15 दरवाजों वाला शहर था पानीपत, हर दरवाजे का है अपना किस्सा
- आज भी सालारजंग गेट दे रहा पानीपत के इतिहास की गवाही
- जमींदोज हो चुका किला, ऊंची जगह पर बना है पार्क
जितेंद्र बूरा.
तीन लड़ाइयों से विख्यात पानीपत आज उधोग क्रांति में अपनी पहचान रखता है। एक अनोखी पहचान भी पानीपत की थी जिसकी अब धरातल पर निशानी कम, बुजुर्गों के दिलों में यादें ही बची हैं। एक दौर में पानीपत 15 दरवाजों के अंदर बसा शहर था। हर दरवाजे का एक नाम और किस्सा है। इतिहास की गवाही देता सालारजंग गेट ही अब बचा है। सुरक्षित नहीं किया गया तो यह निशानी भी वक्त के थपेड़ों में ओझल हो जाएगी। पानीपत के मशहूर शायर अल्ताफ हुसैन हाली पर लिखी पुस्तक दास्तान-ए-हाली में लेखक रमेशचंद्र पुहाल ने भी इन दरवाजों का जिक्र किया है।
पानीपत का परिचय अन्य लेखकों की राय से प्रो. नजीर अहमद साहब अपनी लिखी किताब - अल्ताफ हुसैन हाली तहीककी और तनकीदी जायजे, में इस प्रकार लिखते हैं। बादशाह ग्यासूद्दीन बलबन के शासन में पानीपत को महत्व प्राप्त हुआ। अपने शासक होने की घोषणा के बाद सुल्तान बलबन ने देहली के चारों ओर मजबूत किले और थानों के निर्माण कराए। ताकि मंगोलिया से आए हुए हमलावरों और लुटेरों से शहर देहली का बचाव हो सके। पानीपत का मजबूत किला भी इसी जमाने में निर्माण हुआ था। सुल्तान बलबन के शासन के दौरान मुस्लिम देशों से जो मुहाजिरीन यानि शरणार्थी आए, उनको भी कई कस्बों में बसाया गया था।
मुगल बादशाह जहिरूद्दीन मुहम्मद बाबर और उसके पोते शहंशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर को पानीपत के मैदान में न्याय करने वाली लड़ाईयों में विजय हासिल हुई। बाबर ने अपनी फतह की यादगार में पानीपत में बाग लगवाया और मस्जिद भी बनवाई। बाद में यह जगह काबूली बाग के नाम से मशहूर हुई, जो अब तक मौजूद है। निर्माण कला में महत्वपूर्ण व एतिहासिक होने की वजह से यह पुरातत्व विभाग के अधीन है। बाग की तरह मुगल काल की सराएं और इमारतें खंडहरों में बदल गई।
अकबर के जमाने में पानीपत एक परगने की हैसियत से सरकारे देहली में शामिल था। इतिहास के जानकार अबुल फजल ने लिखा है कि पानीपत का किला पंचत: ईंटों से बना था। किला अब जमींदोज हो चुका है लेकिन ऊंचे टीले में अब भी कहीं-कहीं ये ईंटे निकल रही हैं। पानीपत के इस किले में सौ घुड़सवार और दो हजार पैदल सिपाहियों का दस्ता रहता था। फौज की संख्या से मालूम होता है कि पानीपत उस समय भी महत्वपूर्ण कस्बा था। इसी जमाने में बरन यानि बुलंदशहर भी सरकारे देहली का हिस्सा था। लेकिन वहां सत्तर घुड़सवार और एक हजार सिपाहियों का दस्ता रहता था। पानीपत के बड़े जमींदार जाट, गुजर, रांघड़ और अन्य जमीदारों के अलावा मुसलमानों में अफगान यानि पठान जमींदार शामिल थे।
पानीपत शहर इस जमाने में 15 दरवाजों से सुशोभित था। शहर दरवाजों के बीच चारों ओर दीवारों से घिरा था ताकि पानीपत निवासी हमलावरों से महफूज रह सकें।
1. दरवाजा सालारजंग
