जाट योद्धाओं का इतिहास : देश के स्वाभिमान पर दी बलिदानियां, 13 अप्रैल को मनता है विश्व जाट दिवस
- आठ फिरंगी नाै गौरे, लड़े जाट के दो छौरे।
- जाट मरा तब जाणिए, जब तेरहवीं हो जाए।
- कविता सोहे भाट की, खेती सोहे जाट की।
जितेंद्र बूरा.
हिंदू, मुस्लिम, सिख, जैन। जाट इन सब धर्मों में है। आस्थावान हैं पर कट्टरवादी नहीं। हक और स्वाभिमान के लिए लड़ते रहे हैं, इसका इतिहास गवाह है। मुगल हो या अंग्रेजों से स्वतंत्रता संग्राम, कौम के वीरों ने लड़ते हुए बलिदानियां दी। पर इतिहास के पन्नों में खास तवज्जो नहीं मिली, जिससे आने वाली पीढ़ियां जान सकें। पहले कबिलाई तरीके से रहे होंगे, लेकिन बदलते समय के साथ कृषि प्रमुख व्यवसाय इनका बना और अन्नदाता की पहचान बनाई। आजाद भारत में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में प्रमुखत: रहते हैं। महज आरक्षण आंदोलन से जाट की पहचान हो यह उचित नहीं, बल्कि आरक्षण आंदोलन से फिर एकजुट होकर दुनिया की नजरों में आई इस कौम का इतिहास शूरवीरों के बलिदानों से भरा है। हर साल 13 अप्रैल को बैशाखी पर विश्व जाट दिवस भी मनाया जाने लगा है।
कृषि, व्यवसाय, खेल और सीमा पर सुरक्षा में अपनी बहादुरी के झंडेे गाड़ रहे जाट समाज के वीरों द्वारा जात-धर्म से ऊपर उठकर देश के लिए दिए बलिदान को ही दिखाने का एक छोटा सा प्रयास। ताकि जब शूरवीरों के बलिदान की गाथाएं सुनाई जाएं तो आने वाली पीढ़ी रौब से कह सके कि हम उन शूरवीरों के समाज की संतान हैं।
परमवीर तेजाजी लोक देवता के रूप में पज्यनीय
जन्म 29 जनवरी 1074 में हुआ और 28 अगस्त 1103 ई. में वचनों में बंधकर सांप से डंसे जाने से देहांत। पिता का नाम वीरीराज। गौत्र धौलिया। गांव खरनाल, जिला नागौर, राजस्थान। सात भाईयों में दूसरे नंबर के थे। आज भी राजस्थान में लोक देवता के रूप में पूज्यनीय हैं। बताया जाता है कि लाछा गुजरी की गायों को चुरा लिया गया। उन्हें छुड़ाने निकले तेजाजी को एक सांप आग में जलता मिला। उसने उसे बचा लिया लेकिन वह सांप जोड़े से बिछड़ गया और डंसने लगा। किवंदति है कि तेजाजी ने वचन दिया कि गाय छुड़वाने के बाद वह खुद यहां आएगा और उसे फिर डंस लिया जाए। उन्होंने गाय छुड़वाई और फिर घायल हालत में यहां पहुंचकर अपनी जीभ पर सांप का डंक मरवाया। किशनगढ़़ के पास उनका देहांत हुआ।
शूरवीर बीगो गायों को छुड़वाते हुए शहीद
जन्म 1301 में हुआ। 1336 में वीरगति को प्राप्त हुए। पिता राव महेंदा चौधरी। गौत्र जाखड़। गांव रीड़ी, जिला चारू, राजस्थान। मुस्लमानों से एक ब्राह्मणी की गाय छुड़वाते हुए युद्ध में शीश कट गया। इसके बाद भी बताया जाता है कि इनकी धड़ लड़ती रही। सभी गाय छुड़वाई और उनकी वीरगति हुई।
गोकुल सिंह ने मंदिरों को तोड़ने के खिलाफ लड़ी जंग
जन्म 1630 में हुआ। 1670 में शहीद हुए। पिता मधु सिंह। गौत्र सिनसिनवाल। गांव तिलपत, जिला मथुरा, उत्तर प्रदेश। औरंगजेब द्वारा मथुरा वृंदावन में मंदिरों के तोड़ने व औरतों से दुर्व्यहार के विरोध में दस वर्ष तक मुगलों की शाही सेना के साथ गोरिल्ला युद्ध लड़ते रहे। मथुरा के फौजदार अब्दुल नबी ने मथुरा से लगभग 6 मील दूर सिहोरा गांव में एकत्रित विद्रोहियों को घेरा तो अब्दुल नबी मारा गया। औरंगजेब ने इसके बाद रदनदाज खां और हसन अली के नेतृत्व में बड़ी सेना भेजी। यहां तक की खुद भी योजना बनाने पहुंचे। करीब 20 हजार जाटों ने तिलपत से 20 मील दूर मुगल सेना का मुकाबला किया। मुगलों के चार हजार सैनिक मारे गए। गोकुल सहित सात हजार सैनिक बंदी बनाए गए। जनवरी 1670 में इस्लाम कबूल करने की शर्त पर गोकुल को रिहा करने को कहा गया, लेकिन गोकुल के इनकार करने पर उसे तड़पा-तड़पाकर मार दिया गया।
राजाराम ने औरंगजेब के नाक में रखा दम
जन्म 1652 में हुआ। 1688 में वीरगति को प्राप्त हुए। पिता ठाकुर भज्जासिंह। गौत्र सिनसिनवाल। गोकुल के बाद 1686 ई. में राजाराम ने जाटों का नेतृत्व संभाला। जाटों के विद्रोह के बाद औरंगजेब शांत नहीं बैठा। उसने प्रसिद्ध केशवराय मंदिर को नष्ट करवा दिया और उसके स्थान पर मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। उसने मथुरा का नाम बदलकर इस्लामाबाद व वृंदावन का नाम बदलकर मोमिनाबाद कर दिया। इस पर जाट बिफर गए। राजाराम ने जाटों को एकत्रित करके जाट नेता सोगर गांव के रामचेहरा के सहयोग से गौरिल्ला युद्ध लड़े। इन्होंने जाट वीरों को हथियार चलाना और बंदूकों से लैस भी किया। जब औरंगजेब दक्षिण के अभियानों में उलझा था तो राजाराम ने मुगलों के यहां लूट शुरू की। 