाल लगाकर आपस में झूठमाट के खेल की वीडियों खूब परोसी गई हैं। पत्नी या भाभी को मनाकर थोड़ा सा रंग लगाकर सेल्फी लेकर फेसबुक पर डाली जा रही है। भाई हालात तो यह हैं कि घर का बच्चा स्कूल में भी जैसे-तैसे होली मनाकर आता है तो ड्रेस खराब होने की डांट खाता है।
अब मुझसे रहा नहीं गया...। बस यार...। यह बोलकर तुम हरियाणवी होली के उत्साह को ठेस पहुंचा रहे हो। यहां की होली के किस्से तो दूर-दूर तक जाने जाते हैं। पानीपत के
नोल्था गांव की डाट होली नहीं सुनी क्या।
हिसार के किरोड़ी गांव से पहुंचे विकास ने पूछा वो कैसे खेलते हैं।
मैं भी अब शुरू हाे गया। भाई पानीपत के नजदीक लगता
नोलथा गांव है। वहां होली पर पूरा गांव सामूहिक डाट होली खेलता है। गांव की चौपाल में बड़े कढाए रखकर रंग घोला जाता है। महिलाएं चाैपाल में इकट्ठा होती हैं या छतों पर रंगों के पानी से भरी बाल्टियां लेकर रहती हैं। गांवों के युवाओं की टोलियां दीवार के पास लगती हैं और दोनों तरफ से रस्सा कसी की तरह जोर आजमाइश होती है। दोनों तरफ की टोलियां एक-दूसरे को पीछे धकेलते हैं और उनका जोश कम करने के लिए लगातार उन पर महिलाएं पानी बरसाती हैं। दिनभर यह जीत-हार का दौर चलता है।
हां भाई...। और सुन...। अपने जींद के हाट गांव में तो शाम ढलने के बाद आधी रात तक अंधेरी होली खेली जाती है। दिनभर युवाओं की और शाम को हमारे परिवारों के बड़े और बुजुर्गां की होली शुरू होती है। शाम का खाना जल्दी खाकर और काम काज निपटाने के बाद चौराहों पर आवाजे गूंजती हैं। महिलाओं को घर से पानी डाल-डालकर बाहर निकाला जाता है। फिर आधी रात तक बीच चौराहे पर कोरड़े बरसाती होली खेली जाती है।
सोनीपत के जाखौली में भी होली की अनोखी परंपरा थी। यहां होली के दिन पूरी पंचायत और गांव के मौजिज लोग उन घरों में जाते थे, जिनके यहां पिछले एक साल में कोई मौत या दुर्घटना हुई हो। पीड़ित परिवारों का हौंसला बढ़ाते हैं और होली के रंगों के साथ फिर से खुशी भरा जीवन जीने का संदेश देते हैं। बस कुछ साल से होली चुनावी रंजिश में एक मर्डर होने के बाद यह परंपरा फीकी पड़ गई। लेकिन अब दोबारा पहले वाला दौर लौट रहा है।
जींद में ही खरक रामजी गांव के निराकार मंदिर पर तो भाई दुल्हंडी से एक दिन पहले होलिका दहन के दिन भारी मेला लगता है। कुश्ती दंगल होता है और यूपी व दिल्ली से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं।
अब विकास भी बोल उठा। भाई हिसार क्षेत्र में बागड़ी होली का भी अलग ही अंदाज हैं। पलवल जिले के गांव बंचारी में तो होली पर गायकों की अलग-अलग मंडलियां जमती हैं और दूर-दूर से आए श्रोताओं को महमानों की तरह ग्रामीण भोजन कराते हैं। यहीं रंग-गुलाल लगाकर खुशी बांटी जाती है।
होली के किस्सों का दौर चल ही रहा था कि चौबारे की खुली खिड़की से अचानक ढेर सारे पानी की बौछार हम सब पर आ गई। पड़ोस का सोनू तो इसी ताक में था। बस अब भीग ही गए तो घर कहा ठहरना था। रंग-गुलाल लेकर उतर गए गलियों में। दिनभर भाभियों के दरवाजे पर जाकर रंग लगाया, कोरड़े खाए। रंगीन हुए चेहरों काे पहचान पाना भी मुश्किल हो रहा था। वीडियो डालने या फोटो लेने वाले फोन भीगने के डर से घरों में स्विच ऑफ पड़े थे।