ये दरवाजा आज भी अपने स्थान पर कायम है। इस दरवाजे के माथे पर सफेद रंग का एक पत्थर चिना गया है। इस तख्ती पर लिखा है- बाब नवाब फैज सादिक अली। बाबर काल में नवाज सादिक अली ने इसे बनवाया था। अब यह दरवाजा पुरातत्व विभाग के अधीन है। इसका वर्णन इतिहास से जुड़ा है।
2. दरवाजा अंसार
अब लाल बत्ती अंसार बाजार में ये दरवाजा मौजूद नहीं है। ये दरवाजा अंसारियों ने बनाया था। लालबत्ती से आगे अंसार मोहल्ला सिकुड़ कर छोटा हो गया। समय के थपेड़ों ने दरवाजा तो यहां खत्म कर दिया लेकिन अब इंसार बाजार सोनीपत का सबसेे मशहूर बाजारों में एक हैं।
3. दरवाजा दबगरान
अब नवल सिनेमा के सामने गुरुद्वारे के बराबर में यहां एक कुआं दबगरान था। अब ये कुआं गुरुद्वारे के अंदर है। ये दरवाजा दबगर जाति ने बनवाया था जोकि अब खत्म हो चुका है। समय के साथ यह स्थान तंग हो गया और दरवाजे को भी समय निगल गया।
4. दरवाजा राजपूतान
ये दरवाजा पशु अस्पताल मार्ग पर जीटी रोड की तरफ था। इस दरवाजे को पानीपत के राजपूतों ने बनवाया था जोकि अब खत्म हो चुका है। प्रसिद्ध इतिहासकार आयरलैंड ने लिखा है कि पानीपत के इलाके में जो मुसलमान राजूपत हैं वे हजरत बू अली शाह कलंदर नौमानी पानीपती की ही बदौलत मुर्शरफ बा इस्लाम हुए।
5. दरवाजा घोसियान
मस्जिद घोसियान में गुरुद्वारा स्थापित हुआ। इसी के बाहर इसी सड़क पर ये दरवाजा था। अब गुरुद्वारा संत भाई नरैण सिंह के साथ यह दरवाजा बना था। इसे घोसी जाति के लोगों ने बनवाया था। अब जो दरवाजा बना है इस दरवाजे को गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने बनाया है। यहां घोसी जाति यानि मुस्लमान लोग आबाद थे।
6. दरवाजा हजरत शाह विलायत साहेब
ये दरवाजा दरगाह हजरत शाह विलाय साहेब के बाहर जो रास्ता अंदर शहर की ओर जाता है पर कायम था। चुंगी महसूल शाह विलायत दरवाजे के बाहर बनाई गई थी। वक्त के थपेड़ों ने इसे भी नहीं छोड़ा। ये दरवाजा दरगाह शरीफ प्रबंधकों द्वारा बनाया गया था।
7. दरवाजा अफगानान
ये दरवाजा भीम गोडा मंदिर के साथ शहर के अंदर जाने वाले रास्ते पर कायम था। इस दरवाजे को अफगानों ने बनवाया था। यह दरवाजा भी वक्त के पेट में चला गया। इसके अंदर अधिकतर पठानों की तादाद अधिक थी।
8. लाल दरवाजा
ये दरवाजा रामायणी चौक पर था। इस दरवाजे के पास ही बने बड़े मकान में आबाद शामली वाले ने इसे निर्माण करवाया था। ये भी खत्म हो चुका है। इस दरवाजे के बाहर ऊंचे टीले पर हाथियों की कब्रें थी। यहां के लोग आज भी इस जगह को लाल दरवाजा कहकर बुलाते हैं।
9. दरवाजा रानी महल
ये दरवाजा नई सब्जी मंडी मुख्य द्वार के सामने पुराने शहर की तरफ जाने वाले रास्ते पर था जोकि रानी महल के पास बनाया गया था। इसे एक नवाज ने बनवाया था। यह दरवाजा विशाल था लेकिन समय की दौड़ में विलुप्त हो गया।
10. दरवाजा लोहदर राजपूत
ये दरवाजा छोटे आकार का था। चांदनी बाग की तरफ से लोढ़ा राजपपूतों के मोहल्ले के मुहाने पर था। जहां पर आज मुलतानियों के घर हैं। इस दरवाजे को लोहदर यानि लोढ़ा जाति के लोगों ने बनवाया था। अब यह स्थान तंग हो गया और दरवाजा नहीं रहा।
11. दरवाजा बागड़ियान