1687 ई. में अगर खां जोकि काबूल का सूबेदार था एवं औरंगजेब की सहायता के लिए बीजापुर जा रहा था। उसको राजाराम ने धौलपुर के निकट लूट लिया। अगर खां और उसका दामाद इस दौरान मारा गया। 200 जाट भी इस मुठभेड़ में मारे गए। 1688 ई. के आरंभ में महाबत खां जोकि पंजाब का सूबेदार था। राजाराम ने सिकंदरा के पास उसे लूट लिया। सिकंदरा में स्थित अकबर के मकबरे की बहुमूल्य वस्तुओं को लूट लिया था। हिंदू राजकुमारी जोधा से विवाह करने वाले अकबर के शव को कब्र से निकालकर हिंदू रीतिरिवाज के तहत आग से संस्कार कर दिया था। डॉ. राजपाल सिंह के अनुसार उसने इस तरह गोकुल की नृशंस हत्या का बदला भी लिया गया। बीजल गांव के निकट 4 जुलाई 1688 में एक मुगल ने पेड़ के पीछे छिपकर राजराम की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
चूड़ामन ने स्थापित किया था भरतपुर का स्वतंत्र जाट राज्य
जन्म 1668 ई. में हुआ। 1721 में देहांत। पिता ठाकुर बृजराज सिंह। गौत्र सिनसिनवाल। राजाराम के भतीजा थे। राजाराम के बाद जाटों का नेतृत्व चूड़ामन ने संभाला। मुगलों से लगातार संघर्ष करते रहे। उसने अपनी सैनिक प्रतिभा एवं कूटनीतिक चतुराई से जाट शक्ति को उत्तरी भारत की प्रमुख शक्तियों में स्थान दिलवाया। उसेने 14000 सैनिकों की एक विशाल सैना तैयार की। मुगलों के खिलाफ लूट और संघर्ष जारी रखते हुए आगरा में परेशानी खड़ी की। औरंगजेब और उसके बाद उनके उत्ताराधिकारी भी उसकी शक्ति का दमन करने में विफल रहे। दिल्ली तक जाट हावी हो गए थे। 1721 ई. में चूड़ामन ने भरतपुर में स्वतंत्र जाट राज्य की स्थापना की। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. के आर कानूनगो का कहना है कि चूड़ामन ऐसा व्यक्ति था, जिसने जाटाें की किस्मत का निर्माण किया।
वीर जुझार सिंह जिनकी याद में आबाद हुआ झुंझनू
जन्म 1664 ई.। वीरगति 1730 ई। पिता चौ. जीवणराम। गौत्र नेहरा। जन्म स्थान नहरा की ढाणी, जिला झुुंझुनू, राजस्थान। इनके पता नवाबों के फौजदार थे। बाद में जुझार सिंह ने शार्दुल राजपूत के साथ मिलकर झुंझनू और नरहड़ में नवाबों को परास्त कर दिया। उन्हें सरदार बनाया गया, लेकिन विश्वासघात कर शेखावतों ने सरदार जुझार सिंह को धोखे से मार दिया। इनकी याद में झुंझनु शहर आबाद हुआ। बाद में जाटों के विद्रोह को दबाने के लिए शेखावतों ने समझौता किया और कई शर्तें मानी।
बाबा दीप सिंह ने अब्दाली सेना से लड़कर शीश किया कुर्बान
जन्म 26 जनवरी 1682 में हुआ। वीरगति 11 नवंबर 1757 में। पिता भाई भगतु। गौत्र सिंधु। गांव पहुविंड, जिला अमृतसर, पंजाब। बाबा दीप सिंह सिख धर्म के सबसे पवित्र शहीदों में से एक हैं। 1699 में वैशाखी के दिन आनंद साहिब में गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा खालसा में उन्हें गुरु के सिक्ख का रुतबा दिया गया। उन्हीं के सानिध्य में तलवारबाजी, घुड़सवारी, सहचर्या कौशल सीखा। 1755 में अफगानी शासक अहमदशाह अब्दाली ने भारत में लूटपाट की और हजारों लोगों को बंदी बनाया। बाबा दीपसिंह ने अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ लूटे सामान को जब्त किया और लोगों को छुड़वाया। अब्दाली ने इसके बाद 1757 में अपने सेनापति जहान खान को फौज के साथ हरिमंदिर साहिब को तबाह करने के लिए अमृतसर भेजा। 75 साल की उम्र में बाबा दीप सिंह ने यहां जंग लड़ी। मुगल कमांडर जमाल खान का सिर कत्ल करने के बाद हमले में उनका भी शीश धड़ से अलग हो गया लेकिन शीश हथेली पर रखकर वे लड़ते रहे। अंत में बाबा दीप सिंह श्री हरिमंदिर साहिब पहुंच गए और अपना सिर परिक्रमा में चढ़ा कर प्राण त्याग दिए।
महाराजा भीमसिंह राणा ने मराठों को हरा जीता ग्वालियर
जन्म 1702 में हुआ। वीरगति 1756 में। पिता राणा जसवंत सिंह। गौत्र बमरौलिया। मध्यप्रदेश में गोहद नरेश रहे। मराठों को पराजित कर उन्होंने ग्वालियर पर विजय पाई और वहां पर शासन स्थापित किया। इनके शासन में 360 किले बने, 15 हजार घुड़सवार, 8 हजार पैदल सेना व 60 तोप इनके पास थी। बाद में 1755 में मराठा सरदार विट्ठुल शिवदेव विचुरंकर बहादुर गांव के पास सेना के साथ था। भीम सिंह राणा अपने कुछ अंगरक्षकों के साथ दुर्ग से बाहर आए हुए थे। इस दौरान शिवदेव को गुप्तचरों ने सूचना दे दी। उन्होंने राणा पर हमला कर दिया। राणा के सिर में तलवारों के वार हुए और गंभीर हालत में अंगरक्षक उन्हें दुर्ग ले गए। कुछ दिन इलाज के बाद उन्होंने दम तोड़ दिया। ग्वालियर किले में आज भी इनकी समाधि पर हर वर्ष मेला लगता है।
