संदेश

जून, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हरियाणा का जींद जिला जहां रागों और सुर ताल पर रखे हैं गांवों के नाम

चित्र
जितेंद्र बूरा. हरि के हरियाणा में जींद रियासत का अपना रुतबा रहा है। अब जींद जिला प्रदेश के सबसे पुराने जिलों में शामिल है।  सरस्वती के कांठे जींद की थाटी के अनेक गांव के नाम भारतीय शास्त्रीय संगीत के रागों के नाम पर रखे गए हैं। ये अजब बात है कि जींद रियासत के राजा सरूप सिंह और रघबीर सिंह संगीत प्रेमी थे जिन्होंने जींद के ज्यादातर गांवों के नाम भारतीय शास्त्रीय संगीत के राग, रागनी, ताल, लय के नाम पर रखे। इस धरती को ज्ञान, विद्या, कला, संगीत की देवी सरस्वती नदी को आधार मानकर इन गांवों को ऐसे नाम दिए। इन गांवों के नाम रागों पर आधारित होने के पीछे जींद रियासत के राजाओं काशास्त्रीय संगीत और साहित्य प्रेम और सरस्वती नदी का इस क्षेत्र के आसपास होना रहा है। जींद रियासत दिल्ली दरबार के अधीन होने के नाते क्षेत्र के लोगों की कला का प्रयोग सैनिकों के मनोरंजन के लिए करती थी यही वजह है कि यहां के लोगों को राजदरबार में पूरा सम्मान मिलता रहा। पुराने वाद्ययंत्रों के बजाने वाले जितने इस क्षेत्र में थे कहीं और नहीं थे। जींद से मात्र २२ किलोमीटर दूर सरस्वती नदी का गांव था राखीगढ़ी। खुदाई के दौरा...

हाईवे पर खादर की धरती का अपना रुतबा, हरियाणा को दिलाई कारोबारी पहचान

चित्र
जितेंद्र बूरा.  यमुना तलहटी किनारे की उपजाऊ भूमि से फसलों के रूप में सोना पैदा कर और हाईवे की रफ्तार के साथ खुद को दौड़ाता यह है हरियाणा का "खादर'। सोनीपत में सूर्य कवि पं. लख्मीचंद से हरियाणवी लोक गीत-संगीत की परंपरा को जन्म दिया। पानीपत में प्रख्यात शायर अल्ताफ हुसैन हाली की नज्मों और गजलों से खादर सराबोर रहा है। यमुनानगर से सोनीपत तक खादर के लोगों ने अब खेती के साथ उद्योग में विदेशों तक पहचान बनाई है। पिछले पचास सालों में सांस्कृतिक, शैक्षणिक, व्यापारिक, राजनीतिक क्षेत्र के अनेक बदलाव यहां के लोगों ने देखे हैं। 21 फरवरी 1967 में यमुनानगर से कांग्रेस पार्टी से विधायक बने पं. भगवतदयाल शर्मा के रूप में हरियाणा को पहला मुख्यमंत्री दिया। प्रदेश का स्वर्ण जयंती वर्ष करनाल विधानसभा सीट से चुनकर बने मुख्यमंत्री मनोहरलाल के साथ खादर ने मनाया है। हरियाणा एक-हरियाणवी एक, का नारा मौजूदा सरकार दे रही है। फिर भी सत्ता परिवर्तन में खादर बेल्ट के यमुनानगर, अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत और सोनीपत जिले अपनी भागीदारी से उत्साहित है। हाईवे पर चमचमाते होटल और ढाबों में स्वादिष्ट खाने ...

