कोरोना का 2021 वाला कहर : ग्रामीण अनजान नहीं थे, बस सिस्टम ने इतना डरा दिया कि चिताएं तो हर दिन जली, पर बीमारी को दोष नहीं दिया

- आने वाली पीढ़ियों के लिए एक यात्रा वृतांत ताकि सरकार और सिस्टम के बीच महामारी के कहर से सबक ले सकें

 - 5 हजार से अधिक आबादी वाला शायद ही कोई गांव हरियाणा में होगा जिसमें एक माह 15 से कम मौत हुई हों

- कोरोना की दूसरी लहर के दर्द ने भविष्य के लिए स्वास्थ्य सेवाएं दुरुस्त की...लेकिन उन्हें संभाले रखना होगा

जितेंद्र बूरा.


बुजुर्गों से सुना था कि 1918 में स्पेनिश फ्लू ने कहर ढहाया था। एक शताब्दी बाद फिर 2019 में कोरोना महामारी की शुरुआत चाइना से हुई। इसे सजगता कहें या डर कि 2020 में भारत में हर जन अलर्ट हो गया। लॉकडाउन लगे और आर्थिक संकट झेलते हुए कोरोना की पहली लहर से बचाव रखा। वर्ष 2021 आने के बाद इस महामारी को भुला दिया गया। न मास्क, ना दो गज की दूरी रही। चुनावी रैलियों से लेकर बड़े आयोजन हुए। अप्रैल माह आते-आते तो कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने ऐसा भंयकर रूप ले लिया कि देश में लगभग हर राज्य में कहर भरपा। घर-घर बुखार, खांसी, जुकाम के मरीज हुए और संक्रमण बढ़ता चला गया। कहीं एंबुलेंस नहीं मिली तो कहीं अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं मिलने और कहीं इलाज के लिए बेड नहीं मिलने से जानें गई। हरियाणा भी इस दौर में कहां बचा। शहरों के साथ इस बार महामारी ने गांवों में प्रचंड रूप दिखाया। ग्रामीणों ने बीमारी को माना नहीं और शमशानों की राख एक माह तक ठंडी नहीं हुई।

अप्रैल माह बीतने के बाद मई की शुरुआत में तो हर गांव में मौतों का सिलसिला बढ़ने लगा। दिल्ली से सटे झज्जर, रोहतक, सोनीपत के गांवों में ज्यादा हालात खराब थे। एक पत्रकार के नाते इन तीन जिलों के गांवों में ग्राउंड पर जाकर हालात जानने के लिए यात्रा की। यात्रा में जो देखने को मिला वह चौंकाने वाला था। हालात ऐसे थे कि मैं खुद यात्रा के बाद कोरोना पॉजीटिव हुआ। मेरे बाद पत्नी और छह साल की बेटी भी पॉजीटिव हुई। बीमारी का दर्द झेला लेकिन सुकून यह था कि उस दौर में गांवों के बीच पहुंचकर सरकार व प्रशासन के सामने दिखाए जब घरों में रहकर लाॅकडाउन बिताया जा रहा था। हर दिन आने वाले सरकारी आंकड़े कोराेना के जो हालात बयां कर रहे थे उससे कहीं ज्यादा बीमार और मौते हुई। दरअसल ट्रेसिंग, टेस्टिंग और ट्रीटमेंट में सरकारी सिस्टम फेल हो गया।



वर्ष 2020 में एक सिस्टम था। सरकारी तौर पर कोरोना पॉजीटिव रिपोर्ट आते ही संबंधित मरीज को घर या कोविड सेंटर में आइसोलेट कर दिया जाता। उस एरिया को कंटेनमेंट जोन बनाकर आवागमन पर पाबंदी लगा दी जाती। इसके बाद यहां सर्वे कर अन्य की टेस्टिंग होती। 2021 में ऐसा नहीं हुआ। बीमार होने पर दूसरे या तीसरे दिन रिपोर्ट आती। पॉजीटिव आने के बाद मरीज के पास एक फोन कॉल जाती। हालात पूछने से ज्यादा निर्देश दिए जाते कि घर में अलग रहने का कमरा और टॉयलेट, बाथरूम है तो अपना आइसोलेशन का फार्म निर्धारित सेंटर पर भरवाने के लिए किसी परिजन को भेज दें। परिजन या फिर कई मरीज तक खुद फार्म भरकर आते। दीवार पर बाहर दवाई कौनसी लेनी है, इसका पर्चा लगा रहता। सरकारी दवाई कोई मिलती कोई नहीं, तो बाहर मेडिकल स्टोर से ही खुद लेनी हैं। इसके बाद घर पर रहो अपने हाल पर। शायद ही कोई फोन आए कि क्या दवाई ले रहे, कैसे हो। हां हिदायत यह है कि ऑक्सीमीटर खरीदकर ऑक्सीजन लेवल मापते रहना है। बाजार में कभी 250 से 300 में बिकने वाला ऑक्सीमीटर 1200 से 1500 रुपए का बिकने लगा। ऑक्सीजन लेवल 95 से कम हुआ तो डॉक्टर की सलाह लें, 90 से नीचे आए तो अस्पताल में दाखिल हो जाएं।

