जब दो बैलों की जोड़ी था कांग्रेस का चिन्ह, बैल लेकर करते थे प्रचार
- बैल भीड़ में बिदक न जाए इसके लिए, आगे पीछे रहते थे किसान
जितेंद्र बूरा.
चुनाव में पार्टी का चुनाव चिन्ह काफी अहमियत रखता है। पार्टियों के टूटने, विलय होने पर सिंबल को लेकर भी विवाद होते रहे हैं। इनेलो से अलग होकर बनी जननायक जनता पार्टी को पहले चप्पल और बाद में चाबी निशान मिला। आजादी के बाद हुए पहले चुनाव में कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी था। प्रचार में बैल लेकर जाते थे। बैल भीड़ में बिदक (डरकर हुड़दंगबाजी करना) न जाए इसके लिए विशेष तौर पर आगे पीछे किसानों की ड्यूटी लगाई जाती थी। 1952 में संयुक्त पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ने वाले कई कांग्रेस उम्मीदवारों ने बैलों व बैलगाड़ी से चुनाव प्रचार किया। बैलगाड़ी के साथ बैलों के लिए भी चारे की व्यवस्था रखी जाती थी।
चुनाव चिह्न का हमेशा से महत्व रहा है, फिर वह चाहे पार्टी का चिह्न हो या फिर मैदान में निर्दलीय किस्मत आजमा रहे प्रत्याशी का। चुनाव चिह्न से ही उन्हें पहचान मिलती है। आजादी के बाद 1952 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिह्न ‘दो बैलों की जोड़ी’ था तो भारतीय जनसंघ का ‘दीपक’ और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का ‘झोपड़ी’। हालांकि समय बीतने के साथ कांग्रेस का चुनाव चिह्न ‘पंजा’ हो गया तो जनसंघ से भाजपा बनने के बाद चुनाव चिह्न ‘कमल’ हो गया। कांग्रेस ने पहला चुनाव इसी चिह्न पर पंडित जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई में लड़ा और सरकार बनाई। 1970-71 में कांग्रेस में विभाजन हुआ। पार्टी से अलग हुए मोरारजी देसाई, चंद्रभानू गुप्ता ने संगठन कांग्रेस बनाई। विभाजन होते ही चुनाव चिह्न ‘दो बैलों की जोड़ी’ विवादित हो गया सो चुनाव आयोग ने उसे सीज कर दिया।
इंदिरा की अगुवाई वाली कांग्रेस को मिला गाय व बछड़ा निशान
1952 में कांग्रेस से दो बैलों की जोड़ी निशान पर बैलगाड़ी लेकर राई क्षेत्र से रिजकराम ने भी प्रचार किया। इस चुनाव में रिजकराम ने जीत दर्ज की। उनके बेटे जयतीर्थ दहिया ने बताया कि दो बैलों की जोड़ी निशान सीज होने के बाद में इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस को चुनाव चिह्न ‘गाय और बछड़ा’ मिला जबकि संगठन कांग्रेस को ‘चरखा’ चुनाव चिह्न मिला। जून 1975 में देश में आपातकाल लगा। उस दौरान इंदिरा के पुत्र संजय गांधी भी राजनीति में सक्रिय हो चुके थे।
दीपक निशान वाला जनसंघ भाजपा में बदला तो मिला कमल निशान
वर्ष 1977 के चुनाव में ही ‘दीपक’ चिह्न वाले जनसंघ, ‘झोपड़ी’ चुनाव निशान वाली प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाले भारतीय क्रांति दल का विलय हुआ और जनता पार्टी बनी, जिसे चुनाव चिह्न मिला ‘कंधे पर हल लिए हुए किसान’। वर्ष 1979 में कांग्रेस में एक और विभाजन हुआ और उसे चुनाव चिह्न मिला ‘हाथ का पंजा’। जयतीर्थ बताते हैं कि इसी बीच जनता पार्टी भी बिखर गई और पूर्ववर्ती जनसंघ के नेताओं ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया, जिसे चुनाव चिह्न मिला ‘कमल का फूल’। चौधरी चरण सिंह की अगुवाई वाली लोकदल को ‘खेत जोतता हुआ किसान’ चुनाव चिह्न मिला।


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