यहां स्नान करने से मिलता है 68 तीर्थों में स्नान जैसा पुण्य



जितेंद्र बूरा.

- 68 तीर्थों की जलधारा का समागम स्थल है हाट गांव का हटकेश्वर धाम
- अश्वमेघ यज्ञ के बराबर है रामराय के रामहृद तीर्थ में स्नान
- पिंडारा में पूर्वजों की आत्मिक शांति के लिए करें पिडंदान


हरि की नगरी हरियाणा में धार्मिक स्थलों का भी अपना महत्व है। धर्मनगरी कुरुक्षेत्र की 48 कोस की परिधि में आने वाले जींद जिले में ऐसे एतिहासिक पवित्र तीर्थ स्थल हैं जहां स्नान मात्र से पुण्य प्राप्त होता है और सांसारिक दुखों से मुक्ति मिलती है। पांडुओं ने जहां युद्ध के बाद पितरों की आत्मिक शांति के लिए पिंडदान किया पिंडारा तीर्थ जींद से महज पांच किलोमीटर दूरी पर है। महर्षि दधिचि की तपोभूमि में स्थित हाट गांव का हटकेश्वर तीर्थ, सफीदों में नागक्षेत्र तीर्थ, रामराय का रामहृद तीर्थ, पोंकरी खेड़ी का पुष्कर तीर्थ आदि मुख्य तीर्थ स्थल यहां हैं।

हर साल सावन के अंतिम शनिवार व रविवार को लगता है मेला

देशभर के 68 तीर्थों की जलधारा के संगम स्थल हाट गांव के हटकेश्वर धाम पर सावन माह के अंतिम शनिवार और रविवार को प्रसिद्ध मेला लगता है। आज भी मेले में पहुंचने वाले अतिथियों का गांव के लोग घी-बूरा, हलवा के भोज से स्वागत करते हैं। महर्षि दधिचि के रूप में दादा तीर्थ का भव्य मंदिर, बड़ा सरोवर, बाग, गौशाला, ऊंचे टीले पर बना दूधाधारी मंदिर विशेष आस्था का केंद्र। तीन युद्धों की स्थली पानीपत से 40 किलोमीटर दूरी पर सफीदों क्षेत्र के हाट गांव में हटकेश्वर धाम महर्षि दधिचि की तपोस्थली है। कवंदति है कि महाभारत काल में द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वस्थामा की मणि भी यहीं निकालकर उन्हें जिंदा छोड़ दिया था। हटकेश्वर धाम सेवक बलवान सिंह बूरा ने बताया कि कवंदति है कि महर्षि दधिचि ने वज्र के लिए हडि्डयों का दान देने से पहले यहीं पर 68 तीर्थ की जलधारा मंगवाकर उसमें स्नान किया। माना जाता है कि धाम के सरोवर में स्नान करने से 68 तीर्थों से पुण्य प्राप्त होता है।


वृत्रासुर के वध के लिए बनाया था वज्र
एक बार वृत्रासुर नाम का एक राक्षस देवलोक पर आक्रमण कर दिया। देवताओं ने देवलोक की रक्षा के लिए वृत्रासुर पर अपने दिव्य अस्त्रों का प्रयोग किया लेकिन सभी अस्त्र शस्त्र इसके कठोर शरीर से टकराकर टुकरे-टुकरे हो रहे थे। अंत में देवराज इन्द्र को अपने प्राण बचाकर भागना पड़ा। इन्द्र भागकर ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव के पास गया लेकिन तीनों देवों ने कहा कि अभी संसार में ऐसा कोई अस्त्र शस्त्र नहीं है जिससे वृत्रासुर का वध हो सके। भगवान शिव ने कहा कि पृथ्वी पर एक महामानव हैं दधिचि। इन्होंने तप साधना से अपनी हड्डियों को अत्यंत कठोर बना लिया है। इनसे निवेदन करो कि संसार के कल्याण हेतु अपनी हड्डियों का दान कर दें। इन्द्र ने शिव की आज्ञा के अनुसार दधिचि से हड्डियों का दान मांगा। महर्षि दधिचि ने संसार के हित में अपने प्राण त्याग दिए। देव शिल्पी विश्वकर्मा ने इनकी हड्डियों से देवराज के लिए वज्र नामक अस्त्र का निर्माण किया और दूसरे देवताओं के लिए भी अस्त्र शस्त्र बनाए। युद्घ में इन्द्र ने वृत्रासुर पर वज्र का प्रहार किया जिससे टकराकर वृत्रासुर का शरीर रेत की तरह बिखर गया। देवताओं का फिर से देवलोक पर अधिकार हो गया और संसार में धर्म का राज कायम हुआ।