वीरांगना अमृता देवी ने पेड़ों की सुरक्षा में दिया बलिदान
जन्म 1700 में हुआ। शहीद 1730 में। गांव खेजड़ली जोधपुर, राजस्थान। मारवाड़ जोधपुर महाराजा अभयसिंह ने दुर्ग निर्माण के लिए चूना बनाने को खेजड़ी वन में वृक्षों को काटने का आदेश दिया। वृक्षों को नहीं काटने देने पर सन 1730 में 363 कत्ल सामंतशाही की तरफ से किए गए। महिलाएं और पुरुष पेड़ों से लिपट गए थे। इसमें वीरांगना देवी बेनिवाल बिश्नाेई ने पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रथम शहीदी दी थी।
बदन सिंह ने जाटों को एक सूत्र में बांधा
1723 ई से 1756 ई. तक जाटों का नेतृत्व किया। भरतपुर का राज्य किया और जाटों को एकता से सूत्र में पिरोया। वह शांति के पक्षधर थे। उन्होंने जाट कछवाहों की पुुस्तैनी शत्रुता को मित्रता में बदल दिया। पुरानी लूटमार नीति के विरुद्ध रहे। मुगल दरबार की गुटबंदी से भी अपने आप को दूर रखा। उसने जाट राज्य की सुरक्षा के लिए शक्तिशाली सेना बनाई। बदनसिंह ने डींग को अपनी राजधानी बनाया। यहां भव्य भवन, दुर्ग, बगीचों का निर्माण करवाया। राज्य के विस्तार की बजाय उसे ही संगठित करने पर ध्यान दिया। बदनसिंह महाराजा सूरजमल के पिता थे। 7 जून 1756 में उनका देहांत हो गया।
जाटों के प्लेटो महाराजा सूरजमल
जन्म 1707 में हुआ। 1763 ई में देहांत हुआ। पिता राजा बदन सिंह। गौत्र सिनसिनवाल। भरतपुर के राजा रहे और इन्हें जाटों का प्लेटाे कहा गया। जाटों के इतिहास में सूरजमल का वही स्थान है जो मुगलों के इतिहास में अकबर का और सिखों के इतिहास में महाराजा रणजीत सिंह का है। उन्होंने 1756 ई से 1763 ई. तक सात साल के छोटे से शासनकाल में अपनी कूटनीति और साहस द्वारा राजपूतों, मराठों, अफगानों, मुगलों और रूहेलाें को भी चकित कर दिया था। उसने सहादत खां के नेतृत्व वाली मुगल सेना को पराजित कर उन्हें एक संधि के लिए बाध्य किया। इस संधि के अनुसार मुगलों को एक धार्मिक शर्त को स्वीकार करना पड़ा। वे आगरा एवं अजमेर में न तो कोई पीपल का वृक्ष कटवाएंगे और न ही किसी मंदिर को ध्वस्त करेंगे। महाराजा सूरजमल ने अपनी कूटनीति से मराठों के भरतपुर पर आक्रमण की योजना को टाल दिया था। उसने अहमदशाह अब्दाली के भारत आक्रमण के समय भी कृटनीति से अपने राज्य को सुरक्षित रखा। 1761 के पानीपत के तीसरे युद्ध से पहले उन्होंने मराठों को अब्दाली से सीधे युद्ध् न लड़ने की भी सलाह और बीवी बच्चों को साथ न ले जाने को कहा। मराठों ने इस सलाह को नहीं माना और युद्ध हार गए। बाद में सूरजमल ने ही घायल मराठों, बचे मराठों व उनकी स्त्रियों को उदारतापूर्वक सुरक्षित स्थानों पर रखा। 25 दिसंबर, 1761 ई. को नजीब खां रूहेला के साथ हुए एक युद्ध में धोखे से हुए हमले में सूरजमल वीरगति को प्राप्त हुए।
महाराजा जवाहर सिंह लालकिले से उखाड़ लाए थे दरवाजा
जन्म 1733 ई में हुआ। देहांत 1768 ई.। पिता भरतपुर महाराजा सूरजमल। सूरजमल ने हरियाणा क्षेत्र के झज्जर, मेवात, रोहतक में साम्राज्य स्थापित किया। हरियाणा में शासन के लिए पुत्र जवाहर को उन्होंने नियुक्त किया। पोषक माता किशोरी के रोष भरे उलहाने पर पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए जवाहर सिंह ने दिल्ली पर चढ़ाई की। उनकी ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे लालकिले से अष्टधातु का दरवाजा उखाड़ लाए थे।
अजय रहा लोहगढ़ दुर्ग, जिससे शुरू हुई कहावत
महाराजा सूरजमल ने लोहगढ़ में दुर्ग बनवाया जिसमें चितौड़गढ़ का अष्टधातु वाला दरवाजा लगाया। 1805 में जसवंत राव होलकर का पीछा करते हुए अंग्रेज लार्ड लेक भरतपुर आया तो महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शरणार्थी होलकर को सौंपने की बजाय अंग्रेजों से युद्ध करना बेहतर समझा। दो महीने चले युद्ध में अंग्रेेज सेना के 3203 सैनिक मारे गए और 8 हजार घायल हुए। अंग्रेजों से युद्ध में भी यह दुर्ग अजेय रहा था। तब से ही कहावत बनी कि आठ फिरंगी नौ गाैरे, लड़े जाट के दो छौरे। भरतपुर और धौलपुर की जाट रियासतों ने कभी अंग्रेजों को टैक्स नहीं दिया। लोहगढ़ भारत का एकमात्र ऐसा था जिसपर कोई दूसरा कब्जा नहीं कर पाया। महाराजा कृष्णसिंह ने भारतवर्ष में सबसे पहले भरतपुर में नगरपाालिका बनाई गई।