खौफ बस यहीं से पैदा हुआ। ऑक्सीजन लेवल कम होते ही मरीज को परिजन अस्पताल लेकर भागे। पता चला सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन बेड नाममात्र हैं और फुल हो चुके हैं। निजी अस्पतालों में लेकर गए, उन्होंने भी बेड के मोल लगाने शुरू कर दिए। फुल होने की बात करते गए और ऊंचे दामों पर भर्ती करते गए। किसी निजी अस्पताल की क्षमता 15 से 20 बेड की थी, लेकिन कोविड मरीज घोषित किए बिना ही 50 से अधिक मरीज भर्ती कि गए। ऑक्सीजन की डिमांड एकाएक निजी अस्पतालों में बढ़ गई। बेड की कैपेस्टि अनुसार तो ऑक्सीजन थी, लेकिन मरीज की अधिकता से पैनिक बढ़ गया। जिस पाइपलाइन से 15 बेड ऑक्सीजन की क्षमता थी उससे दो गुणा बेड जोड़ने से कई जगह मरीजों को पूरी ऑक्सीजन भी नहीं मिल पाई। अस्पताल ऑक्सीजन की कमी बताकर मरीजों की छुट्‌टी करने की बात करते रहे और परिजन सड़काें पर आकर जान बचाने की गुहार लगाकर प्रदर्शन करते रहे। अस्पतालों में बहुत से मरीज ऑक्सीजन की इस कमी से भी मरे कि जो ऑक्सीजन पाइपलाइन अस्पतालों लगी थी उसकी क्षमता कुछ बेड की थी। अधिक मरीज भर्ती होने से ऑक्सीजन पूरी क्षमता अनुसार भी मरीजों को नहीं मिली। संस्कार होते गए लेकिन सरकारी आंकड़ों में कोरोना से मौत होने का आंकड़ा कम था और मौते जगह-जगह ज्यादा। इसी स्वास्थ्य सिस्टम ने लोगों में डर पैदा किया। जहां स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उत्साहित होकर भर्ती होना था वहीं ग्रामीण क्षेत्र के लोग टेस्ट तक कराने से घबराने लगे। उनका कहना था कि कोरोना घोषित हुआ तो अस्पताल से जिंदा नहीं लौटेंगे। परिजनों को डेड बॉडी तक नहीं देंगे।

गांवों के इसी दर्द को समझने के लिए तीन जिलों के गांवों की यात्रा की। 15 मई तक के जाने हालात झकझोर देने वाले थे।




 पहला दिन :  

 झज्जर जिला.. सात गांवों में ही एक महीने में 163 के करीब लोगों की हुई थी मौत

 यहां कोरोना की तस्वीर के दो पहलू थे। एक में स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट है जिसके अनुसार 11 मई तक जिले में 1385 एक्टिव केस थे। इनमें 100 मरीज अस्पताल में थे। कोरोना काल में 13082 जिले में कोरोना काल में पॉजीटिव मिल चुके। इनमें 11584 ठीक हो चुके थे। रिकवरी दर 88.5 प्रतिशत और पॉजीटिविटी दर 4.34 प्रतिशत थी।
दूसरा पहलू भयावह रहा और चौंकाने वाला भी। पिछले एक महीने में जिले के सात गांवों में ही 163 लोगों की मौत हुई। मांडोठी गांव में तो तीन दंपति सहित 40 की मौत हुई जोकि इत्तफाक नहीं था। ज्यादातर को बुखार आया और फिर मौत हुई। इनमें कोरोना टेस्ट करवाने के बाद घोषित कोरोना मौत नाममात्र रही। गांवों में डोर-टू डोर सर्वे कर सैंपलिंग नहीं हो पाई और खुद ग्रामीण बुखार होने पर सैंपलिंग करवाने अस्पतालों में नहीं पहुंचे। सिस्टम इसे अनदेखा करता रहा  वहीं लोग बुखार होता तो नजदीक के मेडिकल स्टोर से या झोलाछाप से दवाई ले लेते। दिक्कत ज्यादा होती है तो टाइफाइड का ही टेस्ट करवाते। 