ये दरवाजा श्री महावीर आदर्श सीनियर सेकेंडरी स्कूल वार्ड 11 के सामने था। इस दरवाजे को सराय खिरनी में रहने वाले हिंदुओं और बागड़ी मुस्लमानों ने बनवाया था। यह दरवाजा पानीपत की तीसरी लड़ाई में तबाह कर दिया गया था। इस दरवाजे को तोड़कर मराठा फौज शहर में घुस गई थी। फिर अहमद शाह दुर्रनी की फौज ने शहर में लूटपाट की जिसे आज भी भाऊ की लूट कहते हैं। मराठा पेशवा सदाशिव राव भाऊ को पकड़ कर कत्ल कर दिया गया था।
12. दरवाजा हजरत मखदूम साहेब
ये दरवाजा हजरत मखदूम साहेब की दरगाह की इंतजामिया कमेटी ने बनवाया था। आज इस स्थान के नजदीक काफी आबादी है। यह रास्ता सीधा हजरत मखदूम साहेब की दरगाह की ओर लाडला कुआं की तरफ निकल जाता है। इस बाजार को देखकर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि किसी जमाने में इस स्थान पर कोई दरवाजा होगा।
13. दरवाजा हजरत बूल अली शाह कलंदर साहेब
ये दरवाजा वीर भवन चौक से दरगाह हजरत बू अली शाह कलंदर साहेब को जाने वाले रास्ते पर आटे चक्की के नजदीक है। यह किले वाली गली के आगे चलकर बना था। यह दरवाजा दरगाह हजरत बू अली शाह कलंदर की इंतजामिया कमेटी की तरफ से बनवाया गया था। अब यह नहीं बचा है।
14. दरवाजा माधोगंज
ये दरवाजा आज भी कुछ हद तक कायम है। इसके इसके कायम रहने की वजह वैश्य पंचायत है। ये दरवाजा किला तथा हलवाई हट्टा, बाजार ठठेरान से चढाई उतरते हुए देवी मंदिर की ओर शहर से निकलने हुए रास्ते में आता है।
15. दरवाजा कायस्तान
ये दरवाजा परम हंस कुटिया के सामने और मंदिर कबीर चौरा के बराबर वाला मोहल्ला कायस्तान के मुहाने पर कायम था। यह दरवाजा अभी कुछ वर्ष पहले मोहल्ला निवासियों ने तोड़ दिया। अब यह ऊंचाई वाली गली बिना दरवाजे के है।
- जमींदोज हो चुका किला, ऊंची जगह पर बना है पार्क
जितेंद्र बूरा.
तीन लड़ाइयों से विख्यात पानीपत आज उधोग क्रांति में अपनी पहचान रखता है। एक अनोखी पहचान भी पानीपत की थी जिसकी अब धरातल पर निशानी कम, बुजुर्गों के दिलों में यादें ही बची हैं। एक दौर में पानीपत 15 दरवाजों के अंदर बसा शहर था। हर दरवाजे का एक नाम और किस्सा है। इतिहास की गवाही देता सालारजंग गेट ही अब बचा है। सुरक्षित नहीं किया गया तो यह निशानी भी वक्त के थपेड़ों में ओझल हो जाएगी। पानीपत के मशहूर शायर अल्ताफ हुसैन हाली पर लिखी पुस्तक दास्तान-ए-हाली में लेखक रमेशचंद्र पुहाल ने भी इन दरवाजों का जिक्र किया है।
पानीपत का परिचय अन्य लेखकों की राय से प्रो. नजीर अहमद साहब अपनी लिखी किताब - अल्ताफ हुसैन हाली तहीककी और तनकीदी जायजे, में इस प्रकार लिखते हैं। बादशाह ग्यासूद्दीन बलबन के शासन में पानीपत को महत्व प्राप्त हुआ। अपने शासक होने की घोषणा के बाद सुल्तान बलबन ने देहली के चारों ओर मजबूत किले और थानों के निर्माण कराए। ताकि मंगोलिया से आए हुए हमलावरों और लुटेरों से शहर देहली का बचाव हो सके। पानीपत का मजबूत किला भी इसी जमाने में निर्माण हुआ था। सुल्तान बलबन के शासन के दौरान मुस्लिम देशों से जो मुहाजिरीन यानि शरणार्थी आए, उनको भी कई कस्बों में बसाया गया था।