महाराजा रणजीत सिंह जिनके ताज में सजता था कोहिनूर
जन्म 1780 ई. में हुआ। देहांत 1839 ई. मे। पिता राजा महासिंह। गौत्र सासि। जन्म गुंजरवाला, पूर्व पंजाब। इतिहास में शेर-ए-पंजाब और नेपोलियन के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनके ताज में कोहिनूर हीरा सजा रहता था। इनके विशाल साम्राज्य में सेनाएं खैबर पार तक गई थी। अफगानों के साथ लड़ाईयां लड़ी। पठान इनसे भयभीत रहते थे। रणजीत सिंह के जीते जी अंग्रेज इनके सम्राज्य के पास भी नहीं फटकते थे। पहली आधुनिक भारतीय सेना सिख खालसा सेना इन्होंने गठित की थी। 1839 में उनका निधन हुआ और लाहौर में उनकी समाधि बनवाई गई। इनकी मौत के बाद अंग्रेजों ने पंजाब पर शिकंजा कसना शुरू किया। अंग्रेज-सिख युद्ध के बाद मार्च 1839 में पंजाब ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बना लिया गया। कोहिनूर महारानी विक्टोरिया के हुजूर में पेश कर दिया गया।
शूरवीर हरफूल सिंह ने अंग्रेजी शासन में 17 बूचड़खाने तोड की गौ रक्षा
जन्म 1896, शहीदी 1936 में फांसी देने से। पिता चतरूराम। गौत्र श्योराण। गांव बारवास, लोहारू के पास जिला भिवानी हरियाणा। किस्सों में ये हरफूल जाट जुलानी वाले के तौर पर भी विख्यात हैं। अंग्रेजी शासन के दौरान गऊ रक्षा और धर्म हेतु कई बूचड़खाने तोड़े। गरीब व न्याय नहीं मिलने वालों की सहायता के लिए लड़ाई लड़ते थे। 1930 में उन्होंने अकेले टोहाना बूचड़खाना तोड़कर गौ हत्या के खिलाफ बिगुल बजाया। इसके बाद जींद, नरवाना, रोहतक, गोहानाा के बुचड़खाने तोड़े और गायों को मुक्त करवाया। 1936 में उन्हें सोते हुए धोखे से गिरफ्तार किया। कुछ दिन जींद जेल में रखा। यहां उनके समर्थकों ने उसे निकालने के लिए सुरंग तक बना दी थी। इसकी भनक के बाद अंग्रेजों ने हरफूल सिंह को फिरोजपुर पंजाब की जेल में पहुंचा दिया और फांसी दी गई। उनकी देह को सतलुज में प्रवाहित कर दिया गया।
शहीद भगत सिंह आज भी दिलों में करते राज
जन्म 28 सितंबर 1907, शहीदी 23 मार्च 1931 को फांसी। गांव बंगा, जिला लायलपुर पंजाब, अब पाकिस्तान में। भगत सिंह भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। देश की आजादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया। पहले लाहौर में अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केंद्रीय संसद यानि सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलंदी प्रदान की। इन्होंने असेंबली में बम फेंककर भागने से मना कर दिया। राजगुरु और सुखदेव के साथ 23 मार्च 1931 में लाहौर जेल में इन्हें फांसी दे दी गई।
दीनबंधु किसान मजदूर मसीहा सर छोटूराम
जन्म 24 नंवबर 1881 में, देहांत 9 जनवरी 1945 में। गांव गढ़ी सांपला, जिला रोहतक, हरियाणा। पिता सुखीराम साधारण किसान थे। रोहतक में छोटूराम के निवास स्थान को प्रेम निवास और नीली कोठी भी कहा जाता है। आगरा से लॉ की डिग्री कर 1912 में वकालत शुरू की। प्रथम विश्वयुद्ध में इन्होेंने रोहतक से 12144 जाट सैनिक भर्ती करवाए थे। इन्होंने शिक्षण संस्थानों को बढ़ावा दिया। उन्होंने 1915 में जाट गजट अखबार निकाला। स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लिया। गांधी के असहयोग आंदोलन से असहमत होकर 1920 में कांग्रेस छोड़ दी। वे संवैधानिक तरीके से स्वाधीनता की लड़ाई लड़ना चाहते थे। भारत सरकार अधिनियम 1919 के तहत 1920 में आम चुनाव हुए। इसका कांग्रेस ने बहिष्कार किया लेकिन चौ. छोटूराम व लालसिंह की जमींदारा पार्टी से विजयी हुए। इन्होंने किसानों और गरीब मजदूर वर्ग के हित में लड़ाई लड़ी और कानून बनवाए।
एसपी ताराचंद ने किया डाकुओं का सफाया
जन्म 1913 ई., वीरगति 1958 ई। पिता चौ. केशुराम। गौत्र सहारण। गांव मक्कासर, जिला हनुमानगढ़ृ, राजस्थान। राजस्थान के पश्चिमी-दक्षिणी भाग में डाकुओं का सफाया कर सुरक्षित किया और सीधे संघर्ष में वीरगति को प्राप्त हुए। दो बार राष्ट्रपति पदक प्राप्त किया।
परमवीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर होशियार सिंह

जन्म 1916 में हुआ, चीनी युद्ध में वीरगति 1962 में। पिता शिवलाल, गौत्र राठी। गांव सांखोली, जिला रोहतक, हरियाणा। युद्ध में अदभुत साहस से लड़े। इन्हें सरकार द्वारा परमवीर चक्र दिया गया।
- जाट मरा तब जाणिए, जब तेरहवीं हो जाए।
- कविता सोहे भाट की, खेती सोहे जाट की।
जितेंद्र बूरा.
