राजनीति पर खाप इफेक्ट : खापों को नहीं दी राजनीतिक दलों ने तवज्जो, पिछले चुनावों में कई खाप प्रधान लड़ चुके चुनाव
राजनीति में खाप -
- जाट बहुल्य क्षेत्र में खापों का खासा प्रभाव, राजनीतिक दलों के समर्थन में भी बंटी खापें
- कई खाप राजनीति से रख रही सीधे तौर पर दूरी, तो महम चौबीसी ने अपने भी उतारे उम्मीदवार
- कई खाप राजनीति से रख रही सीधे तौर पर दूरी, तो महम चौबीसी ने अपने भी उतारे उम्मीदवार
जितेंद्र बूरा...
खापों का राजनीतिक में हस्तक्षेप बढ़ता रहा है, लेकिन इस बार राजनीतिक दलों ने खापों को खास तवज्जो नहीं दी है। टिकट की उम्मीद में बैठे और पिछली बार चुनाव तक लड़ चुके खाप प्रधानों को टिकट नहीं मिली। भाजपा ने पिछली बार चुनाव लड़ने वाले मलिक खाप प्रधान बलजीत मलिक, सांगवान खाप प्रधान सोमवीर सांगवान को टिकट नहीं दी। इनेलो से टिकट मांग रहे महम चौबीसी सर्वखाप प्रधान तुलसी ग्रेवाल को भी टिकट नहीं मिली। जन नायक जनता पार्टी ने जरूर लाडवा से सर्वखाप महिला अध्यक्ष संतोष देवी को टिकट दी है। पिछली बार इन्होंने बेरी से इनेलो की टिकट पर चुनाव लड़ा था।
महम चौबीसी सर्वखाप सीधे तौर पर चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारती रही है। स्व. देवीलाल को बुलाकर चुनाव लड़वाया और पंचायती उम्मीदवार भी जिताए। वहीं कई खाप सीधे तौर पर राजनीति से दूरी बनाए हैं, लेकिन राजनीतिक लोग उनके यहां दस्तक देते हैं। हाल में विपक्ष को चौटाला परिवार को एकजुट करने के लिए दहिया खाप के एक प्रधान आगे आए तो दूसरे प्रधान ने उसकी प्रधानी पर ही सवाल उठा दिए। कई विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो जाट बहुल क्षेत्र में जाट नेताओं का ही वर्चस्व रहता है। पिछले चुनावों में खापों का इफेक्ट दिखा लेकिन इस पर राजनीतिक दल सीधे तौर पर खापों के प्रभाव में नहीं दिखे।
जानिए प्रमुख खाप : कुछ राजनीति से दूर और कुछ सीधे-सीधे चुनाव समर में
गठवाला मलिक खाप
प्रधान : बलजीत मलिक
वजूद विधानसभा क्षेत्र का दावा : गन्नौर, गोहाना, बरौदा, जुलाना, पानीपत ग्रामीण, इसराना हांसी और सफीदों विधानसभा क्षेत्र।
पिछली बार हार चुके मलिक को नहीं मिली टिकट, अब योगेश्वर के प्रचार में लगे
मलिकों के प्रभाव से ही सोनीपत लोकसभा क्षेत्र में वरिष्ठ कांग्रेस नेता धर्मपाल मलिक ने देवीलाल तक को हराया। पिछले विधानसभा चुनाव में मलिक खाप प्रधान बलजीत मलिक खुद भाजपा की टिकट पर बरौदा से चुनाव लड़ा पर हार गए। इस बार भी वो भाजपा से टिकट की चाह रखे थे, लेकिन इस बार पहलवान योगेश्वर को यहां से भाजपा ने टिकट दी। अब बलजीत मलिक उनके प्रचार में साथ हैं। खाप के वोटों में बिखराव इससे दिख रहा है कि खाप प्रभावित क्षेत्र में पिछली बार कुलदीप शर्मा, जगबीर मलिक, श्रीकृष्ण, परमेंद्र ढुल, जसबीर देशवाल और रेणुका बिश्नोई विधायक बने।
महम चौबीसी सर्वखाप
प्रधान : बलजीत मलिक
वजूद विधानसभा क्षेत्र का दावा : गन्नौर, गोहाना, बरौदा, जुलाना, पानीपत ग्रामीण, इसराना हांसी और सफीदों विधानसभा क्षेत्र।
पिछली बार हार चुके मलिक को नहीं मिली टिकट, अब योगेश्वर के प्रचार में लगे
मलिकों के प्रभाव से ही सोनीपत लोकसभा क्षेत्र में वरिष्ठ कांग्रेस नेता धर्मपाल मलिक ने देवीलाल तक को हराया। पिछले विधानसभा चुनाव में मलिक खाप प्रधान बलजीत मलिक खुद भाजपा की टिकट पर बरौदा से चुनाव लड़ा पर हार गए। इस बार भी वो भाजपा से टिकट की चाह रखे थे, लेकिन इस बार पहलवान योगेश्वर को यहां से भाजपा ने टिकट दी। अब बलजीत मलिक उनके प्रचार में साथ हैं। खाप के वोटों में बिखराव इससे दिख रहा है कि खाप प्रभावित क्षेत्र में पिछली बार कुलदीप शर्मा, जगबीर मलिक, श्रीकृष्ण, परमेंद्र ढुल, जसबीर देशवाल और रेणुका बिश्नोई विधायक बने।