मांडोठी गांव : करीब 15 हजार की आबादी वाले गांव में पिछले 20 दिन में 40 की मौत यहां हुई। ज्यादातर 50 से अधिक आयु के थे। दस मई को एक ही दिन में पाचोसिया पाना में बुखार से पीड़ित तीन महिलाओं ने दम तोड़ दिया। गांव के सरपंच सतपाल खुद एक संस्कार से लौटते हुए मिले। उन्होंने बताया कि गांव में दिल्ली पुलिस से सेवानिवृत कर्णसिंह और उनकी पत्नी, सेवानिवृत मा. राजेंद्र और उनकी पत्नी और किसान बलवान व उनकी पत्नी की मौते भी हुई जोकि चिंता पैदा करती हैं। सरपंच ने बताया कि उनके ही एक दोस्त संदीप की 30 वर्षीय पत्नी का कोरोना टेस्ट पॉजीटिव आया। अस्पतालों में बेड नहीं मिला और घर पर ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं मिल पाया। गांव हेल्थ सेंटर है। दो ऑक्सीजन सिलेंडर थे, उन्हें स्वास्थ्य विभाग अधिकारियों ने गिरावड़ के अस्पताल में भिजवा दिया। हर घर में बुखार पीड़ित हैं, कुछ ठीक हो चुके लेकिन मुनादी के बाद भी टेस्ट करवाने नहीं जा रहे। गांव में लगे वैक्सीन कैंप में जरूर 200 से अधिक ने वैक्सीन लगवाई।

बचाव का अपना तरीका : ट्रैक्टरों से दे रहे हवन सामग्री की धूमनी
मांडोठी के सतीबर और मनोज ने बताया कि उन्हें व परिवार सदस्यों को बुखार होकर ठीक हो चुका है। शरीर में थकावट और अकड़न जरूर है। गांव में बुखार की बीमारी से बचाव के लिए युवा हर दिन ट्रैक्टर के पीछे रखकर देशी घी और हवन सामग्री की धूमनी करते हैं ताकि वातावरण शुद्धि हो।

बादली : 25 हजार के करीब आबादी में संक्रमण का खतरा भी ज्यादा रहा। गांव की सरपंच के पति अमित ने बताया कि पिछले 15 दिन में 50 के करीब मौत हुई। कोरोना टेस्ट लोग कम करवा रहे हैं, लेकिन ज्यादातर मौतें बुखार आने के बाद हुई। इनमें 45 से 55 वर्ष के बीच के भी आठ से दस व्यक्ति हैं। गांव में सीएचसी है। जिन्होंने सैंपलिंग करवाई है उससे 32 के करीब पॉजीटिव आए हैं, लेकिन बीमार लगभग हर दूसरे घर में कोई न कोई है। लोग दवाई ले रहे हैं लेकिन टेस्ट नहीं करवा रहे। 

चिमनी गांव : गांव में 13 अप्रैल से 10 मई तक 19 मौत होना ग्रामीण बता रहे हैं। लेकिन यहां दिनचर्या रूटिन रही। लोग ऐसे ही समूह में जगह-जगह बैठे नजर आए और ताश तक खेल रहे थे। गांव के सतबीर ने बताया कि वह पिछले महीने दादरी अपनी किसी जानकार के यहां गया था। बाद में घर आने पर उसे बुखार हो गया। वह तो ठीक हो गया लेकिन उसकी मां बुखार से पीड़ित हो गई। कानौर स्वास्थ्य केंद्र से दवाई ली लकिन 13 अप्रैल को उनकी मां की मौत हो गई। पिता को दूसरे कमरे में रखा, वह स्वस्थ हैं। गांव के गणमान्य व्यक्ति कुलबीर ने बताया कि गांव में टीकाकरण टीम तो आई लेकिन कोरोना सैंपलिंग टीम नहीं आई। खुद लोग टेस्ट करवाने जा नहीं रहे। गांव में ही दुकान खोले हुए झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज ले रहे हैं। वे दवाई दे रहे हैं, लेकिन उचित जांच करवाने की सलाह भी दे रहे। बुखार घर-घर हुआ।