हिंदू, मुस्लिम, सिख, जैन। जाट इन सब धर्मों में है। आस्थावान हैं पर कट्टरवादी नहीं। हक और स्वाभिमान के लिए लड़ते रहे हैं, इसका इतिहास गवाह है। मुगल हो या अंग्रेजों से स्वतंत्रता संग्राम, कौम के वीरों ने लड़ते हुए बलिदानियां दी। पर इतिहास के पन्नों में खास तवज्जो नहीं मिली, जिससे आने वाली पीढ़ियां जान सकें। पहले कबिलाई तरीके से रहे होंगे, लेकिन बदलते समय के साथ कृषि प्रमुख व्यवसाय इनका बना और अन्नदाता की पहचान बनाई। आजाद भारत में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में प्रमुखत: रहते हैं। महज आरक्षण आंदोलन से जाट की पहचान हो यह उचित नहीं, बल्कि आरक्षण आंदोलन से फिर एकजुट होकर दुनिया की नजरों में आई इस कौम का इतिहास शूरवीरों के बलिदानों से भरा है। हर साल 13 अप्रैल को बैशाखी पर विश्व जाट दिवस भी मनाया जाने लगा है।
कृषि, व्यवसाय, खेल और सीमा पर सुरक्षा में अपनी बहादुरी के झंडेे गाड़ रहे जाट समाज के वीरों द्वारा जात-धर्म से ऊपर उठकर देश के लिए दिए बलिदान को ही दिखाने का एक छोटा सा प्रयास। ताकि जब शूरवीरों के बलिदान की गाथाएं सुनाई जाएं तो आने वाली पीढ़ी रौब से कह सके कि हम उन शूरवीरों के समाज की संतान हैं।
परमवीर तेजाजी लोक देवता के रूप में पज्यनीय
जन्म 29 जनवरी 1074 में हुआ और 28 अगस्त 1103 ई. में वचनों में बंधकर सांप से डंसे जाने से देहांत। पिता का नाम वीरीराज। गौत्र धौलिया। गांव खरनाल, जिला नागौर, राजस्थान। सात भाईयों में दूसरे नंबर के थे। आज भी राजस्थान में लोक देवता के रूप में पूज्यनीय हैं। बताया जाता है कि लाछा गुजरी की गायों को चुरा लिया गया। उन्हें छुड़ाने निकले तेजाजी को एक सांप आग में जलता मिला। उसने उसे बचा लिया लेकिन वह सांप जोड़े से बिछड़ गया और डंसने लगा। किवंदति है कि तेजाजी ने वचन दिया कि गाय छुड़वाने के बाद वह खुद यहां आएगा और उसे फिर डंस लिया जाए। उन्होंने गाय छुड़वाई और फिर घायल हालत में यहां पहुंचकर अपनी जीभ पर सांप का डंक मरवाया। किशनगढ़़ के पास उनका देहांत हुआ।
शूरवीर बीगो गायों को छुड़वाते हुए शहीद
जन्म 1301 में हुआ। 1336 में वीरगति को प्राप्त हुए। पिता राव महेंदा चौधरी। गौत्र जाखड़। गांव रीड़ी, जिला चारू, राजस्थान। मुस्लमानों से एक ब्राह्मणी की गाय छुड़वाते हुए युद्ध में शीश कट गया। इसके बाद भी बताया जाता है कि इनकी धड़ लड़ती रही। सभी गाय छुड़वाई और उनकी वीरगति हुई।
गोकुल सिंह ने मंदिरों को तोड़ने के खिलाफ लड़ी जंग
जन्म 1630 में हुआ। 1670 में शहीद हुए। पिता मधु सिंह। गौत्र सिनसिनवाल। गांव तिलपत, जिला मथुरा, उत्तर प्रदेश। औरंगजेब द्वारा मथुरा वृंदावन में मंदिरों के तोड़ने व औरतों से दुर्व्यहार के विरोध में दस वर्ष तक मुगलों की शाही सेना के साथ गोरिल्ला युद्ध लड़ते रहे। मथुरा के फौजदार अब्दुल नबी ने मथुरा से लगभग 6 मील दूर सिहोरा गांव में एकत्रित विद्रोहियों को घेरा तो अब्दुल नबी मारा गया। औरंगजेब ने इसके बाद रदनदाज खां और हसन अली के नेतृत्व में बड़ी सेना भेजी। यहां तक की खुद भी योजना बनाने पहुंचे। करीब 20 हजार जाटों ने तिलपत से 20 मील दूर मुगल सेना का मुकाबला किया। मुगलों के चार हजार सैनिक मारे गए। गोकुल सहित सात हजार सैनिक बंदी बनाए गए। जनवरी 1670 में इस्लाम कबूल करने की शर्त पर गोकुल को रिहा करने को कहा गया, लेकिन गोकुल के इनकार करने पर उसे तड़पा-तड़पाकर मार दिया गया।
राजाराम ने औरंगजेब के नाक में रखा दम
जन्म 1652 में हुआ। 1688 में वीरगति को प्राप्त हुए। पिता ठाकुर भज्जासिंह। गौत्र सिनसिनवाल। गोकुल के बाद 1686 ई. में राजाराम ने जाटों का नेतृत्व संभाला। जाटों के विद्रोह के बाद औरंगजेब शांत नहीं बैठा। उसने प्रसिद्ध केशवराय मंदिर को नष्ट करवा दिया और उसके स्थान पर मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। उसने मथुरा का नाम बदलकर इस्लामाबाद व वृंदावन का नाम बदलकर मोमिनाबाद कर दिया। इस पर जाट बिफर गए। राजाराम ने जाटों को एकत्रित करके जाट नेता सोगर गांव के रामचेहरा के सहयोग से गौरिल्ला युद्ध लड़े। इन्होंने जाट वीरों को हथियार चलाना और बंदूकों से लैस भी किया। जब औरंगजेब दक्षिण के अभियानों में उलझा था तो राजाराम ने मुगलों के यहां लूट शुरू की। 