मुगल बादशाह जहिरूद्दीन मुहम्मद बाबर और उसके पोते शहंशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर को पानीपत के मैदान में न्याय करने वाली लड़ाईयों में विजय हासिल हुई। बाबर ने अपनी फतह की यादगार में पानीपत में बाग लगवाया और मस्जिद भी बनवाई। बाद में यह जगह काबूली बाग के नाम से मशहूर हुई, जो अब तक मौजूद है। निर्माण कला में महत्वपूर्ण व एतिहासिक होने की वजह से यह पुरातत्व विभाग के अधीन है। बाग की तरह मुगल काल की सराएं और इमारतें खंडहरों में बदल गई।
अकबर के जमाने में पानीपत एक परगने की हैसियत से सरकारे देहली में शामिल था। इतिहास के जानकार अबुल फजल ने लिखा है कि पानीपत का किला पंचत: ईंटों से बना था। किला अब जमींदोज हो चुका है लेकिन ऊंचे टीले में अब भी कहीं-कहीं ये ईंटे निकल रही हैं। पानीपत के इस किले में सौ घुड़सवार और दो हजार पैदल सिपाहियों का दस्ता रहता था। फौज की संख्या से मालूम होता है कि पानीपत उस समय भी महत्वपूर्ण कस्बा था। इसी जमाने में बरन यानि बुलंदशहर भी सरकारे देहली का हिस्सा था। लेकिन वहां सत्तर घुड़सवार और एक हजार सिपाहियों का दस्ता रहता था। पानीपत के बड़े जमींदार जाट, गुजर, रांघड़ और अन्य जमीदारों के अलावा मुसलमानों में अफगान यानि पठान जमींदार शामिल थे।
पानीपत शहर इस जमाने में 15 दरवाजों से सुशोभित था। शहर दरवाजों के बीच चारों ओर दीवारों से घिरा था ताकि पानीपत निवासी हमलावरों से महफूज रह सकें।
1. दरवाजा सालारजंग
ये दरवाजा आज भी अपने स्थान पर कायम है। इस दरवाजे के माथे पर सफेद रंग का एक पत्थर चिना गया है। इस तख्ती पर लिखा है- बाब नवाब फैज सादिक अली। बाबर काल में नवाज सादिक अली ने इसे बनवाया था। अब यह दरवाजा पुरातत्व विभाग के अधीन है। इसका वर्णन इतिहास से जुड़ा है।
2. दरवाजा अंसार
अब लाल बत्ती अंसार बाजार में ये दरवाजा मौजूद नहीं है। ये दरवाजा अंसारियों ने बनाया था। लालबत्ती से आगे अंसार मोहल्ला सिकुड़ कर छोटा हो गया। समय के थपेड़ों ने दरवाजा तो यहां खत्म कर दिया लेकिन अब इंसार बाजार सोनीपत का सबसेे मशहूर बाजारों में एक हैं।
3. दरवाजा दबगरान
अब नवल सिनेमा के सामने गुरुद्वारे के बराबर में यहां एक कुआं दबगरान था। अब ये कुआं गुरुद्वारे के अंदर है। ये दरवाजा दबगर जाति ने बनवाया था जोकि अब खत्म हो चुका है। समय के साथ यह स्थान तंग हो गया और दरवाजे को भी समय निगल गया।
4. दरवाजा राजपूतान
ये दरवाजा पशु अस्पताल मार्ग पर जीटी रोड की तरफ था। इस दरवाजे को पानीपत के राजपूतों ने बनवाया था जोकि अब खत्म हो चुका है। प्रसिद्ध इतिहासकार आयरलैंड ने लिखा है कि पानीपत के इलाके में जो मुसलमान राजूपत हैं वे हजरत बू अली शाह कलंदर नौमानी पानीपती की ही बदौलत मुर्शरफ बा इस्लाम हुए।
5. दरवाजा घोसियान
मस्जिद घोसियान में गुरुद्वारा स्थापित हुआ। इसी के बाहर इसी सड़क पर ये दरवाजा था। अब गुरुद्वारा संत भाई नरैण सिंह के साथ यह दरवाजा बना था। इसे घोसी जाति के लोगों ने बनवाया था। अब जो दरवाजा बना है इस दरवाजे को गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने बनाया है। यहां घोसी जाति यानि मुस्लमान लोग आबाद थे।
6. दरवाजा हजरत शाह विलायत साहेब
