यमुना की बदलती धारा से पनपे हरियाणा व यूपी के सीमा विवाद, सालों से लड़ी जा रही कब्जा पाने की लड़ाईयां



1975 में हुए दीक्षित अवार्ड के अधिकतर पिलर हो चुके गायब, अब सीमा विवाद मिटाने के लिए दोबारा लगेंगे।
सोनीपत की 32 किलोमीटर में दोनों तरफ के 46 गांवों की सीमा, युपी के किसानों पर आज भी 1500 एकड़ भूमि दबाने के आरोप
सोनीपत से करनाल की सीमा तक लगे 464 सीमा पत्थरों में से महज 32 ही बचे हैं।
अलग-अलग समय में 85 से अधिक किसानों कब्जा व हमला करने के आरोप में हो चुके मामले दर्ज

जितेंद्र बूरा.

यमुना की तलहटी पर बसे सोनीपत जिले के मनोली गांव के रामफल और शीतल अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनके नाम 40 साल पहले सरकार ने सरप्लस योजना के तहत जमीन अलॉट की थी। समय के दौर में यमुना की धारा बदलती रही। अब खेतों की जमीन यमुना के उस पार उत्तर प्रदेश के बागपत की तरफ है। उत्तर प्रदेश के लोगों ने उस पर कब्जा किया है। रामफल का बेटा नरेश और शीतल का बेटा ओमप्रकाश अपनी जमीन को बोना तो दूर सही से देख तक नहीं पाए हैं। मनोली गांव के ही 50 परिवारों की करीब 200 एकड़ जमीन पर उत्तरप्रदेश के किसानों का कब्जा है। हरियाणा और यूपी का सीमा विवाद ऐसा है कि पिछले 12 साल से ये लोग अपने हक के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।



सीमा के इस विवाद के हालात चौंकाने वाले है। 44 साल पहले दोनों राज्यों की सीमा तय करने के लिए दीक्षित अवार्ड के तहत पिलर लगाकर सीमांकन तो किया लेकिन रेवन्यु विभागों की उदासीनता से रिकॉर्ड आज तक दुरुस्त नहीं हो पाए। दूर-दूर तक युमना पर सीमा तय करने वाले पत्थर नजर नहीं आ रहे हैं। कहीं यमुना के बहाव में बह गए, कहीं किसानों ने उखाड़ लिए तो कहीं माइनिंग के खनन ने इन्हें निगल लिया। यमुना उफान पर आती है ओर धारा कभी हरियाणा तो कभी उत्तर प्रदेश की तरफ हो जाती है। यमुना का पानी खाली होते ही यहां सीमा विवाद शुरू हो जाता है। पिछले दस सालों में ही सोनीपत जिले में आठ से अधिक बार अलग-अलग जगह विवाद पनप चुके हैं। उत्तरप्रदेश के 85 से अधिक किसानों पर कब्जा व हमला करने के मामले दर्ज हो चुके हैं। 250 से अधिक एकड़ जमीन का विवाद न्यायालयों में विचाराधीन है।

खुद की जमीन पर कब्जे, मजदूरी कर पाल रहे परिवार
मनोली गांव के राजेंद्र प्रसाद पिछले 12 साल से यूपी के किसानों द्वारा उनकी और गांव के करीब 50 लोगों की 200 एकड़ जमीन पर हुए कब्जों की लड़ाई लड़ रहे हैं। राजेंद्र प्रसाद का कहना है कि गांव के भूमिहीन लोगों को सरप्लस योजना में वर्ष 1979 व 1984 में जमीन अलॉट की थी। उसकी किश्तो में राशि अदायगी के पास जमीन उनके नाम भी हो गई। यमुना के धारा बदली तो खेत यमुना के उस पार बागपत की तरफ हो गए। इसके बाद उनकी जमीनों पर वहां के किसानों ने कब्जे करने शुरू कर दिए। जैसे-तैसे यमुना पार कर फसल बीजते हैं तो वे काट लेते हैं या फिर खुद ही फसल बीज देते हैं। पिछले 40 साल में डीसी पांच बार कब्ज हटाने के आदेश जारी कर चुके हैं लेकिन कब्जे नहीं हट पाए हैं। मनौली के वियज, ऋषि, धर्मबीर, योगेंद्र, रामसिंह ने कहा कि खुद की जमीन होते हुए भी 50 परिवार दूसरे किसानों के खेतों में मजदूरी कर परिवार पाल रहे हैं।