महम चौबीसी सर्वखाप
प्रधान : तुलसी ग्रेवाल
वजूद विधानसभा क्षेत्र का दावा : महम, नारनौंद, हांसी व मुंढाल। महम चौबीसी में दूसरे प्रधान राजू ढाका भी हैं।
सीधे तौर भी उतारे पंचायती उम्मीदवार, अब टिकट नहीं
महम चौबीसी खाप ने सीधे तौर पर अपने पंचायती उम्मीदवार चुनाव में उतारे भी हैं और जिताए भीं। संयुक्त पंजाब में 1962 में महम आरक्षित सीट से रामधारी वाल्मीकि को खाप ने जिताया। इनके बेटे जयतीर्थ अब खरखौदा से कांग्रेस विधायक हैं। खाप ने हरस्वरूप बूरा और उमेद सिंह को चुनाव जिताया। सबसे पहले आजाद लड़े प्रो. महासिंह को समर्थन दिया था और वो जीतकर प्रदेश के शिक्षा मंत्री भी बने। वर्ष 1987 में खाप के समर्थन में देवीलाल ने चुनाव लड़ा और प्रचंड बहुमत प्रदेश में पाया था। खाप ने जीप उन्हें भेंट की थी। बढ़े राजनीतिक प्रभाव में खाप भी दो हिस्सों में बंटी। महम चौबीसी सर्वखाप में तुलसी ग्रेवाल प्रधान हैं जोकि इनेलो से टिकट की दावेदारी जता रहे थे, लेकिन इनेलो ने यहां उम्मीदवार ही नहीं दिया। वहीं राजू ढाका दूसरे प्रधान हैं।
कंडेला खाप
प्रधान : टेकराम कंडेला
वजूद विधानसभा क्षेत्र का दावा : जींद विधानसभा में ज्यादा प्रभाव
प्रधान दो बार हार चुके चुनाव, अब हैं चेयरमैन
चौटाला सरकार में कंडेला का किसान आंदोलन देशभर में चर्चित रहा। कंडेला खाप का प्रभाव भी उस दौर में खूब बढ़ा। कंडेला खाप के प्रधान टेकराम कंडेला ने वर्ष 1991 में जनता पार्टी से चुनाव लड़ा और हार गए। पिछले चुनाव में कांग्रेस की टिकट की उम्मीद में इनेलो छोड़ कांग्रेस में गए। टिकट नहीं मिली तो निर्दलीय चुनाव हारे। जींद विधानसभा में शहरी वोट ज्यादा मायने रखते हैं। उपचुनाव में भाजपा जॉइन की और बाद में हरियाणा राज्य सहकारी श्रम एवं निर्माण प्रसंघ के चेयरमैन बनाए गए।
सांगवान खाप
प्रधान - सोमवीर सांगवान
वजूद विधानसभा क्षेत्र का दावा : दादरी और बाढ़ड़ा।
पिछली बार भाजपा से चुनाव होरे, अब टिकट न मिलने पर निर्दलीय उतरे
सांगवान खाप के 58 गांव हैं। सेवानिवृत्त कर्नल रिसाल सिंह लंबे समय तक खाप के प्रधान रहे। 1987 में देवीलाल की लहर के बीच कांग्रेस की टिकट पर उन्होंने चुनाव लड़ा और हार गए। उनके देहांत के बाद वर्ष 2016 में चरखी से ही सोमवीर सांगवान प्रधान बने। प्रधान बनने से पहले सोमवीर ने पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा की टिकट से लड़ा। करीब 1600 वोट के अंतर से वे हारे। इस बार भी दादरी से भाजपा की टिकट मांग रहे थे, टिकट नहीं मिली तो भाजपा से बगावत कर निर्दलीय के तौर पर मैदान में उतरे हैं। यहां पहलान बबीता फौगाट को भाजपा ने टिकट दी है। सांगवान खाप ने महिला कॉलेज भी चलाया जिसे सरकार ने टेकओवर कर लिया है। डीजे पर प्रतिबंध, मृत्यु भोज पर रोक जैसे फैसले खाप ने लिए हैं।
प्रधान : टेकराम कंडेला
वजूद विधानसभा क्षेत्र का दावा : जींद विधानसभा में ज्यादा प्रभाव
प्रधान दो बार हार चुके चुनाव, अब हैं चेयरमैन
चौटाला सरकार में कंडेला का किसान आंदोलन देशभर में चर्चित रहा। कंडेला खाप का प्रभाव भी उस दौर में खूब बढ़ा। कंडेला खाप के प्रधान टेकराम कंडेला ने वर्ष 1991 में जनता पार्टी से चुनाव लड़ा और हार गए। पिछले चुनाव में कांग्रेस की टिकट की उम्मीद में इनेलो छोड़ कांग्रेस में गए। टिकट नहीं मिली तो निर्दलीय चुनाव हारे। जींद विधानसभा में शहरी वोट ज्यादा मायने रखते हैं। उपचुनाव में भाजपा जॉइन की और बाद में हरियाणा राज्य सहकारी श्रम एवं निर्माण प्रसंघ के चेयरमैन बनाए गए।