दुबलधन : यहां सीएचसी में टीकाकरण के लिए तो लोग लाइन में लग रहे लेकिन कोरोना टेस्टिंग का कांउटर लगभग खाली रहता। यहां एसएमओ डॉ. सनील लाकड़ा का कहना था कि सैपलिंग के लिए मोबाइल टीमें भी गांवों में जाती है, लेकिन टेस्टिंग के प्रति जागरूकता कम रही। हालांकि हर दिन 32 के करीब गांवों में 250 के करीब सैंपलिंग हुई जिसमें 40 के आसपास मरीज मिले। स्टाफ में पांच डॉक्टर हैं जिनमें चार पॉजीटिव हो गए थे। दो ठीक होकर आ चुके हैं। पांच स्टाफ नर्स हैं, इनमें एक पॉजीटिव हो गई । एक एलएचसी की कोविड से मौत भी हो गई।

दूसरा दिन :

जिला रोहतक...गांवों में कोरोना का भयंकर भय, ग्रामीण कहते हैं- पॉजिटिव हुए और इलाज कराने अस्पताल गए तो जिंदा नहीं लौटेंगे


"कमबख्त कोरोना से तो जीत ही जाएंगे, लेकिन इस डर का क्या करें, जिस डर के मारे लोग मर रहे थे। लोग डरे हुए थे कि- जांच में पॉजिटिव निकले तो इलाज कराने अस्पताल जाना होगा, जहां से जिंदा नहीं लौटेंगे। मेरा एक दोस्त भी चला गया। किडनी में दिक्कत थी। जांच में पॉजिटिव निकला, इलाज कराने अस्पताल गया तो लौटा नहीं। शव जलाने के भी 6000 रुपए ले लिए- मदीना गिंधराण के 25 साल के युवक राहुल के शब्द थे।'
गांवों में कोरोना की जांच का अजीब भय है। खरैंटी के सरपंच प्रतिनिधि महीपाल ने कहा कि "यह भय ही तो है कि 300 घर वाले गांव में आगंनबाड़ी वर्कर और सफाईकर्मी को भेजकर हर घर सर्वे कराया। लोगों से पूछा कि जिसके भी घर में खांसी-बुखार के रोगी हों, नाम बताएं। हर घर में दो-तीन ऐसे मरीज हैं, लेकिन एक ने भी नाम नहीं लिखवाया। चूंकि, प्रशासन के पास डेटा भेजना था। इसलिए जबरन 11 लोगों के नाम लिखकर पाटवारी को सूची दे दी।'


झज्जर हो या रोहतक जिला, यहां के हर गांव की एक ही कहानी है। जांच नहीं कराना है। चिड़ी, लाखन माजरा, खरैंटी, मदीना, पिलाना, सांघेड़ा, निंगाना, खटेसरा, काहनौर, सुनडाना हो या सेवाना गांव, लोग यहीं कहते हैं कि जांच से डर हो रहा है। लाखन माजरा में तो 45 से अधिक मौतें हुई पर बाजार लॉकडाउन में भी खुले रहे।

खरैंटी : 10 हजार आबादी का खरैंटी गांव। एक महीने में 15 की जान जा गई।  53 साल की महिला रामरती की मौत हो गई। गांव के चौपाल में श्रद्धांजलि की तैयारी के बीच हम पहुंचे। भतीजे ने बताया कि पांच दिन से खांसी-बुखार था। सांस की दिक्कत हुई तो कल अस्पताल ले गए। जहां मौत हो गई। न तो शव से सैंपल लिया गया और न परिवार के किसी सदस्य ने जांच कराया। पंच सुखबीर ने कहा कि यहां तो सैंपल कराने को भी लोग काेरोना मानते हैं।

काहनौर :  बेहतर कार्य के लिए 6 स्टार से राष्ट्रीय सम्मानित किया जा चुका, लेकिन टेस्ट यहां भी कम करवा रहे। सरपंच अमित ने कहा कि प्रयास कर रहे इसलिए कुछ लोग जांच करा रहे हैं, लेकिन हर ओर डर है। डर आलम यह रहा कि 10 मई को सीएचसी की ओर से 10 हजार आबादी वाले गांव में आंगनवाड़ी वर्क ने सर्वे किया तो खांसी-बुखार के 40 लोगों की सूची तैयार हुई। तीन दिन बीत गए, कोई गांव के सीएचसी पर भी जांच कराने नहीं पहुंचा। एसएमओ डॉ. नीना ने कहा कि लोग जांच कराने से भाग रहे हैं। सबको फोन करके कहेंगे कि जांच कराओ।

