हरियाणा के इकलौते परमवीर चक्र विजेता की कहानी ...1971 में पाक के अंदर घुस घायल हालत में युद्ध विराम तक लड़ते रहे

 चार माह से लेकर चार साल तक के तीन बच्चों को छोड़कर होशियार सिंह दहिया ने लड़ा था युद्ध, दो बेटे भी सेना में भेजे

- पाक सेना को बुरी तरह हराकर जीवित रहते होशियार सिंह को मिला था परमवीर चक्र सम्मान


15 जनवरी थल सेना दिवस विशेष...

जितेंद्र बूरा. सोनीपत

 वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में जरपाल के पाकिस्तानी इलाके पर सेना ने कब्जा किया। पाकिस्तानी फौज का कमांडिंग ऑफिसर, तीन और और ऑफिसर व 86 अन्य रैंक सैनिक मारे गए। जब युद्ध विराम हुआ और इस युद्ध में जलते हुए 45 पाकिस्तानी टैंक को जिसने भी देखा तो हर किसी की जुबान पर था कि यह सब किया परमवीर मेजर होशियार सिंह दहिया ने। बुरी तरह घायल हालत में भी वे युद्ध विराम तक लड़ते रहे। भारत सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र सम्मान दिया। वह परमवीर चक्र पाने वाले हरियाणा के इकलौते शूरवीर हैं। होशियार सिंह जब युद्ध लड़ रहे थे तो तीन बेटो में सबसे छोटा बेटा महज चार माह, मंजला दो साल व बड़ा बेटा चार साल का ही था।


5 मई 1936 को जन्मे सोनीपत जिले के सिसाना गांव निवासी हाशियार सिंह 31 मई 1988 में कर्नल पद सेवा निवृत हुए। 8 दिसंबर 1998 में उनका देहांत हुआ। उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ उनके पैतृक गांव सिसाना में हुआ। इस दौरान राज्य सरकार के कई मंत्री इसमें शामिल हुए थे। गांव का राजकीय प्राइमरी स्कूल  उनके नाम से है और स्कूल में  तिरंगे के नीचे उनकी प्रतिमा आज भी उनकी गौरव गाथा सुना रही है। कर्नल होशियार ने अपने दो बेटे भी सेना में भेजे। बड़े बेटे राजकुमार दहिया कर्नल रहे और छोटे बेटे सुशील कुमार दहिया भी कर्नल हैं। मंजले बेटे विजय कुमार दहिया जयपुर में बिनेसमैन हैं। कर्नल होशियार सिंह की 85 वर्षीय धर्मपत्नी धन्नो दहिया अब अपने छोटे बेटे कर्नल सुशील कुमार दहिया के साथ मुंबई में निवास करती हैं।

बेटे सुशील बोले, दादा ने कहा था सेना में जाना है, पौते भी सेना में गए

कर्नल सुशील कुमार ने बताया कि उनके पिता कर्नल होशियार सिंह जाट स्कूल रोहतक से पढ़े लिखे। वे सामान्य किसान परिवार से थे। पिता उन दिनों वॉलीबॉल अच्छे खिलाड़ी थे। उस समय हरियाणा- पंजाब व हिमाचल इकट्‌ठे पंजाब स्टेट में शामिल थे। पिता होशियार संह पंजाब स्टेट टीम के कैप्टन टीम थे। उनकी बेहतर खेल की वजह से उनके पास कई नौकरी के ऑफर थे लेकिन दादा हीरासिंह ने कहा कि बेटा सेना में ही जाकर देश सेवा करनी है, तो पिता 1956 में सेना में भर्ती हुए। उन्होंने जून 1963 में 3 ग्रेनेडियर में कमीशन लिया। 1965 में जब पाकिस्तान ने हमला किया तो उन्होंने राजस्थान सेक्टर में युद्ध में हिस्सा लिया। उनको उनको उस समय मेंशन इन डिस्पैच अवार्ड मिला। मां धन्नो ने उन्हें बताया कि 1971 युद्ध के दौरान दिल्ली आर्मी क्वार्टर में थे। वह खुद चार माह का था। 