1687 ई. में अगर खां जोकि काबूल का सूबेदार था एवं औरंगजेब की सहायता के लिए बीजापुर जा रहा था। उसको राजाराम ने धौलपुर के निकट लूट लिया। अगर खां और उसका दामाद इस दौरान मारा गया। 200 जाट भी इस मुठभेड़ में मारे गए। 1688 ई. के आरंभ में महाबत खां जोकि पंजाब का सूबेदार था। राजाराम ने सिकंदरा के पास उसे लूट लिया। सिकंदरा में स्थित अकबर के मकबरे की बहुमूल्य वस्तुओं को लूट लिया था। हिंदू राजकुमारी जोधा से विवाह करने वाले अकबर के शव को कब्र से निकालकर हिंदू रीतिरिवाज के तहत आग से संस्कार कर दिया था। डॉ. राजपाल सिंह के अनुसार उसने इस तरह गोकुल की नृशंस हत्या का बदला भी लिया गया। बीजल गांव के निकट 4 जुलाई 1688 में एक मुगल ने पेड़ के पीछे छिपकर राजराम की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
चूड़ामन ने स्थापित किया था भरतपुर का स्वतंत्र जाट राज्य
जन्म 1668 ई. में हुआ। 1721 में देहांत। पिता ठाकुर बृजराज सिंह। गौत्र सिनसिनवाल। राजाराम के भतीजा थे। राजाराम के बाद जाटों का नेतृत्व चूड़ामन ने संभाला। मुगलों से लगातार संघर्ष करते रहे। उसने अपनी सैनिक प्रतिभा एवं कूटनीतिक चतुराई से जाट शक्ति को उत्तरी भारत की प्रमुख शक्तियों में स्थान दिलवाया। उसेने 14000 सैनिकों की एक विशाल सैना तैयार की। मुगलों के खिलाफ लूट और संघर्ष जारी रखते हुए आगरा में परेशानी खड़ी की। औरंगजेब और उसके बाद उनके उत्ताराधिकारी भी उसकी शक्ति का दमन करने में विफल रहे। दिल्ली तक जाट हावी हो गए थे। 1721 ई. में चूड़ामन ने भरतपुर में स्वतंत्र जाट राज्य की स्थापना की। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. के आर कानूनगो का कहना है कि चूड़ामन ऐसा व्यक्ति था, जिसने जाटाें की किस्मत का निर्माण किया।
वीर जुझार सिंह जिनकी याद में आबाद हुआ झुंझनू
जन्म 1664 ई.। वीरगति 1730 ई। पिता चौ. जीवणराम। गौत्र नेहरा। जन्म स्थान नहरा की ढाणी, जिला झुुंझुनू, राजस्थान। इनके पता नवाबों के फौजदार थे। बाद में जुझार सिंह ने शार्दुल राजपूत के साथ मिलकर झुंझनू और नरहड़ में नवाबों को परास्त कर दिया। उन्हें सरदार बनाया गया, लेकिन विश्वासघात कर शेखावतों ने सरदार जुझार सिंह को धोखे से मार दिया। इनकी याद में झुंझनु शहर आबाद हुआ। बाद में जाटों के विद्रोह को दबाने के लिए शेखावतों ने समझौता किया और कई शर्तें मानी।
बाबा दीप सिंह ने अब्दाली सेना से लड़कर शीश किया कुर्बान
जन्म 26 जनवरी 1682 में हुआ। वीरगति 11 नवंबर 1757 में। पिता भाई भगतु। गौत्र सिंधु। गांव पहुविंड, जिला अमृतसर, पंजाब। बाबा दीप सिंह सिख धर्म के सबसे पवित्र शहीदों में से एक हैं। 1699 में वैशाखी के दिन आनंद साहिब में गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा खालसा में उन्हें गुरु के सिक्ख का रुतबा दिया गया। उन्हीं के सानिध्य में तलवारबाजी, घुड़सवारी, सहचर्या कौशल सीखा। 1755 में अफगानी शासक अहमदशाह अब्दाली ने भारत में लूटपाट की और हजारों लोगों को बंदी बनाया। बाबा दीपसिंह ने अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ लूटे सामान को जब्त किया और लोगों को छुड़वाया। अब्दाली ने इसके बाद 1757 में अपने सेनापति जहान खान को फौज के साथ हरिमंदिर साहिब को तबाह करने के लिए अमृतसर भेजा। 75 साल की उम्र में बाबा दीप सिंह ने यहां जंग लड़ी। मुगल कमांडर जमाल खान का सिर कत्ल करने के बाद हमले में उनका भी शीश धड़ से अलग हो गया लेकिन शीश हथेली पर रखकर वे लड़ते रहे। अंत में बाबा दीप सिंह श्री हरिमंदिर साहिब पहुंच गए और अपना सिर परिक्रमा में चढ़ा कर प्राण त्याग दिए।
महाराजा भीमसिंह राणा ने मराठों को हरा जीता ग्वालियर
जन्म 1702 में हुआ। वीरगति 1756 में। पिता राणा जसवंत सिंह। गौत्र बमरौलिया। मध्यप्रदेश में गोहद नरेश रहे। मराठों को पराजित कर उन्होंने ग्वालियर पर विजय पाई और वहां पर शासन स्थापित किया। इनके शासन में 360 किले बने, 15 हजार घुड़सवार, 8 हजार पैदल सेना व 60 तोप इनके पास थी। बाद में 1755 में मराठा सरदार विट्ठुल शिवदेव विचुरंकर बहादुर गांव के पास सेना के साथ था। भीम सिंह राणा अपने कुछ अंगरक्षकों के साथ दुर्ग से बाहर आए हुए थे। इस दौरान शिवदेव को गुप्तचरों ने सूचना दे दी। उन्होंने राणा पर हमला कर दिया। राणा के सिर में तलवारों के वार हुए और गंभीर हालत में अंगरक्षक उन्हें दुर्ग ले गए। कुछ दिन इलाज के बाद उन्होंने दम तोड़ दिया। ग्वालियर किले में आज भी इनकी समाधि पर हर वर्ष मेला लगता है।