अश्वमेघ यज्ञ के बराबर यहां स्नान
रामहृद तीर्थ (रामराय गांव) में अद्वितीय धर्मशालाएं, कलात्मक भवन व कृतियां पुरातात्विक अवशेष बन चुकी हैं। 16 तीर्थ स्थल थे, जिनमें से आज दो बचे हैं। भगवान परशुराम ने यहां क्षत्रियों का संहार कर रक्त से पांच कुंड भरे थे, तो श्रीकृष्ण भी तीर्थ में स्नान के लिए आए थे। तीर्थ में स्नान का पुण्य एक हजार गौदान व अश्वमेघ यज्ञ के बराबर माना गया है। इतिहास साफ कर रहा है कि जगह कितनी महत्वपूर्ण है। रामहृद, हांसी रोड पर स्थित गांव रामराय का पुराकालीन नाम है। वामन पुराण अंक 45 श्लोक 29 में यहां का उल्लेख है। भगवान परशुराम त्रेता युग में तत्कालीन भ्रष्टï, उद्दंड व उत्पाती क्षत्रियों को खत्म करने के लिए आए थे। यहां तपस्या की और इस स्थान पर डेरा जमाया। परशुराम ने ब्रह्मïद्वेषी क्षत्रिय राजाओं का वध किया और उनके रक्त से पांच कुंड भरे, जो ऋषि पितरों के वरदान से क्षत्रिय हत्या, निवार्ण के साथ ही तीर्थभाव को प्राप्त हो गए थे। यहां सूर्यकुंड, समंत पंचक, सन्नहित, पवनहद, वायुहद, कल्याण व कल्याणी तीर्थ आदि 16 तीर्थ स्थल बने यक्षणीहद व कमलयज्ञ के अलावा और भी बहुत कुछ है, जो अन्य कहीं नहीं मिलेगा। द्वापर युग में सर्वग्रास सूर्य ग्रहण के अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण सपरिवार समंतपंचक रामहृद में पधारे थे। यहां कुंडों में स्नान कर दान दक्षिणा दी थी। समंतपंचक वह क्षेत्र है, जहां परशुराम ने सारी पृथ्वी को क्षत्रियहीन करके राजाओं की रूधिरधारा से पांच बड़े-बड़े कुंड बना दिए थे। रामराय में इस समय दो-तीन स्थलों का ही अस्तित्व बचा है। इनमें से एक परशुराम का मंदिर व तालाब है, दूसरा सूर्यकुंड। परशुराम का मंदिर ग्रामीणों व दानी लोगों के सहयोग से भव्य बनाया गया है। पूर्व सरपंच राममेहर ने बताया कि तीर्थ में विकास के लिए या तो चढ़ावे की राशि या फिर ग्रामीणों से चंदा इकट्ठा करके काम कराया जाता है। दानी व धार्मिक कार्यों में रुचि लेने वाले लोगों की सहायता भी मिलती है।

पोकरखेड़ी में पुष्कर तीर्थ स्नान से पुण्य

जींद से हांसी रोड पर रामराय गांव से आगे लिंक रोड पर स्थित पोकरीखेड़ी गांव में राजस्थान के जोधपुर में स्थित प्रसिद्ध तीर्थ पुष्कर के दर्शन किए जा सकते हैं। किंवदंती है कि इस तीर्थ में स्नान करने से पुष्कर जैसा ही पुण्य प्राप्त होता है।
महर्षि जगदग्नि पोकरीखेड़ा गांव में तप किया करते थे। उनकी पत्नी रेणुका पुष्कर तीर्थ (जोधपुर) से उनके लिए पवित्र जल लाती थी। एक दिन जब वह जल का घड़ा लेकर आ रही थी तो गांव के बाहर राखीगढ़ी का राजा सहस्त्रबाहु वहां आ पहुंचा। रेणुका घबरा गई और उसके हाथ से पुष्कर के जल से भरा घड़ा गिरकर  टूट गया। ऋषि को उसने यह बात बताई तो ऋषि ने कहा कि यदि तुम पवित्र हो तो जहां घड़ा गिरा था वह तैरता मिलेगा। ऋषि व रेणुका वहां पहुंचे तो सचमुच घड़ा तैर रहा था। इस स्थान पर पुष्कर के तालाब का पवित्र जल भरा था और इसे पुष्कर तीर्थ का नाम दे दिया गया। वामनपुराण में 34, 44, 45 पेज पर पौकरीखेड़ी के इस तीर्थ की महत्ता का बखान है। पोकर का अर्थ तालाब होता है और इसी से गांव का नाम भी पोकरीखेड़ा पड़ा। पोकरीखेड़ा गांव में करीब डेढ़ किलोमीटर दूर बणी में आज भी यह तीर्थ स्थित है। एक ग्रामीण ने अपने पूर्वजों की याद में यहां द्वार बना दिया है। तीर्थ के ठीक पास यक्ष (द्वारपाल) स्थित हे। वामनपुराण के अनुसार प्राचीन कुरुक्षेत्र की जो सीमाएं बताई गई हैं उनकी पहचान विभिन्न कोणों में स्थित यक्षों से की जाती हैं। यहां गांव में महायक्ष कपिल स्वयं द्वारपाल के रूप में विराजमान हैं और पापियों के मार्ग में विघ्न डालकर उनके दुर्गति प्रदान करते हैं। ऐसा यक्ष की प्रतिमा के नीचे वामनपुराण को कोट करते हुए लगाए गए पत्थर पर लिखा गया है। ग्रामीणों ने यहां यक्ष की बड़ी प्रतिमा खड़ी की हुई है। तीर्थ के रखरखाव का जिम्मा संभाले ग्रामीणों ने बताया कि प्रत्येक शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भारी मेला लगता है। उससे जो चढ़ावा आता है उससे मंदिर का विकास होता है। गांव के लोग भी सहायता देते हैं । ग्रामीण जगदीश ने कहा कि तीर्थ पुरातत्व के महत्व का है।

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