गुरु तेग बहादुर के शीश की रक्षा के लिए बढ़खालसा के दादा खुशहाल सिंह दहिया ने दी थी अपने शीश की कुर्बानी
गुरु तेग बहादुर के शीश की रक्षा के लिए बढ़खालसा के दादा खुशहाल सिंह दहिया ने दी थी अपने शीश की कुर्बानी
- गुरु तेग बहादुर को समर्पित है सोनीपत के बढख़ालसा गांव का स्मारक- बढ़खालसा स्मारक के म्यूजियम में महाबलिदानी दादा खुशहाल सिंह दहिया की लगी है प्रतिमा
जितेंद्र बूरा. सोनीपत
सोनीपत जिले का बढ़खालसा गांव इतिहास के पन्नों में सदा के लिए बलिदान की धरती के तौर पर नाम दर्जा करवा चुका है। धर्म की रक्षा में बलिदानी देने वाले गुरु तेगबहादुर सिंह के शीश की रक्षा के लिए यहां महाबलिदानी दादा खुशहाल सिंह दहिया ने अपने शीश की कुर्बानी दे दी। गांव में बना स्मारक और म्यूजियम उस बलिदानी का गवाह बना है। अब यहां दादा खुशहाल सिंह दहिया की प्रतिमा भी स्थापित कर दी गई है। हर दिन विभिन्न परिवार यहां अपने बच्चों को इस गौरव गाथा को सुनाते हुए इस स्थल को देखने पहुंच रहे हैं।
सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर ने जब मुगलों के सामने झुकने से मना कर दिया तो उन्होंने उसे तरह-तरह की यातनाएं दी गईं। उन्होने कश्मीरी पंडितों तथा अन्य हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाने का विरोध किया। वर्ष 1675 को इस्लाम कबूल न करने पर जालिम औरंगजेब ने भाई सती दास, भाई मतीदास और भाई दयाला को शहीद कर दिया। 22 नवंबर को औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर का भी शीश कटवा दिया और उनके पवित्र पार्थिव शरीर की बेअदबी करने के लिए शरीर के चार टुकड़े कर के उसे दिल्ली के चारों बाहरी गेटों पर लटकाने का आदेश दे दिया। लेकिन उसी समय अचानक आये अंधड़ का लाभ उठाकर एक स्थानीय व्यापारी लख्खीशाह गुरु जी का धड़ और भाई जैता जी गुरु जी का शीश उठाकर ले जाने में कामयाब हो गए। भाई जैता जी ने गुरूजी का शीश उठा लिया और उसे कपडे में लपेटकर अपने कुछ साथियों के साथ आनंदपुर को चल पड़े। औरंगजेब ने उनके पीछे अपनी सेना लगा दी और आदेश दिया कि किसी भी तरह से गुरु जी का शीश वापस दिल्ली लेकर आओ। भाई जैता जी किसी तरह बचते बचाते सोनीपत के पास बढख़ालसा गाँव में पहुंचे गए। मुगल सेना भी उनके पीछे लगी हुई थी। वहां के स्थानीय निवाशियों को जब पता चला कि - गुरु जी ने बलिदान दे दिया है और उनका शीश लेकर उनके शिष्य उनके गांप में आये हुए हैं तो सभी गांव वालों ने उनका स्वागत किया और शीश के दर्शन किये।

दादा खुशहाल सिंह ने दी अपने शीश की कुर्बानी
दादा खुशहाल सिंह दहिया को जब पता चला तो वे भी वहां पहुंचे और गुरु जी के शीश के दर्शन किए। मुगलो की सेना भी गांव के पास पहुंची तो गांव के लोग इकट्ठा हुए और सोचने लगे कि क्या किया जाए। मुग़ल सैनिको की संख्या और उनके हथियारों को देखते हुए गांव वालों द्वारा मुकाबला करना भी आसान नहीं था। सबको लग रहा था कि मुगल सैनिक गुरु जी के शीश को आनन्दपुर साहिब तक नहीं पहुंचने देंगे, अब क्या किया जाए ? तब दादा खुशहाल सिंह दहिया ने आगे बढक़र कहा कि सैनिको से बचने का केवल एक ही रास्ता है कि गुरुजी का शीश मुग़ल सैनिको को सौंप दिया जाए। इस पर एक बार तो सभी