वीरांगना अमृता देवी ने पेड़ों की सुरक्षा में दिया बलिदान
जन्म 1700 में हुआ। शहीद 1730 में। गांव खेजड़ली जोधपुर, राजस्थान। मारवाड़ जोधपुर महाराजा अभयसिंह ने दुर्ग निर्माण के लिए चूना बनाने को खेजड़ी वन में वृक्षों को काटने का आदेश दिया। वृक्षों को नहीं काटने देने पर सन 1730 में 363 कत्ल सामंतशाही की तरफ से किए गए। महिलाएं और पुरुष पेड़ों से लिपट गए थे। इसमें वीरांगना देवी बेनिवाल बिश्नाेई ने पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रथम शहीदी दी थी।
बदन सिंह ने जाटों को एक सूत्र में बांधा
1723 ई से 1756 ई. तक जाटों का नेतृत्व किया। भरतपुर का राज्य किया और जाटों को एकता से सूत्र में पिरोया। वह शांति के पक्षधर थे। उन्होंने जाट कछवाहों की पुुस्तैनी शत्रुता को मित्रता में बदल दिया। पुरानी लूटमार नीति के विरुद्ध रहे। मुगल दरबार की गुटबंदी से भी अपने आप को दूर रखा। उसने जाट राज्य की सुरक्षा के लिए शक्तिशाली सेना बनाई। बदनसिंह ने डींग को अपनी राजधानी बनाया। यहां भव्य भवन, दुर्ग, बगीचों का निर्माण करवाया। राज्य के विस्तार की बजाय उसे ही संगठित करने पर ध्यान दिया। बदनसिंह महाराजा सूरजमल के पिता थे। 7 जून 1756 में उनका देहांत हो गया।
जाटों के प्लेटो महाराजा सूरजमल
जन्म 1707 में हुआ। 1763 ई में देहांत हुआ। पिता राजा बदन सिंह। गौत्र सिनसिनवाल। भरतपुर के राजा रहे और इन्हें जाटों का प्लेटाे कहा गया। जाटों के इतिहास में सूरजमल का वही स्थान है जो मुगलों के इतिहास में अकबर का और सिखों के इतिहास में महाराजा रणजीत सिंह का है। उन्होंने 1756 ई से 1763 ई. तक सात साल के छोटे से शासनकाल में अपनी कूटनीति और साहस द्वारा राजपूतों, मराठों, अफगानों, मुगलों और रूहेलाें को भी चकित कर दिया था। उसने सहादत खां के नेतृत्व वाली मुगल सेना को पराजित कर उन्हें एक संधि के लिए बाध्य किया। इस संधि के अनुसार मुगलों को एक धार्मिक शर्त को स्वीकार करना पड़ा। वे आगरा एवं अजमेर में न तो कोई पीपल का वृक्ष कटवाएंगे और न ही किसी मंदिर को ध्वस्त करेंगे। महाराजा सूरजमल ने अपनी कूटनीति से मराठों के भरतपुर पर आक्रमण की योजना को टाल दिया था। उसने अहमदशाह अब्दाली के भारत आक्रमण के समय भी कृटनीति से अपने राज्य को सुरक्षित रखा। 1761 के पानीपत के तीसरे युद्ध से पहले उन्होंने मराठों को अब्दाली से सीधे युद्ध् न लड़ने की भी सलाह और बीवी बच्चों को साथ न ले जाने को कहा। मराठों ने इस सलाह को नहीं माना और युद्ध हार गए। बाद में सूरजमल ने ही घायल मराठों, बचे मराठों व उनकी स्त्रियों को उदारतापूर्वक सुरक्षित स्थानों पर रखा। 25 दिसंबर, 1761 ई. को नजीब खां रूहेला के साथ हुए एक युद्ध में धोखे से हुए हमले में सूरजमल वीरगति को प्राप्त हुए।
महाराजा जवाहर सिंह लालकिले से उखाड़ लाए थे दरवाजा
जन्म 1733 ई में हुआ। देहांत 1768 ई.। पिता भरतपुर महाराजा सूरजमल। सूरजमल ने हरियाणा क्षेत्र के झज्जर, मेवात, रोहतक में साम्राज्य स्थापित किया। हरियाणा में शासन के लिए पुत्र जवाहर को उन्होंने नियुक्त किया। पोषक माता किशोरी के रोष भरे उलहाने पर पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए जवाहर सिंह ने दिल्ली पर चढ़ाई की। उनकी ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे लालकिले से अष्टधातु का दरवाजा उखाड़ लाए थे।
अजय रहा लोहगढ़ दुर्ग, जिससे शुरू हुई कहावत
महाराजा सूरजमल ने लोहगढ़ में दुर्ग बनवाया जिसमें चितौड़गढ़ का अष्टधातु वाला दरवाजा लगाया। 1805 में जसवंत राव होलकर का पीछा करते हुए अंग्रेज लार्ड लेक भरतपुर आया तो महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शरणार्थी होलकर को सौंपने की बजाय अंग्रेजों से युद्ध करना बेहतर समझा। दो महीने चले युद्ध में अंग्रेेज सेना के 3203 सैनिक मारे गए और 8 हजार घायल हुए। अंग्रेजों से युद्ध में भी यह दुर्ग अजेय रहा था। तब से ही कहावत बनी कि आठ फिरंगी नौ गाैरे, लड़े जाट के दो छौरे। भरतपुर और धौलपुर की जाट रियासतों ने कभी अंग्रेजों को टैक्स नहीं दिया। लोहगढ़ भारत का एकमात्र ऐसा था जिसपर कोई दूसरा कब्जा नहीं कर पाया। महाराजा कृष्णसिंह ने भारतवर्ष में सबसे पहले भरतपुर में नगरपाालिका बनाई गई।
