बुढ़ापे का जख्म : ना दवा मिली और न दुआ...घर से फैली बदबू ने हटाया मौत से पर्दा

 

- अकेलो रह रहे बुजुर्गों के हालात की रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना

जितेंद्र बूरा..

दिल्ली की नजदीकियों से आधुनिकता में दौड़ रहे सोनीपत शहर का प्राचीन क्षेत्र गुड़मंडी। ज्यादातर व्यापारिक घराने यहां हैं। पोस्ट ऑफिस वाली गली में भी घरों में शाम वाली हलचल थी। कोई ड्यूटी से लौट रहा था, कोई दुकान व अपने संस्थान से। शाम के आठ बजे चुके थे। सूर्यास्त के बाद स्ट्रीट लाइट के साथ घरों की लाइटें जल चुकी थी। सावन के महीने में घरों की रसोई में शाम के भोजन बनाने की हलचल के साथ पकवानों की धीमी-धीमी खुशबू हवाओं में फैल रही थी। लेकिन आज की शाम को जो भी अपनी गाड़ी या वाहन खड़ा कर उतरता तो रसोई के पकवानों से ज्यादा अजीब सी बदबू महसूस कर रहा था। उतरते ही घर वालों से पूछा जा रहा था कि यह बदबू कैसी...क्या हुआ है। बदबू कचरे की या किसी प्रकार की प्लास्टिक के जलने जैसी नहीं थी। यह किसी जीव के मरने के बाद शरीर से निकलने वाली बदबू थी।
बदबू को महसूस करते हुए कई लोगों ने अपने घरों के कोने तक जांच लिए थे कि कहीं कोई चूहां-बिल्ली तो नहीं मरा पड़ा है। गली में भी कोई कुत्ता या पशु मरा नहीं दिखाई दिया। देखते ही देखते बदबू का मसला बड़ा होता गया और घरों में चर्चा का विषय बन गया। घर की महिलाएं बता रही थी कि पहले तो कुछ दिन से हल्की दुर्गंध थी लेकिन अब तो यह बढ़ती ही जा रही थी। गली में लोग इकट्‌ठा हुए। तलाश हुई दुर्गंध वाली जगह की। गली में घूमते हुए कुछ लोग एक पुराने से मकान के सामने पहुंच गए। यहां दुर्गंध इतनी थी कि सांस लेना मुश्किल था। उन्हें अपने मुंह पर रूमाल बांधने पड़े। 




....यह घर था 85 वर्षीय बुजुर्ग रामनिवास जिंदल का।
हालात के थपेड़े ऐसे रहे कि रामनिवास व उनकी 65 वर्षीय पत्नी सरला अकेले ही रह रहे थे। करीब नौ साल पहले बेटे सुबोध की बीमारी से मौत हो गई थी। वह डेयरी का काम करता था। सुबोध को एक बेटा हुआ लेकिन वह वाहन दुर्घटना में बचपन में ही इस दुनिया से चला गया। सुबोध की पत्नी बाद में अलग जगह रहने लगी। घर में बुजुर्ग रामनिवास और उनकी पत्नी सरला ही एक दूसरे का सहारा थे। उम्र भर की मेहनत से कमाई जमा पूंजी से वे अपना काम चला रहे थे। बुजुर्ग हुए तो रिश्ते-नातों में दूरी होती चली गई। धीरे-धीरे पड़ोसियों तक से संपर्क कम होता चला गया। पड़ोस में भी शायद ही उन्हें कोई सामाजिक तौर पर संभालने, हालचाल जानने के लिए पहुंचता था। गली में कभी कभार दिखाई दे जाएं तो राम-रमी हो जाती। पत्नी सरला घर का काम निपटा लेती और खाना बनाने से लेकर साफ सफाई करके अंदर ही रहती। हालात ने ऐसा मोड़ लिया कि बुजुर्ग महिला की काम करते हुए गिरने से एक दिन कूल्हे की हड्‌डी टूट गई। बुजुर्ग रामनिवास ने उसका इलाज करवाया। लेकिन वह सही दुरुस्त नहीं हो पाई। धीरे-धीरे सरला ने बिस्तर पकड़ लिया। उसके लिए तो खुद बिस्तर से उठकर चल पाना भी अब मुश्किल हो चला था। 85 वर्ष की उम्र में रामनिवास ही उसे जैसे-तैसे सहारा देकर बाथरूम तक लाता-लेजाता। खाने की व्यवस्था भी अब रामनिवास ही करता था। घर में टीवी देखकर या आपसी में जीवन के बिताए हालात की चर्चा करके दोनों अपना जीवन बिता रहे थे।
पिछली कई रात से रामनिवास के घर की लाइट भी रात को नहीं जल रही थी। मकान में हलचल भी नहीं थी। गली में किसी ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। देते भी कैसे बुजुर्गों को सबने अपने हाल पर छोड़ दिया था। वे गली में रह जरूरर रहे थे लेकिन अपने ही घर में कैद होकर रह रहे थे। अब घर से बुरी तरह दुर्गंध ने लोगों को बेचैन किया तो लोगों की भीड़ घर के सामने थी। आवाज लगाई लेकिन कोई बोला नहीं। दरवाजा खोलना चाहा लेकिन अंदर से बंद था। अब हर किसी को अहसास हो गया था कि अंदर कुछ न कुछ तो अनहोनी हुई है। ऐसे में पुलिस को सूचना दी गई। शहर थाना प्रभारी वजीर सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंचे। पुलिस ने घर का दरवाजा तोड़ा। अंदर अंधेरा था और किसी को लाइट के बटन की जगह नहीं मालूम थी। मोबाइल फोन की टार्च से घर के अंदर घुसकर सीढ़ियां चढ़े। इसके बाद लाइट जलाई गई। यहां हालात चौंकाने वाले थे। बाथरूम का दरवाज खुला था और बुजुर्ग रामनिवास का शव उसमें पड़ा था। उसकी मौत हुए आठ से दस दिन बीत चुके होंगे। शव कंकाल में बदल चुका था और शरीर से मांस उतर कर जमीन पर बिखर चुका था। दुर्गंध यहीं से हर जगह फैल रही थी। शव मिलने के बाद चिंता अब महिला की थी। घर में तलाश शुरू हुई तो बैडरूम वाले कमरें महिला औंधे मुंह बेड पर पड़ी थी। पुलिस ने उसे संभाला तो उसकी सांसे चल रही थी। हालात देखकर लग रहा था कि वह बिस्तर से कूल्हे की हड्‌डी टूटी होने की वजह से उठ ही नहीं पाई। उसने पति को आवाज तो खूब लगाई होगी लेकिन पति जिंदा होते तो बोलते। उसकी आवाज शायद घर से बाहर थोड़ी बहुत गई भी होगी तो किसी ने सुनी नहीं। सुनी भी होगी तो अनसुना कर दिया होगा। बुजुर्ग महिला न खा सकी और न कुछ पी सकी। बस औंधे मुंह अब तो अपनी आखिरी सांसे ही गिनने में लगी थी। 

