लगान नहीं देने पर यहां 22 लोगों पर चलाया था कोल्हू, आज भी पार्क में इतिहास की गवाही दे रहा कोल्हू का पत्थर



- 1857 में अंग्रेजों ने लगान मांगा तो लिवासपुर के उदमीराम ने की थी तीन अंग्रेज अफसरों की हत्या

- अंग्रेजों ने उदमीराम व उसकी पत्नी को को 22 दिन तड़पाकर मारा था और उसके साथियों को कोल्हू से कुचल दिया था

- जीटी रोड स्थित देवीलाल पार्क में रखा हुआ है खूनी कोल्हू व उदमीराम का इतिहास का शिलापट्‌ट



जितेंद्र बूरा . सोनीपत

वर्ष 1857 में सोनीपत जिले में अंग्रेजी हुकूमत का ऐसा विरोध हुआ कि 22 लोगों को बड़े पत्थर के कोल्हू के नीचे पिसवा दिया गया। आजादी की उठी इस चिंगारी के दर्दनाक इतिहास का गवाह वह खूनी कोहलू का पत्थर देवीलाल पार्क में खड़ा गवाही दे रहा है। अंग्रेजों ने जब लगान मांगा तो लिवासपुर के चौधरी उदमीराम नंबरदार ने सबसे पहले इसका विरोध किया। उदमीराम ने लगान  देने से इंकार किया तो लगान वसूलने के लिए तीन अंग्रेज अफसर बहालगढ़ पहुंचे थे। उदमी नंबरदार ने अपने साथियों के साथ मिलकर तीनों की हत्या कर दी थी। अंग्रेजों ने उदमी राम व उसके साथियों की हत्या कर इस गांव को उजाड़ दिया था। आज भी देश में लिवासपुर को शहीद चौधरी उदमीराम नंबरदार के गांव के रूप में जाना जाता है। हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस लिवासपुर गांव में शहीद उदमी राम की शहादत को याद किया जाता है।

1857 में जब देश में अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठ रही थी तो लिवासपुर के नंबरदार चौधरी उदमी राम भी अपने गांव के कुछ लाेगों को साथ लेकर  स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए थे। उन्होंने अंग्रेजों की हकुमत के खिलाफ बगावत शुरू कर दी थी। संयुक्त पंजाब में सबसे पहले उदमीराम नंबरदार ने ही अंग्रेजों को लगान देने से मना कर दिया था। उदमी राम को जब पता चला कि तीन अंग्रेज अधिकारी बहालगढ़ में लगान वसूलने आ रहे हैं तो उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर तीनों की हत्या कर दी थी। उसके बाद अंग्रेजों ने उदमीराम व उसकी पत्नी को राई रेस्ट हाउस में एक पीपल के पेड़ पर बांध दिया और उनके शरीर पर लोहे की कील ठोक दी। 22 दिन तड़पकर दोनों की मौत हो गई। इसी तरह से उदमी के 22 साथियों को एक पत्थर के कोल्हू से कुचलकर मार दिया था। अंग्रेजों ने इस गांव को उजाड़ दिया था।



देवीलाल पार्क में रखा हुआ है खूनी कोल्हू

लिवासपुर के 22 लोगों की मौत का गवाह वह खूनी कोल्हू आज भी देवीलाल पार्क में रखा हुआ है। इस कोल्हू के पास उदमीराम की शहादत की कहानी भी लिखी हुई है। स्वतंत्रता दिवस पर गांव के लोग खूनी पत्थर व अपने देशभक्त की जीवनी पढ़ने के लिए जाते हैं। गांव के लोग अपने बच्चों को शहादत की कहानी सुनाते हैं। जिससे उन्हें इतिहास की जानकारी हो सके।




एक व्यक्ति ने दी थी उदमी की मुखबरी : राजेंद्र

गांव के राजेंद्र सिंह ने बताया कि क्षेत्र के एक व्यक्ति ने नंबरदार उदमीराम की अंग्रेजों को मुखबरी दी थी। उदमी राम की हत्या के बाद अंग्रेजों ने इनाम में उस को जमीन दी थी। यदि वह अंग्रेजों को उदमीराम की पहचान नहीं बताता तो शायद नंबरदार उदमीराम का अंग्रेजों को सुराग भी नहीं लगता।

लहवा नाम के किसान ने  बसाया था लिवासपुर


लिवासपुर गांव का नाम लहवा नाम के किसान ने करीब दो सौ साल पहले बसाया था। यह किसान पड़ोस के गांव राठधाना से आया था। 1857 में इसे उजाड़ने का प्रयास किया, लेकिन कुछ परिवार रह गए थे। 1857 में कुछ परिवार पट्‌टी कलियाना व कुछ जींद चले गए थे। जो यहां रह गए थे उन्हीं के वंशज आज लिवासपुर में हैं। इस गांव में सरोहा गोत्र के लोग है। गांव में करीब 22 सौ एकड़ जमीन है और दो हजार मतदाता हैं।

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