महाराजा रणजीत सिंह जिनके ताज में सजता था कोहिनूर
जन्म 1780 ई. में हुआ। देहांत 1839 ई. मे। पिता राजा महासिंह। गौत्र सासि। जन्म गुंजरवाला, पूर्व पंजाब। इतिहास में शेर-ए-पंजाब और नेपोलियन के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनके ताज में कोहिनूर हीरा सजा रहता था। इनके विशाल साम्राज्य में सेनाएं खैबर पार तक गई थी। अफगानों के साथ लड़ाईयां लड़ी। पठान इनसे भयभीत रहते थे। रणजीत सिंह के जीते जी अंग्रेज इनके सम्राज्य के पास भी नहीं फटकते थे। पहली आधुनिक भारतीय सेना सिख खालसा सेना इन्होंने गठित की थी। 1839 में उनका निधन हुआ और लाहौर में उनकी समाधि बनवाई गई। इनकी मौत के बाद अंग्रेजों ने पंजाब पर शिकंजा कसना शुरू किया। अंग्रेज-सिख युद्ध के बाद मार्च 1839 में पंजाब ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बना लिया गया। कोहिनूर महारानी विक्टोरिया के हुजूर में पेश कर दिया गया।
शूरवीर हरफूल सिंह ने अंग्रेजी शासन में 17 बूचड़खाने तोड की गौ रक्षा
जन्म 1896, शहीदी 1936 में फांसी देने से। पिता चतरूराम। गौत्र श्योराण। गांव बारवास, लोहारू के पास जिला भिवानी हरियाणा। किस्सों में ये हरफूल जाट जुलानी वाले के तौर पर भी विख्यात हैं। अंग्रेजी शासन के दौरान गऊ रक्षा और धर्म हेतु कई बूचड़खाने तोड़े। गरीब व न्याय नहीं मिलने वालों की सहायता के लिए लड़ाई लड़ते थे। 1930 में उन्होंने अकेले टोहाना बूचड़खाना तोड़कर गौ हत्या के खिलाफ बिगुल बजाया। इसके बाद जींद, नरवाना, रोहतक, गोहानाा के बुचड़खाने तोड़े और गायों को मुक्त करवाया। 1936 में उन्हें सोते हुए धोखे से गिरफ्तार किया। कुछ दिन जींद जेल में रखा। यहां उनके समर्थकों ने उसे निकालने के लिए सुरंग तक बना दी थी। इसकी भनक के बाद अंग्रेजों ने हरफूल सिंह को फिरोजपुर पंजाब की जेल में पहुंचा दिया और फांसी दी गई। उनकी देह को सतलुज में प्रवाहित कर दिया गया।
शहीद भगत सिंह आज भी दिलों में करते राज
जन्म 28 सितंबर 1907, शहीदी 23 मार्च 1931 को फांसी। गांव बंगा, जिला लायलपुर पंजाब, अब पाकिस्तान में। भगत सिंह भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। देश की आजादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया। पहले लाहौर में अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केंद्रीय संसद यानि सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलंदी प्रदान की। इन्होंने असेंबली में बम फेंककर भागने से मना कर दिया। राजगुरु और सुखदेव के साथ 23 मार्च 1931 में लाहौर जेल में इन्हें फांसी दे दी गई।
दीनबंधु किसान मजदूर मसीहा सर छोटूराम
जन्म 24 नंवबर 1881 में, देहांत 9 जनवरी 1945 में। गांव गढ़ी सांपला, जिला रोहतक, हरियाणा। पिता सुखीराम साधारण किसान थे। रोहतक में छोटूराम के निवास स्थान को प्रेम निवास और नीली कोठी भी कहा जाता है। आगरा से लॉ की डिग्री कर 1912 में वकालत शुरू की। प्रथम विश्वयुद्ध में इन्होेंने रोहतक से 12144 जाट सैनिक भर्ती करवाए थे। इन्होंने शिक्षण संस्थानों को बढ़ावा दिया। उन्होंने 1915 में जाट गजट अखबार निकाला। स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लिया। गांधी के असहयोग आंदोलन से असहमत होकर 1920 में कांग्रेस छोड़ दी। वे संवैधानिक तरीके से स्वाधीनता की लड़ाई लड़ना चाहते थे। भारत सरकार अधिनियम 1919 के तहत 1920 में आम चुनाव हुए। इसका कांग्रेस ने बहिष्कार किया लेकिन चौ. छोटूराम व लालसिंह की जमींदारा पार्टी से विजयी हुए। इन्होंने किसानों और गरीब मजदूर वर्ग के हित में लड़ाई लड़ी और कानून बनवाए।
एसपी ताराचंद ने किया डाकुओं का सफाया
जन्म 1913 ई., वीरगति 1958 ई। पिता चौ. केशुराम। गौत्र सहारण। गांव मक्कासर, जिला हनुमानगढ़ृ, राजस्थान। राजस्थान के पश्चिमी-दक्षिणी भाग में डाकुओं का सफाया कर सुरक्षित किया और सीधे संघर्ष में वीरगति को प्राप्त हुए। दो बार राष्ट्रपति पदक प्राप्त किया।
परमवीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर होशियार सिंह

जन्म 1916 में हुआ, चीनी युद्ध में वीरगति 1962 में। पिता शिवलाल, गौत्र राठी। गांव सांखोली, जिला रोहतक, हरियाणा। युद्ध में अदभुत साहस से लड़े। इन्हें सरकार द्वारा परमवीर चक्र दिया गया।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें