दिल्ली को खुशनुमा कर रहे सोनीपत के फूल, दो लाख तक प्रति एकड़ कमा रहे किसान
जितेंद्र बूरा. ठेठ हरियाणवी
- नौ हजार हेक्टेयर में होती हैं फूलों की खेती, गुलाब की खेती पर ज्यादा दांव खेलते हैं किसान
- गेहूं-धान की खेती में 70 से 80 हजार ही हो रही थी आमदनी, ट्रेंड बदला तो आय बढ़ी
परंपरागत छोड़ मार्केट ट्रेंड यहां के किसानों ने पकड़ा तो आमदनी दो से अढ़ाई गुणा तक बढ़ गई। 9 हजार हेक्टेयर में यहां किसान फूलों की खेती कर रहे हैं। हर दिन दिल्ली में हजारों क्विंटल फूल पहुंचाकर वहां की आबो हवा को खुशनुमा कर रहे हैं और लोगों की खुशियों में चार-चांद लगा रहे हैं। आठ साल पहले तक यहां धान व गेहूं की परंपरागत खेती करना छोड़कर मार्केट डिमांड को यहां के किसानों ने समझा। अब फूलों की खेती इन्हें फायदे का सौदा दे रही है।
मात्र आठ साल में फूलों की खेती में एक ऐसी क्रांति आई कि किसानों की किस्मत चमक उठी। दस साल पहले यहां के किसान कर्ज में डूबे हुए थे। परिवार परंपरागत खेती पर निर्भर था। जिससे गुजारा लायक ही आमदनी होती थी। अब किसान मालामाल तो हुए ही साथ ही विदेशों में भी यहां के फूलों की डिमांड बढ़ने लगी। दिल्ली की सबसे बड़ी फूल मंडी गाजिपुर में भी यहां के फूल हाथों- हाथ बिक रहे हैं। अकबरपुर बारोटा, खेडी मनाजात, हरसानां, मालचा, सफियाबाद, बिंदरौली, गढ़ी बाला आदि गांव में पहले एक समय था जब यहां के किसान केवल गेहूं व धान पर निर्भर थे। परिवार का गुजारा मुश्किल से चलता था। किसानों के मन में कुछ अलग करने की लालसा हुई। किसानों ने यहां सबसे पहले जाफरी व गैंदा फूल की खेती को शुरू किया। जब मंडी में भाव अच्छे मिलने लगे तो बाकी किसान भी आकर्षित हुए। आज आसपास के गांवों के किसान पूरी तरह से फूल की खेती को बिजनेस के तौर पर कर रहे हैं।
जैविक खाद से तैयार हो रहे फूल
धान व गेहूं की फसल से साल भर में किसान को करीब 70-80 हजार रुपए की आमदनी होती है। किसान जाफरी, गैंदा, गुलाब, रजनीगंधा की खेती कर डेढ़ लाख से दो लाख रुपए तक प्रति एकड़ आमदनी ले रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र के इंचार्ज डॉ. जेके नांदल ने बताया कि फूलों की फसल में गेहूं व धान से कम खर्च आता है। यहां के अधिक्तर किसान जैविक खाद का प्रयोग कर रहे हैं। जिससे यूरिया की लागत कम हो रही है। सरकार भी समय- समय पर फूलों की खेती पर 50 प्रतिशत सब्सीड़ी दे रही है।
विदेशी डेलीगेट्स भी देखने आते हैं
दिल्ली पुसा संस्थान में जो भी वेज्ञानिक रिसर्च करने के लिए आते हैं, वे फील्ड वीजिट के लिए इन गांवों का दौरा करते हैं। पिछले दिनों भूटान, जापान, पाकिस्तान, कोरिया, चीन के किसानों का प्रतिनिधि मंडल बारोटा व खेडी मनाजात गांव में पहुंचा था। उन्होंने यहां की फूलों की खेती की नई तकनीक को अपने देश में भी शुरू करने का विचार रखा था।
आढ़ती का झंझट नहीं, हाथों हाथ बिकरी : कंवल सिंह चौहान
पदमश्री अवार्डी किसान कंवल सिंह चौहान का कहना है कि एक सोच ने किसानों की जिदंगी बदल दी है। फूल मंडी में गए और हाथों हाथ पैसे लेकर किसान घर आ जाता है। फूलों की फसल में किसान की प्रतिदिन की आमदनी होती है। पहले वे आढ़ती के सामने कर्ज के लिए हाथ जोड़ते थे। फूलों की खेती में आढ़ती की जरुरत नहीं होती। अब फूलों की खेती करने वाले किसान को धान व गेहूं की तरह से छह महीने तक पैसे के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता। इससे भी किसान की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।
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