जमीन पर ले रखा ऋण, बैंक ने थमाया कुर्की नोटिस
मनौली के कैलाश नंबरदार, किसान संघ नेता ताहर सिंह चौहान का कहना है कि उनके गांवों के किसानों ने जमीन की फर्द पर बैंक से फसली ऋण ले रखे हैं। जमीनों पर कब्जा नहीं मिलने से ऋण उतार पाना मुश्किल हो रहा है। कुछ किसानों को तो बैंक जमीन कुर्की तक के नोटिस दे रहे हैं और मजदूरी कर ऋण चुकाने में लगे हैं।


कब्जे कर गांव तक बसाने आ गए थे, हमले में मै खुद घायल हुआ
पूर्व सरपंच बृजमोहन ने बताया कि मई 2018 में मनौली- पावसरा व यूपी के काठा- टौकी गांव के किसानों के बीच नौ एकड़ जमीन के कब्जे को लेकर विवाद हो गया था। कब्जा धारियों ने कहा कि कभी उनका यहां धारानगर गांव था जोकि बाढ़ के बाद दूसरी जगह आबाद हुआ। ऐसे में जमीन उनकी है। उन्होंने रातोंरात झुग्गियां व झोपड़ी तक उनके खेतों में डाल दी। यहां के किसानों ने विरोध किया तो यूपी के काठा व टौकी गांव के लोगों ने लाठी, डंडे व फरसे से हमला किया। इसमें वे खुद भी घायल हुए। पावसरा गांव के किसान भागीरथ चौहान, सुरेंद्र, सुधीर, अशोक व चरण सिंह को गंभीर चोट आई थी। पावसरा गांव के किसान भागीरथ चौहान के बयान पर कुंडली थाना पुलिस ने यूपी के रंगराज, विजय, मातू, धर्मपाल, चपोती, आवेश, मिंटू व 25-30 अन्य के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। 14 मई 2018 प्रशासन ने मनौली के किसानों को दोबारा जमीन पर कब्जा दिलाया।

यूपी की हाईकोर्ट लखनऊ में, केस खर्च कैसे उठाएं

जगदीशपुर गांव के 85 वर्षीय बुजुर्ग सलूके बताते हैं कि बागपत में उनके नाम की एक एकड़ जमीन है। उस पर किसी ने अब कब्जा करना शुरू कर दिया है। बागपत कोर्ट में केस किया है। केस करने के बाद अब केस खर्च उठाना भारी पड़ रहा है। तारीखों पर यूपी में आना-जाना मुश्किल है। हाईकोर्ट तो सैकड़ों मील लखनऊ है। वहां तक केस पहुंचा तो जिंदगी भर इस में रह जाएंगे। सरकार इसका हल निकाले।


फिर तय हो रही सीमा, बस इस बार रेवन्यु रिकॉर्ड भी हो दुरुस्त
हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बीच दीक्षित अवार्ड के तहत लगे सीमा पिलरों की पहचान व पैमाइश कर दोबारा सीमा तय होगी। सोनीपत जिला प्रशासन को पत्थर लगाने के खर्च के तहत 95.23 लाख रुपए की राशि 2014 में ही मिल चुकी है जोकि पीडब्ल्यूडी बीएंडआर के माध्यम से खर्च होगी। उससे पहले लुप्त हुए सीमा पत्थरों की जगह दोबार तय की जाएगी। दोनों प्रदेशों की तरफ लगे मेन रेफ्रेंस पिलर से मिलान कर यह तय होगा। सोनीपत जिले की सीमा में चार मेन रेफ्ररेंस पिलर, 89 सब रेफरेंस पिलर और 345 बाउंडरी यानि सीमा पिलर लगे थे। मेन रेफ्ररेंस पिलर तो मिल गए हैं लेकिन सब रेफरेंस व बाउंडरी पिलर ज्यादातर नष्ट हो चुके हैं। एक मेन रेफरेंस पिलर तो झुंडपुर स्कूल के बीच में लगा है। जिसके चारों और क्षेत्र आबाद हो चुका है।