हैप्पी होली....।
अब मुझसे रहा नहीं गया...। बस यार...। यह बोलकर तुम हरियाणवी होली के उत्साह को ठेस पहुंचा रहे हो। यहां की होली के किस्से तो दूर-दूर तक जाने जाते हैं। पानीपत के
नोल्था गांव की डाट होली नहीं सुनी क्या।
हिसार के किरोड़ी गांव से पहुंचे विकास ने पूछा वो कैसे खेलते हैं।
मैं भी अब शुरू हाे गया। भाई पानीपत के नजदीक लगता
नोलथा गांव है। वहां होली पर पूरा गांव सामूहिक डाट होली खेलता है। गांव की चौपाल में बड़े कढाए रखकर रंग घोला जाता है। महिलाएं चाैपाल में इकट्ठा होती हैं या छतों पर रंगों के पानी से भरी बाल्टियां लेकर रहती हैं। गांवों के युवाओं की टोलियां दीवार के पास लगती हैं और दोनों तरफ से रस्सा कसी की तरह जोर आजमाइश होती है। दोनों तरफ की टोलियां एक-दूसरे को पीछे धकेलते हैं और उनका जोश कम करने के लिए लगातार उन पर महिलाएं पानी बरसाती हैं। दिनभर यह जीत-हार का दौर चलता है।
हां भाई...। और सुन...। अपने जींद के हाट गांव में तो शाम ढलने के बाद आधी रात तक अंधेरी होली खेली जाती है। दिनभर युवाओं की और शाम को हमारे परिवारों के बड़े और बुजुर्गां की होली शुरू होती है। शाम का खाना जल्दी खाकर और काम काज निपटाने के बाद चौराहों पर आवाजे गूंजती हैं। महिलाओं को घर से पानी डाल-डालकर बाहर निकाला जाता है। फिर आधी रात तक बीच चौराहे पर कोरड़े बरसाती होली खेली जाती है।
सोनीपत के जाखौली में भी होली की अनोखी परंपरा थी। यहां होली के दिन पूरी पंचायत और गांव के मौजिज लोग उन घरों में जाते थे, जिनके यहां पिछले एक साल में कोई मौत या दुर्घटना हुई हो। पीड़ित परिवारों का हौंसला बढ़ाते हैं और होली के रंगों के साथ फिर से खुशी भरा जीवन जीने का संदेश देते हैं। बस कुछ साल से होली चुनावी रंजिश में एक मर्डर होने के बाद यह परंपरा फीकी पड़ गई। लेकिन अब दोबारा पहले वाला दौर लौट रहा है।
जींद में ही खरक रामजी गांव के निराकार मंदिर पर तो भाई दुल्हंडी से एक दिन पहले होलिका दहन के दिन भारी मेला लगता है। कुश्ती दंगल होता है और यूपी व दिल्ली से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं।
अब विकास भी बोल उठा। भाई हिसार क्षेत्र में बागड़ी होली का भी अलग ही अंदाज हैं। पलवल जिले के गांव बंचारी में तो होली पर गायकों की अलग-अलग मंडलियां जमती हैं और दूर-दूर से आए श्रोताओं को महमानों की तरह ग्रामीण भोजन कराते हैं। यहीं रंग-गुलाल लगाकर खुशी बांटी जाती है।
होली के किस्सों का दौर चल ही रहा था कि चौबारे की खुली खिड़की से अचानक ढेर सारे पानी की बौछार हम सब पर आ गई। पड़ोस का सोनू तो इसी ताक में था। बस अब भीग ही गए तो घर कहा ठहरना था। रंग-गुलाल लेकर उतर गए गलियों में। दिनभर भाभियों के दरवाजे पर जाकर रंग लगाया, कोरड़े खाए। रंगीन हुए चेहरों काे पहचान पाना भी मुश्किल हो रहा था। वीडियो डालने या फोटो लेने वाले फोन भीगने के डर से घरों में स्विच ऑफ पड़े थे।
हैप्पी होली....।




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