पल पल मरता किसान

कभी कड़ाके की ठंड मार दे, कभी जेठ की तपानी। कभी खेत मे सांप मार दे, कभी बाढ़ का पानी। सूखा मार देता कभी, तो कभी कर्जे की जुबानी। महंगाई मार रही खाद बीज की, कभी जमीं रेगिस्तानी। मरना तो तुझे किसान हर हाल में है.... खुद मरे या तुझे मार दे, ये राजनीति सयानी। .....जितेंद्र बूरा

हरियाणा के 11 जिलों में पीने लायक नहीं रहा धरती का पानी

चित्र
जितेंद्र बूरा. - भिवानी, झज्जर, मेवात और सिरसा ज्यादा प्रभावित - केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की रिपोर्ट में 334 में से 62 सैंपल फेल हरियाणा में कहावत है- कोस कोस पे बदले पाणी और तीन कोस पे बदले वाणी...। नेशनल वाटर क्वालिटी सब मिशन के तहत सुरक्षित पेयजल उपलब्ध करवाने के लिए पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय केंद्र सरकार ने खराब पानी प्रभावित राज्यों से प्रपोजल मांगे हैं। हरियाणा भी इसमें शामिल किया गया है। पिछले कुछ साल में दक्षिणी और पश्चिमी हरियाणा के 11 जिलों के अधिकांश इलाकों में भू-जल का स्वाद बिगड़ा है। यहां कस्बों व गांवों के कुओं और नलकूपों का पानी, एक से अधिक घुलनशील रसायनों (फ्लोराइड, लौह तत्व या नाईट्रेट) की अधिकता के कारण, अनुपयोगी हो चुका है। कई जगह पानी खेती और कहीं पीने के लायक नहीं बचा है। केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की अलग-अलग जिलों से 334 सैंपल लेकर बनाई रिपोर्ट यह खुलासा कर रही है।  रिपोर्ट अनुसार सबसे ज्यादा प्रभावित भिवानी, झज्जर, मेवात और सिरसा जिले हैं। इन जिल...

अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा”

अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा” यह घटना सन् 1270-1280 के बीच की है । दिल्ली में बादशाह बलबन का राज्य था । उसके दरबार में एक अमीर दरबारी था ।जिसके तीन बेटे थे । उसके पास उन्नीस घोड़े भी थे । मरने से पहले वह वसीयत लिख गया था कि इन घोड़ों का आधा हिस्सा... बड़े बेटे को,चौथाई हिस्सा मंझले को और पांचवां हिस्सा सबसे छोटे बेटे को बांट दिया जाये । बेटे उन 19 घोड़ों का इस तरह बंटवारा कर ही नहीं पाये और बादशाह के दरबार में इस समस्या को सुलझाने के लिए अपील की । बादशाह ने अपने सब दरबारियों से सलाह ली पर उनमें से कोई भी इसे हल नहीं कर सका । उस समय प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो बादशाह का दरबारी कवि था । उसने जाटों की भाषा को समझाने के लिए एक पुस्तक भी बादशाह के कहने पर लिखी थी जिसका नाम “खलिक बारी” था । खुसरो ने कहा कि मैंने जाटों के इलाक़े में घूम कर देखा है और पंचायती फैसले भी सुने है इसलिए मुझे लगता है कि सर्वखाप पंचायत का कोई पंच ही इस समस्या को हल कर सकता है। नवाब के लोगों ने इन्कार किया कि यह फैसला तो हो ही नहीं सकता..! परन्तु कवि अमीर खुसरो के कहने पर बादशाह बलबन ने सर्वखाप पंचायत...

लौटा दो पंख मेरे

लौटा दो पंख मेरे, आज मुझे फिर उड़ना है। हौंसला है बाकि, हवाओं का रुख बदलना है। नव यौवन सा आता जनवरी में हर साल नया, दिसम्बर आते-आते जाने क्यों अखरता है। बादलों सी पीड़ से निकल, मुझे उस सूरज से जुड़ना है। लौटा दो पंख मेरे... आंगन में धूप आज आई नई सुबह की, वो सूरज तो भले हर रोज निकलता है। दौड़ रही जिंदगी में, पीछे छूटे रिश्तों को पकड़ना है।। लोटा दो पंख मेरे... ज़िद, जूनून से जीत जीवन, जर, जोरू, जमीन के पीछे बहुत से गए हार जीतु। भूल पड़े दिमागों में, कैलेंडर सा चढ़ना है।। लौटा दो पंख मेरे, आज मुझे फिर उड़ना है। हौंसला है बाकि, भले हवाओं का रुख बदलना है।...   - जितेंद्र बूरा -