सांगवान खाप
प्रधान - सोमवीर सांगवान
वजूद विधानसभा क्षेत्र का दावा : दादरी और बाढ़ड़ा।
पिछली बार भाजपा से चुनाव होरे, अब टिकट न मिलने पर निर्दलीय उतरे
सांगवान खाप के 58 गांव हैं। सेवानिवृत्त कर्नल रिसाल सिंह लंबे समय तक खाप के प्रधान रहे। 1987 में देवीलाल की लहर के बीच कांग्रेस की टिकट पर उन्होंने चुनाव लड़ा और हार गए। उनके देहांत के बाद वर्ष 2016 में चरखी से ही सोमवीर सांगवान प्रधान बने। प्रधान बनने से पहले सोमवीर ने पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा की टिकट से लड़ा। करीब 1600 वोट के अंतर से वे हारे। इस बार भी दादरी से भाजपा की टिकट मांग रहे थे, टिकट नहीं मिली तो भाजपा से बगावत कर निर्दलीय के तौर पर मैदान में उतरे हैं। यहां पहलान बबीता फौगाट को भाजपा ने टिकट दी है। सांगवान खाप ने महिला कॉलेज भी चलाया जिसे सरकार ने टेकओवर कर लिया है। डीजे पर प्रतिबंध, मृत्यु भोज पर रोक जैसे फैसले खाप ने लिए हैं।
सर्वजातीय बिनैन खाप
प्रधान- नफेसिंह नैन
वजूद विधानसभा क्षेत्र दावा : नरवाना, टोहाना, उकलाना व साथ लगती जाट बेल्ट पर प्रभाव
खाप राजनीति से दूर पर प्रधान के बेटे कांग्रेस में सक्रिय
खाप का अपना सामाजिक तौर पर लिखित संविधान भी है। मिर्चपुर कांड के दौरान भाईचारा बनाने में योगदान दिया। क्षेत्र में हत्याओं तक के मामलों को पंचायती तौर पर सुलझाया। बनैन खाप का अपना चबूतरा है। लंबे समय से नफेसिंह नैन प्रधान हैं। सर्वजातीय खाप का दावा करते आए हैं। सीधे तौर पर खाप राजनीति से दूर हैं। सभी राजनीतिक दल इनके चबूतरे पर पहुंचते हैं। आपसी भाइचारे को बढ़ाते हैं। हालांकि प्रधान नफेसिंह नैन के बड़े बेटे ईश्वर नैन कांग्रेस पार्टी में हरियाणा कृषक समाज अध्यक्ष हैं।
राजनीतिकरण होने से कम हो रहा सामाजिक प्रभाव
खाप पंचायतों का आज भी सामाजिक प्रभाव है। कई खाप राजनीति का शिकार होकर दो धड़ों में भी बंटी हैं। बहादुरगढ़ से किसान और खाप नेता के तौर पर रमेश दलाल करीब एक साल पहले भाजपा से इनेलो में शामिल हुए। पिछले दिनों इन्होंने विपक्षी दलों को एक करने का अभियान चलाया पर सफल नहीं हुए। अब बसपा की टिकट पर बेरी से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, दहिया खाप के प्रधान सुरेंद्र दहिया ने राजनीति से दूर रहकर सामाजिक नजरिए से चौटाला परिवार को एक करने की मुहिम में समर्थन दिया तो दहिया खाप के ही दूसरे प्रधान महावीर ने सुरेंद्र दहिया की प्रधानी पर ही सवाल उठा दिए। खाप के लोगों ने दोनों प्रधानों की बयानबाजी पर भी एतराज जताया था।
12 से ज्यादा गांवों को मिलाकर बनती है खाप, बाद में गौत्र के नाम पर बनी
प्राचीन काल से ही खापों की संख्या के आधार पर सबसे छोटी ईकाई तपा बनाई गई है। कई तपा मिलाकर बारहा और कई गांव मिलाकर खाप बनाई गई। खाप सामाजिक तौर पर आपसी सहमति से बनाई हुई संस्था हैं। क्षेत्रीय आधार के बाद समय के साथ गौत्र नाम आधारित खाप बनने लगी। बूरा खाप, श्योराण खाप, हुड्डा खाप, कादियान खाप, लाठर खाप, काजल खाप, ढुल खाप, भनवाला खाप, दलाल खाप, सांगवान खाप सहित कई अन्य खाप जाटों के गौत्र पर आधारित हैं। हालांकि दावा सर्वजातीय का ही रहता है। राजा हर्षवर्धन के समय 643 ई. में भी पंचायतों और खापों का जिक्र है। सामाजिक तौर पर सतरौल खाप, सात बांस खाप, जाटू खाप चौरासी, नंदगढ़ चुडाली खाप, हाट बारहा, बराह कलां बारहा, खाप 360 आदि हैं।
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