लोग गुस्से से दादा को देखने लगे। लेकिन दादा ने आगे कहा आप लोग ध्यान से देखिये गुरु जी का शीश, मेंरे चेहरे से कितना मिलता जुलता है। अगरआप लोग मेरा शीश काट कर, उसे गुरु तेगबहादुर जी का शीश कहकर, मुग़ल सैनिको को सौंप देंगे तो ये मुगल सैनिक शीश को लेकर वापस लौट जायेंगे तब गुरु जी का शीश बड़े आराम से आनंदपुर साहब पहुँच जाएगा और उनका सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हो जाएगा। उनकी इस बात से चारों तरफ सन्नाटा फैल गया।
सब लोग हैरान रह गए कि कैसे कोई अपना शीश काटकर दे सकता है ? पर वीर खुशहाल सिंह फैसला कर चुके थे, उन्होंने सबको समझाया कि गुरु तेग बहादुर को हिन्द की चादर कहा जाता हैं, उनके सम्मान को बचाना हिन्द का सम्मान बचाना है. इसके अलावा कोई चारा नहीं है। फिर दादा खुशहाल सिंह ने अपना सिर कटवाकर गुरु शिष्यो को दे दिया।जब मुगल सैनिक गाँव में पहुंचे तो सिक्ख दोनों शीश को लेकर वहां से निकल गए भाई जैता जी गुरु जी का शीश लेकर तेजी से आगे निकल गए औए जिनके पास दादा खुशहाल सिंह दहिया का शीश था, वे जानबूझकर कुछ धीमे हो गए, मुग़ल सैनिको ने उनसे वह शीश छीन लिया और उसे गुरु तेग बहादुर जी का शीश समझकर दिल्ली लौट गए। इस तरह धर्म की खातिर बलिदान देने की भारतीय परम्परा में एक और अनोखी गाथा जुड़ गई।
सरकारों ने समझा महत्व तो बना स्मारक
बढ़खालसा गांव में पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल ने शहादत स्मारक के नाम पर बिल्डिंग का निर्माण कराया था। इसका उद्घाटन पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला द्वारा किया गया था। बाद में इस इमारत को पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया था। यही नहीं इसके रखरखाव को लेकर स्थानीय गुरुद्वारा कमेटी का गठन भी किया गया है। इसके अंतर्गत डीसी सहित क्षेत्रीय विधायक, ग्राम पंचायत के सदस्यों को कमेटी में शामिल किया गया है। हरियाणा की मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अब उस स्थान पर बने एक म्यूजियम में महाबलिदानी दादा खुशहाल सिंह दहिया की प्रतिमा को स्थापित किया है। यह स्थान सोनीपत जिले में बढख़ालसा नामक स्थान पर है। सभी धर्मप्रेमियों को वहां दर्शन के लिए जाना चाहिए।
बढ़खालसा गांव में पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल ने शहादत स्मारक के नाम पर बिल्डिंग का निर्माण कराया था। इसका उद्घाटन पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला द्वारा किया गया था। बाद में इस इमारत को पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया था। यही नहीं इसके रखरखाव को लेकर स्थानीय गुरुद्वारा कमेटी का गठन भी किया गया है। इसके अंतर्गत डीसी सहित क्षेत्रीय विधायक, ग्राम पंचायत के सदस्यों को कमेटी में शामिल किया गया है। हरियाणा की मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अब उस स्थान पर बने एक म्यूजियम में महाबलिदानी दादा खुशहाल सिंह दहिया की प्रतिमा को स्थापित किया है। यह स्थान सोनीपत जिले में बढख़ालसा नामक स्थान पर है। सभी धर्मप्रेमियों को वहां दर्शन के लिए जाना चाहिए।
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