पल पल मरता किसान


कभी कड़ाके की ठंड मार दे, कभी जेठ की तपानी।

कभी खेत मे सांप मार दे, कभी बाढ़ का पानी।

सूखा मार देता कभी, तो कभी कर्जे की जुबानी।

महंगाई मार रही खाद बीज की, कभी जमीं रेगिस्तानी।

मरना तो तुझे किसान हर हाल में है....

खुद मरे या तुझे मार दे, ये राजनीति सयानी।

.....जितेंद्र बूरा

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