1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान तीसरे ग्रेनेडियर को 15-17 दिसम्बर 1971 से शक्करगढ़ सेक्टर में बसंतर नदी में एक पुल का निर्माण करने का कार्य दिया गया था। नदी दोनों तरफ से गहरी लैंड माइन से ढकी हुई थी और पाकिस्तानी सेना द्वारा अच्छी तरह से संरक्षित थी। कमांडर 'सी' कंपनी मेजर होशियार सिंह को जर्पाल के पाकिस्तानी इलाके पर कब्जा करने का आदेश दिया गया था। पाकिस्तानी सेना ने प्रतिक्रिया करते हुए जवाबी कार्यवाही की। हमले के दौरान मेजर होशियार सिंह एक खाई से दूसरी खाई में अपने सैनिकों का हौसला बढ़ने के लिए भागते रहे तेजी से खड़े होने के लिए प्रोत्साहित करते रहे परिणामस्वरूप उनकी कंपनी ने पाकिस्तानी सेना के भारी हमलों के बावजूद दुश्मन को बहुत क्षति पहुंचाई और उनकर सभी हमलों को विफल कर दिया। गम्भीर रूप से घायल होने के बावजूद मेजर होशियार सिंह ने युद्धविराम तक पीछे हटने से मना कर दिया। इस अभियान के दौरान मेजर होशियार सिंह ने सेना की सर्वोच्च परंपराओं में सबसे विशिष्ट बहादुरी, अतुलनीय लड़ाई भावना और नेतृत्व को प्रदर्शित किया। उन्हें अपनी बहादुरी और नेतृत्व के लिए भारत सरकार द्वारा गणतंत्र दिवस 1972 को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया जो 17 दिसम्बर 1971 से प्रभावी हुआ।


सिसाना में एक हजार से अधिक गए सेना में, दो भर्ती रैली गांव में ही हुई

प्राकृतिक देहांत के बाद राजकीय सम्मान के साथ कर्नल होशियार सिंह का अंतिम संस्कार गांव के राजकीय स्कूल परिसर में किया गया। उसी जगह पर उनकी प्रतिमा है और स्कूल का नाम उनके पर है। 

ग्रामीण सुशील दहिया ने बताया कि 18 हजार से अधिक आबादी वाली सिसाना गांव में अब दो पंचायतें बनती हैं। कर्नल होशियार सिंह ने अपने बेटों ही नहीं गांव के जवानों को भी सेना के लिए प्रेरित किया। उन्होंने दो भर्ती रैली तो गांव में ही करवाई। एक हजार से अधिक जवान गांव से सेना में गए हैं। उनके बेटे कर्नल सुशील कुमार दहिया का कहना है कि उनकी तीसरी पीढ़ी में से भी बच्चे सेना में जाने की तैयारी करेंगे।


परमवीर चक्र विजेता कर्नल होशियार सिंह के बेटे कर्नल सुशील दहिया अपनी मां धन्नो और पत्नी के साथ।

जिले ने तीन जवानों को बहादुरी पर वीर चक्र, एक को अशोक चक्र और दो को सेना मेडल मिल चुका

सोनीपत जिले में इन वीरों को भी मिल चुका सम्मान

- शहीद सिपाही मांगेराम, गांव नाहरी को 1948 इंडो पाक युद्ध में बहादुरी पर वीर चक्र
- शहीद थांबू राम, गांव पुरखास को 1948 इंडो पाक युद्ध में बहादुरी पर वीर चक्र
- शहीद नायक मुंशी राम, गांव बधाना को 1962 इंडो चाइना युद्ध में बहादुरी पर वीर चक्र
- शहीद नायक रामकुमार, गांव पुरखास को 1993 ऑपरेशन रक्षक में बहादुरी पर सेना मेडल 
- शहीद हवलदार जगदीश चंद्र, गांव रूखी को 2006 ऑपरेशन रक्षक में बहादुरी पर सेना मेडल 
- शहीद हवलदार राजेश कुमार, गांव लाठ को 2009 ऑपरेशन रक्षक में बहादुरी पर अशोक चक्र मिला।


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