मदीना : दो पंचायत वाली मदीना गांव में दो दिनों में 14 लोगों की जान चली गई। सब के सब बुखार पीड़ित थे, लेकिन न तो किसी की जांच कराई गई न ही गांव वाले इसे कोरोना मान रहे हैं। आशा वर्कर निर्मला ने भी माना कि हर दिन दो-तीन डेथ हो रही है। सरपंच अंजू देवी ने कहा कि डेथ ज्यादा हो रही, गांव में ही स्वास्थ्य केंद्र है। जहां जांच भी हो रही है, लेकिन लोगों में डर बना रहा।
कलानौर : एक क्लीनिक के बाहर मरीजों की भीड़ लगी थी। बेंच पर बैठे एक व्यक्ति खांसने लगा तो आसपास खड़े लोग दूर हो गए। एक गंभीर मरीज जमीन पर बैठा था और उसका बेटा उसे संभाले हुए था।

तीसरा दिन :

जिला सोनीपत... दिल्ली बॉर्डर के साथ लगते गांवों में कोरोना का कहर, छोटे व सजग गांवों ने खुद को बचाया

कोरोना पॉजीटिव मामलों में सोनीपत जिला हरियाणा में चौथे नंबर पर रहा। सरकारी रिकॉर्ड में मौत के आंकड़े 13 मई तक 180 थे, लेकिन गांव के हालात चिंता पैदा कर रहे थे। एक-एक गांव में 20 दिनों में 18 से 20 मौतें हुई। दिल्ली बॉर्डर से लगते गांवों के साथ जिले के अंदर के बड़ी व घनी आबादी वाले गांवों में कोरोना कहर भरपा। बॉर्डर के नजदीक हरियाण के विख्यात कवि पं. लख्मी चंद के गांव जाटी कलां में ही ग्रामीणों के अनुसार पिछले 20 दिनों में 18 मौत हुई। ज्यादातर को बुखार आया था। टेस्ट उन्हीं का हुआ जो सोनीपत अस्पताल में टेस्ट करवाने पहुंचे। गांव सेरसा, थाना कलां, सिसाना, खानपुर कलां, बड़ी, नाहरी सहित कई गांवों की स्थिति लगभग एक सी रही।



 
जाटी कलां : घर-घर बुखार पीड़ित हुए, लेकिन जांच नहीं कराई। बिना मास्क लगाए भवन निर्माण के मजदूरों के लिए चाय ले जा रहे सतबीर ने बताया कि गांव में बीमारी का प्रकोप है। मौतें भी हुई हैं। जिनकी हालत ज्यादा बिगड़ी, वे ही टेस्ट करवाने सोनीपत गए। अस्पताल में रखने का डर है, इसलिए मेडिकल स्टोर और गांव के झोलाछाप डॉक्टर से दवाइयां लेते रहे। गांव में एक व्यक्ति की पुरानी बीमारी से मौत हुई लेकिन दस से 15 दिन बाद दिल्ली में नर्स रही उसकी पत्नी की भी मौत हो गई। घर में उनके बड़े बेटे की शादी भी तय थी, बाद में बस छोटी रस्म रिवाज से शादी की। गांव के सरपंच जसबीर ने बताया कि 800 आबादी वाले गांव में वैक्सीन के कैंप जरूर लगे हैं, लेकिन जांच नहीं हुई। इसलिए कई जानें चली गई।

 बड़ी गांव : जीटी रोड किनारे होने से ही सब सुविधा नहीं मिल जाती। गांव में सरकारी स्वास्थ्य की कोई सुविधा नहीं है। ग्रामीणों को 3 किलोमीटर दूर गन्नाैर जाना पड़ता है। सरपंच आर ज्यागी ने कहा कि मेरे दादाजी बीमार पड़ गए, कहीं इलाज नहीं मिला। न ऑक्सीजन न वेंटीलेटर, जिस वजह से दादाजी को बचा नहीं पाए। ग्रामीण बिजेंदर लड़ाके निकले, जो अस्पताल परिसर में गाड़ी में ही कोरोना से जंग लड़ते रहे। 24 घंटे बाद अस्पताल में बेड मिली, अब ठीक हैं। गांव में 10 लोगों की जान चली गई।
थाना कलां : गांव में हर तीसरे घर में बुखार के मरीज। सरपंच बलराम दहिया ने कहा कि 12 हजार आबादी वाले हमारे गांव के लोगों ने बीमार होते ही दवा ली और आइसोलेट हो गए। जिसका अच्छा असर हुआ और मौतें कम हुईं। सरपंच ने कहा कि 400 से अधिक ग्रामीणों ने वैक्सीन भी लगवा ली।