ये दरवाजा दरगाह हजरत शाह विलाय साहेब के बाहर जो रास्ता अंदर शहर की ओर जाता है पर कायम था। चुंगी महसूल शाह विलायत दरवाजे के बाहर बनाई गई थी। वक्त के थपेड़ों ने इसे भी नहीं छोड़ा। ये दरवाजा दरगाह शरीफ प्रबंधकों द्वारा बनाया गया था।
7. दरवाजा अफगानान
ये दरवाजा भीम गोडा मंदिर के साथ शहर के अंदर जाने वाले रास्ते पर कायम था। इस दरवाजे को अफगानों ने बनवाया था। यह दरवाजा भी वक्त के पेट में चला गया। इसके अंदर अधिकतर पठानों की तादाद अधिक थी।
8. लाल दरवाजा
ये दरवाजा रामायणी चौक पर था। इस दरवाजे के पास ही बने बड़े मकान में आबाद शामली वाले ने इसे निर्माण करवाया था। ये भी खत्म हो चुका है। इस दरवाजे के बाहर ऊंचे टीले पर हाथियों की कब्रें थी। यहां के लोग आज भी इस जगह को लाल दरवाजा कहकर बुलाते हैं।
9. दरवाजा रानी महल
ये दरवाजा नई सब्जी मंडी मुख्य द्वार के सामने पुराने शहर की तरफ जाने वाले रास्ते पर था जोकि रानी महल के पास बनाया गया था। इसे एक नवाज ने बनवाया था। यह दरवाजा विशाल था लेकिन समय की दौड़ में विलुप्त हो गया।
10. दरवाजा लोहदर राजपूत
ये दरवाजा छोटे आकार का था। चांदनी बाग की तरफ से लोढ़ा राजपपूतों के मोहल्ले के मुहाने पर था। जहां पर आज मुलतानियों के घर हैं। इस दरवाजे को लोहदर यानि लोढ़ा जाति के लोगों ने बनवाया था। अब यह स्थान तंग हो गया और दरवाजा नहीं रहा।
11. दरवाजा बागड़ियान
ये दरवाजा श्री महावीर आदर्श सीनियर सेकेंडरी स्कूल वार्ड 11 के सामने था। इस दरवाजे को सराय खिरनी में रहने वाले हिंदुओं और बागड़ी मुस्लमानों ने बनवाया था। यह दरवाजा पानीपत की तीसरी लड़ाई में तबाह कर दिया गया था। इस दरवाजे को तोड़कर मराठा फौज शहर में घुस गई थी। फिर अहमद शाह दुर्रनी की फौज ने शहर में लूटपाट की जिसे आज भी भाऊ की लूट कहते हैं। मराठा पेशवा सदाशिव राव भाऊ को पकड़ कर कत्ल कर दिया गया था।
12. दरवाजा हजरत मखदूम साहेब
ये दरवाजा हजरत मखदूम साहेब की दरगाह की इंतजामिया कमेटी ने बनवाया था। आज इस स्थान के नजदीक काफी आबादी है। यह रास्ता सीधा हजरत मखदूम साहेब की दरगाह की ओर लाडला कुआं की तरफ निकल जाता है। इस बाजार को देखकर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि किसी जमाने में इस स्थान पर कोई दरवाजा होगा।
13. दरवाजा हजरत बूल अली शाह कलंदर साहेब
ये दरवाजा वीर भवन चौक से दरगाह हजरत बू अली शाह कलंदर साहेब को जाने वाले रास्ते पर आटे चक्की के नजदीक है। यह किले वाली गली के आगे चलकर बना था। यह दरवाजा दरगाह हजरत बू अली शाह कलंदर की इंतजामिया कमेटी की तरफ से बनवाया गया था। अब यह नहीं बचा है।
14. दरवाजा माधोगंज
ये दरवाजा आज भी कुछ हद तक कायम है। इसके इसके कायम रहने की वजह वैश्य पंचायत है। ये दरवाजा किला तथा हलवाई हट्टा, बाजार ठठेरान से चढाई उतरते हुए देवी मंदिर की ओर शहर से निकलने हुए रास्ते में आता है।
15. दरवाजा कायस्तान
ये दरवाजा परम हंस कुटिया के सामने और मंदिर कबीर चौरा के बराबर वाला मोहल्ला कायस्तान के मुहाने पर कायम था। यह दरवाजा अभी कुछ वर्ष पहले मोहल्ला निवासियों ने तोड़ दिया। अब यह ऊंचाई वाली गली बिना दरवाजे के है।
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