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गांव-घर सब बाजारू हो रहे... शहरीकरण की ये लाचारी क्यों है...

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  - बढ़ रहे बाजारीकरण और आसानी से उपलब्धता की होड़ में बदलते हालात - घर और गांवों के बदलते स्वरूप पर एक दृष्टिकोण जितेंद्र बूरा. दादा जी की दरवाजे में बनी वो बैठक भी उनके जाने के साथ ही सूनी हो गई। उसके अंदर खामोशी में कुछ देर बैठा तो वो बातें वो किस्से, वो सीख की दास्तां जैसे दीवारों से गूंजते हुए कानों में घुस रही है। इंसान रहे ना रहे, यादें और सीख तब तक बरकरार रहती हैं जब तक उन्हें आने वाली पीढ़ी तक पहुंचा दिया जाता है। बुजुर्गों के साथ बैठने से जीवन के अनुभव मिलते हैं। दादा की बैठक में बैठकर अचानक से किस्सा याद आ गया। सामने बैठे दादा ने जब कहा था...सब बाजारू हो रहा है...धरोहरों को देखने के भी दाम लगेंगे। चूल्हे से लेकर चौखट तक, जूती से लेकर पगड़ी तक सब बाजारू हो गया है। बीमारी तो सीजन की आती रही सदियों से, लेकिन अब तो इलाज की कमाई के लिए बीमारियां पैदा होने लगी हैं।  दादा की ये बात दिलचस्पी पैदा करने वाली थी। उत्सुकता बढ़ती गई और पूछना शुरू कर दिया क्या बदल गया। कैसे बदल गया। मैने भी कहा कि ये नए दौर का बदलाव है। पीढ़ी कोई हो बुजुर्गों को नया दौर पसंद कहां आया है, वो तो कोसते ही...

कोरोना का 2021 वाला कहर : ग्रामीण अनजान नहीं थे, बस सिस्टम ने इतना डरा दिया कि चिताएं तो हर दिन जली, पर बीमारी को दोष नहीं दिया

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- आने वाली पीढ़ियों के लिए एक यात्रा वृतांत ताकि सरकार और सिस्टम के बीच महामारी के कहर से सबक ले सकें  - 5 हजार से अधिक आबादी वाला शायद ही कोई गांव हरियाणा में होगा जिसमें एक माह 15 से कम मौत हुई हों - कोरोना की दूसरी लहर के दर्द ने भविष्य के लिए स्वास्थ्य सेवाएं दुरुस्त की...लेकिन उन्हें संभाले रखना होगा जितेंद्र बूरा. बुजुर्गों से सुना था कि 1918 में स्पेनिश फ्लू ने कहर ढहाया था। एक शताब्दी बाद फिर 2019 में कोरोना महामारी की शुरुआत चाइना से हुई। इसे सजगता कहें या डर कि 2020 में भारत में हर जन अलर्ट हो गया। लॉकडाउन लगे और आर्थिक संकट झेलते हुए कोरोना की पहली लहर से बचाव रखा। वर्ष 2021 आने के बाद इस महामारी को भुला दिया गया। न मास्क, ना दो गज की दूरी रही। चुनावी रैलियों से लेकर बड़े आयोजन हुए। अप्रैल माह आते-आते तो कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने ऐसा भंयकर रूप ले लिया कि देश में लगभग हर राज्य में कहर भरपा। घर-घर बुखार, खांसी, जुकाम के मरीज हुए और संक्रमण बढ़ता चला गया। कहीं एंबुलेंस नहीं मिली तो कहीं अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं मिलने और कहीं इलाज के लिए बेड नहीं मिलने से जानें गई। हरिया...