अब फिर होगी पत्थरों की पैमाइश
हरियाणा के सोनीपत और पानीपत जिले और उत्तर प्रदेश के बागपत व शामली जिले के बीच सीमा पैमाइश व पत्थरों की जगह 1 दिसंबर तक चिन्हित की जाएंगी। इसके लिए तारीखें तय कर टीम पैमाइश में लग गई हैं। सोनीपत जिले के 22 गांव, पानीपत के 22 गांव और उत्तर प्रदेश के बागपत के 28 व शामली के 16 गांवों के बीच सीमा तय करने का कार्य होगा। सीमा विवाद निपटान के लिए दोनों राज्यों के संबंधित जिला अधिकारी, राजस्व अधिकारी के अलावा भारतीय सर्वेक्षण विभाग, पंजाब, हरियाण, भू स्थानिक आंकड़ा केंद्र चंडीगढ़ के अधिकारी संयुक्त रूप से लगे हैं। मुख्य तौर पर सोनीपत, पानीपत, बागपत, बड़ौत, शामली, खेकड़ा के अधिकारी शामिल हैं

केंद्र सरकार ने 1975 में गठित किया था दीक्षित अवार्ड
यमुना के अनियंत्रित बहाव के चलते दोनों राज्यों के किसानों का विवाद सुलझाने के लिए केंद्र सरकार ने तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री उमाशंकर दीक्षित को आरबीटेटर नियुक्त किया था। उन्होंने 14 फरवरी 1975 को अपना निर्णय इस बाबत दिया था। उन्होंने सर्वे आफ इंडिया द्वारा 1971-72 में यमुना बहाव की लाइन देखकर 1975 में किए सर्वे के आधार पर अपना निर्णय दिया था। भारत सरकार के गृह विभाग ने 15 सितंबर 1975 को यह अवार्ड जारी किया। इसके बाद दोनों राज्यों में जिला अनुसार जमीन का रिकॉर्ड एक दूसरे को सौंपा गया।
दोनों प्रदेश की सीमाएं तय करने वाले सैकड़ों पिलर गायब
अपर आयुक्त मेरठ मंडल उदयीराम के अनुसार अलीगढ़ में 195 सीमा के पिलर हैं। इनमें से 193 पिलर मौके से गायब हैं। वहीं दो सही-सलामत हैं। शामली में 228 सीमा पिलर हैं। इनमें 196 गायब, दो क्षतिग्रस्त और 30 सही हैं।सहारनपुर में 330 सीमा पिलर हैं, जिनमें से 172 गायब हैं और 158 सही हैं। बागपत के सभी 236 सीमा पिलर गायब हैं। गौतमबुद्ध नगर में 428 सीमा पिलर में से 157 गायब, 56 क्षतिग्रस्त और 215 सही हैं। सोनीपत जिले की सीमा में चार रेफरेंस पिलर, 89 सब रेफरेंस पिलर और और 345 बाउंडरी पिलर हैं। यहां अभी तक एक ही बाउंडरी पिलर मिला है। चारों रेफरेंस पिलर सही सलामत हैं।