पुलिस ने उसकी सांसे चलती हुई मिली तो तुरंत एंबुलेंस बुलाई गई और उसे अस्पताल पहुंचाया गया। मृतक रामनिवास के शव को एक तरह से गठरी की तरह ही जुटाकर बांधना पड़ा। सगे-संबंधियों को सूचना दी गई। बिना पोस्टमार्टम करवाए ही सबने शव का संस्कार करवाना उचित समझा। महिला का इलाज अस्पताल में शुरू हुआ। रात की इस घटना की सुर्खियां अखबारों और हर तरह के मीडिया के माध्यम से प्रमुखता से सबके पास पहुंच चुकी थी। इसके बाद हालात पर चिंतन, मंथन और अफसोस जताने के लिए सामाजिक लोग भी पहुंचने लगे थे।

शहर के मानव अधिकार संरक्षण संघ से जयवीर गहलावत और विभिन्न सामाजिक संगठनों से लोग पीड़ित के घर पर भी पहुंचे और अस्पताल में भी हालचाल जानने पहुंचे। अफसोस जाते हुए प्रशासन और पुलिस से इस तरह के अकेले रह रहे बुजुर्गों का रिकॉर्ड रखते हुए सोशल सिक्योरिटी देने की नसीहतें दी गई। शहर के पार्षदों ने भी अपने वार्डों में इस तरह अकेले रह रहे बुजुर्गों के बारे में जानकारी देने का आह्वान किया।

...समय की इस भागदौड़ में एक या दो संतान पैदा करने वाले व्यक्ति अपनी ताउम्र संतान को सफल बनाने में लगा देते हैं। कुछ को ऊपर वाले का सितम झेलना पड़ता है तो कुछ को नीचे वालों का। किसी के बच्चे अपने कामकाज में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें अपने बुजुर्ग मां-बाप की फिकर ही नहीं होती। अब या तो बुजुर्ग घरों में अकेले सिसकियां ले रहे होते हैं या फिर हालात से टूटकर वृद्धाश्रम में। तभी तो शहर के वृद्धाश्रम में 20 से अधिक बुजुर्ग रहते हैं। परिवार न सही पड़ोसियों की, सामाजिक-धार्मिक संगठनाें की, प्रशासन की नैतिक जिम्मेदारी भी तो कुछ बनती ही होगी।

कानूनी राय...
60 साल से ज्यादा उम्र के सभी महिला - पुरुष वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आते हैं। देश में माता-पिता, वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण व कल्याण अधिनियम 2007 में बनाया गया। इसके तहत वरिष्ठ नागरिकों के भरण - पोषण के अतिरिक्त भोजन - वस्त्र, आवास समेत इलाज उपलब्ध कराया जाता है। वरिष्ठ नागरिक यह दावा एसडीएम कोर्ट में अपने बेटा - बेटियों, पौता पौतियों व अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ कर सकते हैं।
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. जयहिंद...

टिप्पणियाँ

  1. अब वृद्ध आश्रम संस्था को ही मजबूती प्रदान करनी होगी l अन्तिम विकल्प के तौर पर l

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