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मैट्रिक्स मुश्किल से पास की, फिर खेत में उपकरण बनाने में लगा रहा, लोग पागल कहने लगे पर मशीन बनाकर पाया अवार्ड

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जितेंद्र बूरा . ठेठ हरियाणवी - गाजर, मूल को काटने से लकर हर तरह का जूस बनाने की मशीन को अब विदेशों तक भेज रहे - राष्ट्रपति से मिल चुका सम्मान, अब खुद की यूनिट लगाकर पेटेंट करवाई मशीन, दिया रोजगार दो बार फेल होने के बाद मुश्किल से दसवीं पास की। पढ़ाई में मन नहीं लगा तो खेती में ही कुछ नया करने की ठान ली। अपनी दो एकड़ जमीन में यमुनानगर के डामला गांव का किसान धर्मवीर सब्जी व अन्य आयुर्वेदिक फसल पैदा करता था। इनसे उत्पाद बनाने की सोची। गाजर, मूली को छीलने में महिलाओं व श्रमिकों के हाथ छिल जाते तो मन में आया कि कोई ऐसी मशीन ही बना दें जो यह काम कर दें। खेत में डेरा लगा इसे बनाने की तरकीबे सोचता रहा। गांव के लोग डॉक्टर और कुछ लोग तो मजाक में पागल तक कहने लगे। दो साल बात मशीन बना डाली। अब अविष्कार को पेटेंट करवा यूनिट लगा दी है। देश और विदेश में किसानों को मशीन बनाकर बेचते हैं। राष्ट्रपति से अवार्ड तक मिल चुका है। मल्टी प्रपज फूड प्रोसेसिंग मशीन बनाने वाले किसान धर्मबीर आज देश में प्रगतिशील और समृद्ध किसानों शामिल हैं। गन्नौर में एग्री लीडरशिप समिट में पहुंचे किसान ...

तकनीक को बनाया हथियार, खुद का बाजार तलाश बने समृद्ध् किसान

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जितेंद्र बूरा. ठेठ हरियाणवी - खूंबी से बना दी प्रोटिन युक्त चाय, मधुमक्खी के जहर से त्वचा की सुरक्षा वाली क्रीम - ऑग्रेनिक खेती वाले किसानों ने बनाया समूह अब ऑनलाइन सीधे घर भेज रहे फल, सब्जी समृद्ध् किसान- समृद्ध भारत। इस नारे को लेकर तकनीक को हथियार बनाया। खुद फसल तैयार की, उसकी मार्केटिंग की और व्यापार भी खुद कर रहे हैं। आधुनिक खेती में मिसाल बने ये किसान अब नए शोध के साथ नए प्रोडेक्ट भी मार्केट में उतारने लगे हैं। खेती को घाटे का सौदा बताने वाले लोगों के लिए ये किसान सीख बन गए और कृषि विभाग के ब्रांड एंबेसडर।  बड़े घरानों में जाती है मसरूम वाली चाय  वर्ष 2008 में आस्ट्रेलिया से लेक्चर की नौकरी छोड़ अपने वतन लौटी करनाल के कुटेल गांव की सीमा गुलाटी ने खेती को नए आयाम दिए हैं। बच्चे आस्ट्रेलिया में रह रहे हैं, उन्होंने यहां अपनी खेती का नया बाजार खड़ा कर दिया है। उनका कहना है कि अपने ही देश में कुछ अलग करने की ठानकर वापस आई। गांव में अपनी जमीन पर मसरूम उत्पादन शुरू किया। ऑग्रेनिक सब्जी व अन्य उत्पाद बनाने शुरू किए। लोग की डिमांड बढ़ती चली गई तो उन्होंने अपन...

दिल्ली को खुशनुमा कर रहे सोनीपत के फूल, दो लाख तक प्रति एकड़ कमा रहे किसान

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जितेंद्र बूरा. ठेठ हरियाणवी - नौ हजार हेक्टेयर में होती हैं फूलों की खेती, गुलाब की खेती पर ज्यादा दांव खेलते हैं किसान - गेहूं-धान की खेती में 70 से 80 हजार ही हो रही थी आमदनी, ट्रेंड बदला तो आय बढ़ी परंपरागत छोड़ मार्केट ट्रेंड यहां के किसानों ने पकड़ा तो आमदनी दो से अढ़ाई गुणा तक बढ़ गई। 9 हजार हेक्टेयर में यहां किसान फूलों की खेती कर रहे हैं। हर दिन दिल्ली में हजारों क्विंटल फूल पहुंचाकर वहां की आबो हवा को खुशनुमा कर रहे हैं और लोगों की खुशियों में चार-चांद लगा रहे हैं। आठ साल पहले तक यहां धान व गेहूं की परंपरागत खेती करना छोड़कर मार्केट डिमांड को यहां के किसानों ने समझा। अब फूलों की खेती इन्हें फायदे का सौदा दे रही है। मात्र आठ साल में फूलों की खेती में एक ऐसी क्रांति आई कि किसानों की किस्मत चमक उठी। दस साल पहले यहां के किसान कर्ज में डूबे हुए थे। परिवार परंपरागत खेती पर निर्भर था। जिससे गुजारा लायक ही आमदनी होती थी। अब किसान मालामाल तो हुए ही साथ ही विदेशों में भी यहां के फूलों की डिमांड बढ़ने लगी। दिल्ली की सबसे बड़ी फूल मंडी गाजिपुर में भी यहां के फूल हाथों- हाथ बिक रह...