गायब पिलर रेकॉर्ड सर्वे ऑफ इंडिया के पास सुरक्षित
सर्वे ऑफ इंडिया के वी. करप्पा स्वामी के अनुसार सीमाओं को निर्धारित कर पिलर (स्तम्भ) लगे थे। एक पिलर की ऊंचाई जमीन से डेढ़ से दो फीट होती है। पिलर तीन तरह के होते हैं। एक मेन रेफरेन्स पिलर, दूसरा सब-रेफरेन्स पिलर और तीसरा एक्चुअल बउंडरी पिलर। जितने भी पिलर गायब हुए हैं उनका रेकॉर्ड सुरक्षित है। जिनको संबंधित जिलों के अधिकारियों के साथ मिलकर ठीक कराया जाएगा।

मनौली, जाजल, खुरमपुर, बड़ौली व टांडा- जगदीशपुर गांव के किसान सीमा विवाद को लेकर ज्यादा परेशान
 सोनीपत की यमुना नदी के साथ 32 किलोमीटर की सीमा है। हर साल फसल की बिजाई व कटाई के दौरान दोनों प्रदेशों के बीच विवाद पनपता है। फसल की बिजाई कौन करेगा और पकने के बाद फसल की कटाई कौन करेगा, यह दादागिरी पर ही निर्भर है। सोनीपत में सबसे ज्यादा मनौली, दहिसरा, खुरमपुर, जाजल, बड़ौली, टांडा- जगदीशपुर गांव के किसान ज्यादा प्रभावित हैं। यूपी के किसानों पर सोनीपत जिले की करीब 15 सौ एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे का भी आरोप है।
रेवन्यु रिकॉर्ड आज तक नहीं दुरुस्त
दीक्षित अवार्ड के बाद सीमा अनुसार रेवन्यु रिकॉर्ड संबंधित राज्य के राजस्व विभाग को सौंपा गया और उन्ही के अधीन आगामी जमीनी कार्यप्रणाली दी गई। हरियाणा के राजस्व अधिकारी बताते हैं कि उस समय हरियाणा के राजस्व विभाग ने तो उत्तर प्रदेश की तरफ से आए ज्यादातर रिकॉर्ड को दुरुस्त कर लिया लेकिन उत्तर प्रदेश के राजस्व विभागों ने इसमें उदासीनता दिखाई। जिससे आजतक भी कई जगह का रिकॉर्ड विवादित है। दीक्षित अवार्ड के सीमांकन को दुरुस्त करने के बाद दोनों राज्यों की सरकारों को राजस्व रिकॉर्ड भी दुरुस्त करवाना होगा।
सोनीपत जिले में रिकॉर्ड के यह हालात
मिमारपुर- जमाबंदी अनुसार 55 एकड़ रकबा है जबकि असल 63 एकड़ है।
नांदनौर – जमाबंदी अनुसार 76 एकड़ रकबा है जबकि मौके पर यह जमीन है ही नहीं।
बड़ौली- जमाबंदी अनुसार 443 एकड़ रकबा है जबकि असल में 293 एकड़ है।
मिर्कपुर- जमाबंदी में 57 एकड़ रकबा है जबकि असल में 35 एकड़ है।
जाजल – जमाबंदी में 1134 एकड़ रकबा है जबकि मौके पर यह जमीन है ही नहीं।
मनौली – जमाबंदी में 1243 एकड़ रकबा है जबकि मौके पर यह जमीन है ही नहीं।
खुर्रमपुर – जमाबंदी में 415 एकड़ रकबा है जबकि असल में 32 एकड़ है।
भैरा – जमाबंदी में 280 एकड़ रकबा है जबकि असल में 180 एकड़ है।
बेगा – जमाबंदी में 248 एकड़ रकबा है जबकि असल में 190 एकड़ 5 कनाल है।
चंदौली – जमाबंदी में 116 एकड़ रकबा है जबकि असल में 33 एकड़ 2 कनाल है।
ग्यासपुर – जमाबंदी में 28 एकड़ रकबा है जबकि असल में 53 एकड़ है।
पबनेरा – जमाबंदी में 146 एकड़ रकबा है जबकि असल में 312 एकड़ है।

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