लौटा दो पंख मेरे
लौटा दो पंख मेरे, आज मुझे फिर उड़ना है।
हौंसला है बाकि, हवाओं का रुख बदलना है।
नव यौवन सा आता जनवरी में हर साल नया,
दिसम्बर आते-आते जाने क्यों अखरता है।
बादलों सी पीड़ से निकल, मुझे उस सूरज से जुड़ना है।
लौटा दो पंख मेरे...
आंगन में धूप आज आई नई सुबह की,
वो सूरज तो भले हर रोज निकलता है।
दौड़ रही जिंदगी में, पीछे छूटे रिश्तों को पकड़ना है।।
लोटा दो पंख मेरे...
ज़िद, जूनून से जीत जीवन,
जर, जोरू, जमीन के पीछे बहुत से गए हार जीतु।
भूल पड़े दिमागों में, कैलेंडर सा चढ़ना है।।
लौटा दो पंख मेरे, आज मुझे फिर उड़ना है।
हौंसला है बाकि, भले हवाओं का रुख बदलना है।...
- जितेंद्र बूरा -
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