सिसाना : गांव में एक माह में 20 से अधिक मौतें हुई। गांव में बुखार का प्रकोप था। कुछ लोग ऐसे थे जो मास्क व सामाजिक दूरी भी नहीं कर रहे। दहिया खाप प्रधान सुरेंद्र दहिया सहित उनका परिवार भी कोरोना पॉजीटिव हुए। बाद में वैक्सीन कैंप और टेस्टिंग कैंप भी लगवाए। नोडेल अधिकारी डाॅ. नितिन फलस्वाल का कहना था कि रोहणा, बरोणा, सिसाना, फरमाणा सहित कई गांव ऐसे हैं जहां पर कोरोना मरीज अधिक मिले।
खानपुर में मेडिकल कॉलेज, लेकिन यहां गांव में 35 से अधिक हुई मौतें
खानपुर कलां : स्वास्थ्य विभाग की हॉट स्पॉट गांवों की सूची में शामिल रहा। बीपीएस मेडिकल कॉलेज यहीं है। गांव की आबादी करीब 10 हजार है। गांव की सरपंच पूनम ने बताया कि एक माह के दौरान गांव में 35 से अधिक लोगों की मौत हुई, लेकिन मौत कोरोना के कारण हुई, यह नहीं कहा जा सकता। लोगों की सामान्य मौत भी हुई बताई गई। इनमें बुजुर्गों की संख्या अधिक रही। गांव में बुखार के मरीज भी खूब थे।


छोटे और सजग गांव ने कोरोना के कहर से खुद को बचाया :
भुर्री व राजपुर जैसे छोटे और सजग गांव ने कोरोना को मात दे दिया। माहौल भी तो वैसा ही है। गांव की मुख्य सड़क पर सन्नाटा पसरा दिखा। असली लॉकडाउन तो यहां जान पड़ता है। आश्चर्य था कि कोरोना कहर में भी गांव में एक भी लोगों की कोरोना से जान नहीं गई। भुर्री गांव में 95 साल के एक बुजुर्ग की सामान्य मौत हुई है। गांव के अड्‌डे के पास रहने वाले जोगिंदर और पवन कुमार ने कहा कि लोगों ने खुद को सीमित रखा। सिर्फ 2 हजार आबादी है, यह भी पक्ष में गया। वहीं राजपुर निवासी प्रवीण राठी ने कहा कि उनके गांव की आबादी 5 हजार है, लेकिन कोरोना का कोई कहर नहीं।

ग्रामीणों में अस्पताल का खौफ, इसलिए अब गांव के स्कूलों में ही बनेंगे आइसोलेशन वार्ड :




अस्पताल जाने से ग्रामीण डर रहे थे। इसलिए बाद में सरकार ने गांवों के स्कूलों में ही आइसोलेशन वार्ड बनाए। गांव से ही खटिया मंगाई। स्वास्थ्य विभाग ने सैंपलिंग के लिए मोबाइल टीम भी भेजनी शुरू की। मई के अंत तक बुखार और कोरोना मरीज भी काफी घटने लगे...लेकिन खबरें चल रही थी कि कोरोना की तीसरी लहर भी आएगी...बच्चों को संक्रमित करने वाली।

... दूसरी लहर के बाद तेजी से सरकार भी स्वास्थ्य सुविधाएं जुटाने में लगी। अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट बने, बेड संख्या और मेडिकल उपकरण बढे.। चलो.. वर्तमान का दर्द झेल भविष्य की तैयारी हो गई....

उनको भी सलाम जिन्होंने दूर रहकर भी पीड़ित परिवारों का दुख बंटाया। अस्पतालों में इलाज दिलवाने के लिए सिफारिशें की। अपने कंधों पर पड़ोसी मरीज के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर ढोए, खाना पहुंचाया। किसी ने काढ़े बनाकर तो किसी ने मास्क, सेनेटाइजर बांटे। हवन सामग्री से गांवों में पर्यावरण शुद्धि के लिए धूमनी दी गईं। डॉक्टर व स्टाफ, पुलिस कर्मी, सफाई कर्मी, मीडिया कर्मी और इस दौरान अलग अलग क्षेत्र में सेवाएं देने वाले लोग महामारी से लड़ने में लगे रहे।

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